राकेश यादव, देवरी/सागर (मप्र), NIT:
मध्य प्रदेश जन अभियान परिषद द्वारा आदि गुरु शंकराचार्य की जन्म जयंती के अवसर पर विकासखंड स्तरीय व्याख्यान माला का आयोजन बी के पी महाविद्यालय में किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत में मां सरस्वती के पूजन के साथ हुई। इस दौरान कार्यक्रम को राघवेंद्र मिश्रा, बी एल स्वामी, उमाशंकर तिवारी, डॉ अवनीश मिश्रा, महेंद्र पलिया और कार्यक्रम के मुख्य अथिति राजेंद्र जारोलिया ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म 788 ईसवी में वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर हुआ था। आदि शंकराचार्य ने 8 साल की उम्र में सभी वेदों का ज्ञान हासिल कर लिया था।
इनका जन्म दक्षिण भारत के नम्बूदरी ब्राह्मण वंश में हुआ था। आज इसी वंश के ब्राह्मण बद्रीनाथ मंदिर के रावल होते हैं। ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य की गद्दी पर नम्बूदरी ब्राह्मण ही बैठते हैं।
माना जाता है कि 820 ईस्वी में सिर्फ 32 साल की उम्र में शंकराचार्य जी ने हिमालय क्षेत्र में समाधि ली थी। हालांकि शंकराचार्य जी के जन्म और समाधि लेने के साल को लेकर कई तरह के मतभेद भी हैं।
आदि शंकराचार्य 8 साल की उम्र में सभी वेदों के जानकार हो गए थे। उन्होंने भारत की यात्रा की और चारों दिशाओं में चार पीठों की स्थापना की थी। जो कि आज के चार धाम है। शंकराचार्य जी ने गोवर्धन पुरी मठ (जगन्नाथ पुरी), श्रृंगेरी पीठ (रामेश्वरम्), शारदा मठ (द्वारिका) और ज्योतिर्मठ (बद्रीनाथ धाम) की स्थापना की थी।देश में सांस्कृतिक एकता भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता के लिए आदि शंकराचार्य ने विशेष व्यवस्था की थी। उन्होंने उत्तर भारत के हिमालय में स्थित बदरीनाथ धाम में दक्षिण भारत के ब्राह्मण पुजारी और दक्षिण भारत के मंदिर में उत्तर भारत के पुजारी को रखा। वहीं पूर्वी भारत के मंदिर में पश्चिम के पुजारी और पश्चिम भारत के मंदिर में पूर्वी भारत के ब्राह्मण पुजारी को रखा था। जिससे भारत चारों दिशाओं में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से मजबूत हो और एक रूप से एकता के सूत्र में बंध सके।धर्म और संस्कृति की रक्षा आदि शंकराचार्य ने दशनामी संन्यासी अखाड़ों को देश की रक्षा के लिए बांटा। इन अखाड़ों के संन्यासियों के नाम के पीछे लगने वाले शब्दों से उनकी पहचान होती है। उनके नाम के पीछे वन, अरण्य, पुरी, भारती, सरस्वती, गिरि, पर्वत, तीर्थ, सागर और आश्रम, ये शब्द लगते हैं। आदि शंकराचार्य इनके नाम के मुताबिक ही इन्हें अलग-अलग जिम्मेदारियां दी।
इनमें वन और अरण्य नाम के संन्यासियों को छोटे-बड़े जंगलों में रहकर धर्म और प्रकृति की रक्षातीर्थों और प्राचीन मठों की रक्षा करनी होती है।
भारती और सरस्वती नाम के संन्यासियों का काम देश के इतिहास, आध्यात्म, धर्म ग्रंथों की रक्षा और देश में उच्च स्तर की शिक्षा की व्यवस्था करना है। गिरि और पर्वत नाम के संन्यासियों को पहाड़, वहां के निवासी, औषधि और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए नियुक्त किया गया। सागर नाम के संन्यासियों को समुद्र की रक्षा के लिए तैनात किया गया। इस दौरान अभय चंसोरिया, राकेश मिश्रा, चंद्रशेखर ढिमोले, अनिल बिल्थरे, आशीष गुरु, राहुल रिछारिया, शुभम मिश्रा, बृजेश चौबे, सहित जन अभियान परिषद के सदस्य और गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
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