जेल में दफ़न उम्मीद को बाहर निकाल कर जिन्दा किया अधिवक्ता रहमान ने: 12 वर्षों से जेल में कैद शाहनवाज को सुप्रीम कोर्ट के वकील की पैरवी पर कोलकाता हाईकोर्ट ने किया बरी | New India Times

अजय शर्मा, कोलकाता /मुंबई, NIT:

जेल में दफ़न उम्मीद को बाहर निकाल कर जिन्दा किया अधिवक्ता रहमान ने: 12 वर्षों से जेल में कैद शाहनवाज को सुप्रीम कोर्ट के वकील की पैरवी पर कोलकाता हाईकोर्ट ने किया बरी | New India Times

भगवान के बनाये हुए बन्दे को ही भगवान का दूसरा रूप कहा जाता है तब जब डॉक्टर मरीज को बचा लेता है और उसे जीवनदान देता है। ठीक इसके विपरीत दूसरी तरफ जब एक आरोपी जेल में हो और उसका लॉयर उसको जेल से बरी करवा दे तो आरोपी के लिए लॉयर भगवान का रूप होता है क्योंकि जीवनदान देने वाला ही भगवान होता है। बीते दिनों दिसंबर महीने में कोलकोता उच्च न्यायालय ने शाहनवाज नामक आरोपी को बरी किया है जो जवानी की दहलीज़ में कदम रखने के बाद जेल की दीवारों में कैद हो गया था। सर्वोच्च न्यायालय के प्रसिद्ध अधिवक्ता एफ रहमान ने उसका मामला लड़कर उसे जेल से बरी करवाया।

गौरतलब हो की बीते दिनों वर्ष 2018 के दिसंबर महीने में कोलकाता उच्च न्यायालय ने शाहनवाज नामक आरोपी को बरी किया जो जवानी की दहलीज़ मतलब सिर्फ १८ वर्ष की आयु में कदम रखने के बाद जेल की दीवारों में कैद हो गया था।व, उसके पिता इस दुनिया में नहीं हैं। सर्वोच्च न्यायालय के प्रसिद्ध अधिवक्ता एफ रहमान ने उसका मामला लड़कर उसे जेल से बरी करवाया। इस मामले ने कई लोगों के जीवन रेखा को एक नयी उम्मीद दे दी है। यह मामला इतना प्रसिद्ध हुआ की कई अखबारों की हेडलाइन बन गया। जब इस खबर के लिए सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता रहमान से सीधे संपर्क किया गया तब उनका एक कथन सामने आया “वर्बीस लेगिस नॉन ईस्ट रेसडेंडम” उन्होंने बताया की माता पिता पहला भगवान होता है औलाद के लिए, दूसरा किसी को मुसीबत में बचाने वाला भगवान् का ही बंदा होता है जो उसे बचाता है। शाहनवाज़ के मामले में बोलते हुए रहमान ने कहा की यह मामला कोलकोता उच्च न्यायालय के दो बेंचों के न्यायाधीश के सामने चला। न्यायाधीश श्री जयमाला बागची, न्यायाधीश श्री कपूर

आरोपी की माँ जब हताश हो गयी व उसका घर बार बिक गया कई सारी कोशिशें नाकाम हो गयी तब उस माँ ने अधिवक्ता रहमान का दरवाजा खटखटाया की बेटा मेरे लाल को बचा ले तुझे इस माँ की दुआ लगेगी। तू भी किसी माँ का लाल है। रहम दिल रहमान ने माँ से कहा की माँ तेरे बेटे को मैं बरी करवाने के लिए उसका मामला लडूंगा तू दुआ दे बस।

बताया जाता है की उस माँ के पास रहमान को फीस देने के लिए पैसे नहीं थे सिर्फ दुआ दे रही थी। दुवाओं से भी मामले लड़े जाते हैं ये रहमान ने साबित कर दिया है। वह माँ एनओसी लेकर रहमान के पास आयी थी। जानकारी के मुताबिक बता दिया जाये की न्यायाधीश श्री जयमाला बागची गोल्डमेडलिस्ट हैं।

कोलकोता के तिलजला नामक पुलिस थाणे में दर्ज इस मामले में शाहनवाज़ के विरुद्ध अपहरण, रेप, ह्त्या का आरोप था। इस मामले में वर्ष 2007 में गिरफ्तारी के बाद वो कभी बेल पर बाहर आया ही नहीं था। उसके जीवन में सिर्फ अँधेरा था और कुछ भी नहीं था। “मिस्टेक इज़ डेथ” नामक कहावत परफेक्ट बैठती है इस मामले में, नवंबर महीने में ये मामला रहमान के पास आया था और मामले को रीड करने के बाद प्रसिद्ध अधिवक्ता रहमान ने कोलकाता उच्च न्यायालय में मामला लगाकर सिर्फ 15 दिनों के अंदर इसे मेरिट पर लड़ते हुए रहमान ने कोलकोता उच्च न्यायालय के दो बेंचों के न्यायाधीश के सामने (न्यायाधीश श्री जयमाला बागची, न्यायाधीश श्री कपूर ) अपनी दलील पेश करते हुए आरोपी शाहनवाज़ को बरी करवा दिया जो 12 वर्षों से जेल की काल कोठड़ी में कैद था। 20 दिसंबर को ही इसकी सुनवाई हुयी और उसी दिन न्यायालय ने शाहनवाज़ मामले को सीरियस लेते हुए बरी का आदेश भी जारी किया। न्यायालय का कहना है की निर्दोष को कभी भूल से भी सज़ा नहीं होनी चाहिए यदि उसका गुनाह नहीं है। जैसे मुंबई के गोपाल शेट्टे मामले में हुआ था। बताया जाता है की शाहनवाज़ की माँ जेल में मिलने उससे गयी तब शाहनवाज़ को उसकी माँ ने बताया की एक लॉयर है जो तेरा केस लड़ेगा और तुझे जेल से रिहा करवाएगा। इस पर शाहनवाज़ की बड़ी दुःख दायक प्रतिक्रिया थी की माँ कोई ऐसा लॉयर ही पैदा नहीं हुआ जो मुझे रिहा करवाया लेकिन उस माँ की उम्मीद में रहमान खरा उतरा। शाहनवाज़ रिहा होने के पहले उसकी माँ ने उसे बताया की तू रिहा हो गया है लेकिन शाहनवाज़ को विश्वास नहीं हुआ, रिहाई के बाद शाहनवाज़ बोला की क्या सच में माँ कोई भगवान है जो मेरे लिए इस धरती पर उतरा। मतलब अमीर खान एक फिल्म बनाता है जो हिट होती है। इसी तरह से जेल में दफ़न उम्मीद को बाहर निकाल कर जिन्दा किया अधिवक्ता रहमान ने


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