रफीक आलम, दमुआ/छिंदवाड़ा (मप्र), NIT:
इस्लाम धर्म का पवित्र महीना रमजान में मुस्लिम समाज इबादत में लगे हुए हैं. रोजा, नमाज़, दुआएं, तरावीह की विशेष नमाज के साथ कुरान की तिलावते घर-घर हो रही है. आज सोमवार को नवा रोजा है, शाम से दसवीं तरावीह शुरू होगी जिससे नया अशरा शुरू हो होगा.
ज्ञात रहे कि रमजान 30 दिनों के रोजा को इस्लाम धर्म में दस-दस दिनों के तीन भागों में बांटा गया है. इसके प्रथम 10 दिनों को रहमत का अशरा कहा जाता है, वहीं दूसरे 10 दिन को मगफिरत का अशरा कहा जाता है, तीसरा अशरा जहन्नम से आजादी का है।आज शाम से रमजान का दूसरा अशरा मगफिरत का आशरा चालू हो रहा है. आने वाले दिनों में मुस्लिम समाज के लोग अपने गुनाहों से बक्शीश मांगेंगे। इसमें मुसलमानों को चाहिए कि अपने पिछले तमाम गुनाहों पर शर्मिंदा होते हुए अपने रब की बारगाह में गुनाहों से बख्शिश तलब करते रहे ताकि हम इस दुनिया में भी कामयाब हों और आखिरत में भी कामयाब रहे। रोजे का मूल मकसद आदमी को चरित्रवान सदाचारी शांतिप्रिय बनाने का सर्वोत्तम साधन है। रमज़ान में एक बार लगातार रोजा रखने से आत्मिक चारित्रिक उत्थान होता है। रोजा रखने से परोपकार त्याग र्धैर्य आदि मानवीय गुण उत्पन्न होते हैं।
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