अंग्रेजी सल्तनत की नींव हिलाने वाली दांडी यात्रा शताब्दी वर्ष की ओर… | New India Times

Edited by Junaid Kakar, NIT:

लेखक: डॉ. अश्विन झाला गाँधी रिसर्च फाउण्डेशन

अंग्रेजी सल्तनत की नींव हिलाने वाली दांडी यात्रा शताब्दी वर्ष की ओर… | New India Times

गाँधी जी ने अपने जीवन के दौरान कई सत्याग्रह किए किंतु उनमें से एक सत्याग्रह विशेष उभरकर सामने आता है, वह है नमक सत्याग्रह। आज से करीब इक्यानवे साल पहले किया हुआ सत्याग्रह आज भी विश्व के बड़े दस सत्याग्रह में सम्मिलित है।

18 जनवरी 1930 के दिन पहलीबार नमक को लेकर कोई आंदोलन करने की संकल्पना गांधीजी के दिमाग में आई। इस विचार पर गाँधीजी के नजदिक के लोगों ने आलोचना की और ज्यादा रूची नहीं दिखाई। यहाँ तक की सरदार वल्लभभाई पटेल, नेहरू इन सभी ने मिटींग में आने से मना कर दिया की हम नहीं आएंगे। ये बात को लेकर आजादी हासिल नहीं की जा सकती और इरविन ने तो यह कह दिया की “भारत में गाँधी ने जो दांडीयात्रा घोषित कर दी गयी है उससे मेरी नींदद भी खराब नहीं होगी।

एक बुजूर्ग व्यक्ती जिसकी उम्र 61 साल की है वो लंबी यात्रा पर जाए और सफल करे ये ब्रिटीश सल्तनत में तो हरगीज नहीं हो सकता। इसलिए ये यात्रा किसी भी रुप में सार्थक होने वाली नहीं है।” इतनी आलोचना के बीच में गाँधीजी अपने मनोबल को मजबूत करते हैं। उन्होंने लॉर्ड इरविन को एक खत लि‍खा किंतु उस खत का ठीक प्रत्युत्तर नहीं आया। मजबूरन 12 मार्च 1930 को यात्रा आरंभ करने की घोषणा निश्चित हुई। 12 मार्च के दिन हमेशा की तरह गाँधीजी चार बजे उठे नित्यकर्म किया, छः बजे प्रार्थना हुई, साढ़े छः बजे यात्रा के प्रस्थान के लिए काकासाहेब कालेलकर ने गाँधीजी के हाथ में लाठी थमाई, चप्पल पहने, कस्तुरबा ने तिलक लगाया। उस दौरान एक रोचक घटना ये भी घटी की गांधीजी के दूसरे बेटे मणिलाल उनकी पत्नी रो रही थी तब कस्तुरबा ने कहा की “क्या इन आँसूओं से भरे चेहरे के साथ इन यौद्धाओं को विदा करोगी? ये योद्धाएं हैं और हम उन योद्धाओं की अर्धांगीनी हैं, अगर हम मजबूत होंगे तो वे भी मजबूत होंगे।” 78 सत्याग्रहियों का वह दल कतार में खडा हो गया। कतार में खडे सत्याग्रही भारत के 16 प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। 

12 मार्च से 5 एप्रिल तक चली इस यात्रा के दौरान गांधीजी ने करीब 11 नदियों को पार किया, 50 खत लिखे, 46 भाषण दिए, 6 संदेश दिए। 78 लोगों का वो कारवाँ चला था अहमदाबाद से 5 एप्रिल दांडी पहुंचते पहुंचते लाखों लोगों में तबदिल हो गया था। उसी दिन उनके एक सहयोगी ने कहा बापू मेरा एक मित्र अमेरिका में रहता है उनके लिए आप कुछ संदेश देना चाहेंगे? तब गाँधीजी ने ऐतिहासिक संदेश देते हुए लिखा “I want worlds sympathy in this battle of right against might”. 6 एप्रिल की सुबह साढ़े छः बजे समुद्र में स्नान कऱ गांधीजी ने जब मिट्टीयुक्त नमक उठाया तब एक गगनभेदी आवाज आई नमक का कानून तोड दिया। वो गगनभेदी आवाज दांडी तक सीमित नहीं थी। सारे विश्व में फैल गई थी। बापू के संदेश को लोगों ने जीवंत कर दिया और जगह जगह पर नमक बनाने लगे, कई प्रदेश में सत्याग्रह आरंभ हो गए थे। लोगों में जैसे एक योद्धत्व विरत्व आ जाता है वैसे विरत्व की भांती लोग नमक बनाने के लिए निकल जाते थे। उस दौरान भारत में करीब पांच हजार जगह पर सत्याग्रह हुए। एक चुटकी भर नमक के आधार पर उन्होंने साम्राज्य की नींव को हिला दिया।

गाँधीजी द्वारा आरंभ किया यह आंदोलन सफल हो चुका था। जो पहले इस आंदोलन का विरोध कर रहे थे, या नमक को लेकर गाँधीजी के साथ सहमत नहीं थे, गाँधीजी के दांडी पहुँचने पर आंदोलन की तीव्रता ने उन सभी को प्रत्युत्तर दे दिया था। जो विरोध कर रहे थे उन्हीं लोगों ने इस आंदोलन की सराहना की।

 नमक सत्याग्रह आरंभ के समय वाइसराय लार्ड इरविन ने व्यंगपूर्ण रूप से कहा था कि “चुटकीभर नमक से अंग्रेजी शासन हिलाने की यह एक विभ्रांत योजना है। तथापि इसी दांडी यात्रा ने उस लक्ष्य की पूरी उपलब्धि कर दिखाई।” जवाहरलाल नेहरू ने कहा कि “हमें इस आदमी की दक्षता पर आश्चर्य हुआ।” और आगे वे कहते हैं कि “अपने जादुई स्पर्श से आपने नया भारत निर्माण किया है, इस महान उपलब्धि पर मैं आपका अभिनंदन करता हूँ। भविष्य में क्या होगा यह तो मैं नहीं जानता, मगर भूतकाल ने (दांडी यात्रा) हमारा जीवन इतना समृद्ध कर दिया है कि, हमारे साधारण से नीरस जीवन को महाकाव्य सी महानता प्राप्त हो गई।”

दांडी यात्रा के बाद देश में चरखे चलाने की संख्या बढ गई, खादी पहनने की संख्या बढ गई, रचनात्मक कार्य करनेवाले लोगों की संख्या बढ गई। कई गाँव ऐसे थे जो स्वावलंबन के आधार पर अपनी गतिविधियों को आगे बढाने लगे। 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन में अहिंसक तत्व के आधारपर सफल हुआ उनका पूर्ण श्रेय दांडी सत्याग्रह को जाता है। 15 अगस्ट 1947 के दिन भारत को आजादी हासील हुई, उसकी नींव अगर कहीं दिखाई देती है तो वह 12 मार्च 1930 है। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधीजी सत्ता के विरूद्ध संघर्ष और अधिकार की लड़ाई में आज भी प्रेरणा स्थान है। 


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