भारत में पोलियो उन्मूलन मुहिम के तहत करोड़ों बच्चों को दी गई पोलियो की खुराक, सातपुड़ा पहाड़ियों में बसे आदिवासी बच्चों को भी मिले दो बूंद जिंदगी के | New India Times

नरेंद्र इंगले, ब्यूरो चीफ, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:

भारत में पोलियो उन्मूलन मुहिम के तहत करोड़ों बच्चों को दी गई पोलियो की खुराक, सातपुड़ा पहाड़ियों में बसे आदिवासी बच्चों को भी मिले दो बूंद जिंदगी के | New India Times

19 जनवरी को समुचे भारत में पोलियो उन्मूलन मुहिम के तहत करोड़ों बच्चों को पोलियो की खुराक दी गई जिसके आधिकारिक आंकड़े सरकार जल्द जारी कर देगी। नेता, अभिनेता, कलाकार, बिजनेसमैन समेत हजारों हस्तियों ने हाथ में पोलियो की शीशी लेकर बच्चों को दवा पिलाने वाले पोजेस देकर कैमरों की शोभा बढ़ाई। नीज थिअरी के इतने जबरदस्त प्रयोग से कारपोरेट जगत ने सरकार के जरिये जनता पर ऐसा प्रभाव छोड़ा है कि कमियों खामियों की कोई गुंजाइश ही शेष नहीं रह जाती, बची भी तो उसे उन्नीस बीस मीडिया और विशिष्ट राजनीतिक विचारधारा से प्रेरित मराठी हिंदी अखबार पूरा कर देंगे जो कारपोरेट के को पावर्ड बाय बन चुके हैं और जो कि अपनी खोजी भूमिका कब की भुला चुके हैं। इसलिए खबरें तो चलती हैं लेकिन सोच समझकर चलाई जाती हैं। पोलियो मुहिम की बात करें तो महाराष्ट्र के 36 जिलों मे 6 जिले ऐसे है जो आदिवासी बहुल है यहा सरकार की किसी भी मुहिम को अपने लक्ष्य तक पहुचाने की प्रशासन की विशेष जिम्मेदारी होती है भलेही अधिकारियों के पास पर्याप्त संसाधन ना हो। इसी कड़ी मे एक सच्चाई है किनगांव स्वास्थ केंद्र की जिसके अंर्तगत 6 उपकेंद्र और कई आदिवासी गांव आते है।

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केंद्र संचालिका डॉ मनीषा महाजन जो कि डॉक्टरी में गोल्ड मेडलिस्ट रह चुकी हैं उन्होंने मिशन इंद्रधनुष के तहत ही सातपुड़ा पहाड़ियों में बसे इन आदिवासी कस्बो तक पहुंचकर स्वास्थ सेवा को नया आयाम दिया। राष्ट्रीय पोलियो उन्मूलन मुहिम के लिए डॉ मनीषा की सहयोगी डॉ सागर वारके, उषा पाटिल, नीलेश पाटिल, जे के सोनावणे, संजय तड़वी सरदार कनाशा तथा स्टाफ आदि के सहयोग से 28 बूथ लगवाए। 3273 बच्चो को पोलियो की खुराक देने का लक्ष्य था जिसे पुरा करके 3570 बच्चो को पोलियो की दवा का लाभ दिलाया गया। इस काम के लिए जंगलो मे स्थित दूरदराज के दुर्गम आदिवासी गांवो तक मेडिकल टीम पहुंची। यकीनन इस खबर को किसी ने कवर नहीं किया होगा ऐसी खबरें अगर चलीं या प्रकाशित कीं तो किसी खास फ्रेम में पाठकों को परोसी जाएगी जैसा कि आजादी के बाद मोदी राज में पहली बार ऐसा कुछ हुआ है। पावर्ड बाय वाले मीडिया को इस विषय से जुड़े तथ्यों के साथ उस सच को भी सामने रखना पड़ेगा जो बरसों से नंगा है जिसे वहां के आदिवासी हर रोज अनुभव करते हैं। इस जमीनी हकीकत को उन्नीस बीस मीडिया हूबहू बयां करें इस बात की उम्मीद करना मीडिया की समझ के साथ नाइंसाफी होगी।

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वैश्विक न्यूज एजन्सी की एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत के उत्तरी राज्यो मे संक्रामक बीमारियों से जुझने वाली श्रेणी मे 0 से 5 साल तक कि आयु वाले बच्चों का मृत्युदर 5 प्रतिशत बताया गया है। सरकारी डेटा के हवाले से एजन्सी अपनी रिपोर्ट में लिखती है कि National family health service औऱ sample register report के आंकड़ों मे कुछ विसंगतियां है बावजुद इसके 1000 नवजात शिशुओ मे 50 शिशु अपना पाचवा जन्मदिन मनाने से पहले हि दम तोड़ देते है ! जुन 2019 बिहार मे एक्यूट इंसेफेलायटीस से 150 बच्चे मर गए ! गुजरात के राजकोट से 100 बच्चो के मरने की खबर को एजन्सी ने लाइन बनाया है ! बीते साल उत्तर प्रदेश मे दिमागी चमकी बुखार से सैकड़ो बच्चे मौत की भेंट चढ़ गए थे ! रिपोर्ट के मुताबिक़ बच्चो की आकस्मात मौत का सबसे कम मृत्युदर 0.2 केरल औऱ सबसे अधिक झारखंड 1.4 है इनमे लड़कियों की तादात ज्यादा है ! इस रिपोर्ट का संदर्भ इसलिए दिया जाना जरूरी रहा कि पोलियो के मामले को लेकर सरकार ने कोई आधिकारिक जानकारी सदन मे साझा नही की है जिसके चलते पोलियो की सच्चाई शायद इससे भी खतरनाक और चौंकाने वाली हो सकती है ! लोकप्रियता की हवस मे विज्ञापन पर करोडो रुपया खर्च कर को पावर्ड बाय मीडिया के माध्यम से नीज थिअरी के प्रयोग से खुद को जनता पर थोपने वाली सरकार को अगर अपने अजेंडे से जरा सी फुरसत मिले तो वह उन दुर्गम इलाको की व्यवस्था पर भी ध्यान दे जहा के विकास के नाम पर विश्व बैंक की ओर से अरबो रुपयों का ऋण उठाती आ रही है।


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