पत्रकारों की सुरक्षा एवं उनके कल्याण के प्रति असंवेदनशील भारत सरकार ने पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने की बात पर अपना पल्ला झाड़ते हुए गेंद प्रदेश सरकारों के पाले में डाल इतिश्री कर ली है: सैयद खालिद क़ैस | New India Times

अबरार अहमद खान, स्टेट ब्यूरो चीफ, भोपाल (मप्र), NIT:

पत्रकारों की सुरक्षा एवं उनके कल्याण के प्रति असंवेदनशील भारत सरकार ने पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने की बात पर अपना पल्ला झाड़ते हुए गेंद प्रदेश सरकारों के पाले में डाल इतिश्री कर ली है: सैयद खालिद क़ैस | New India Times

कोरोना काल में अपने दायित्वों का निर्वहन करके अपने प्राणों को संकट में डालने वाले देश के लाखों पत्रकारों विशेषकर गैर अधिमान्य पत्रकारों के प्रति भारत सरकार की उदासीनता खुलकर सामने आ रही है। इसका जीवंत प्रमाण स्वयं भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से जारी पत्र है जिसमें केंद्र सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से भागती नज़र आ रही है और अपने सिर आई ज़िम्मेदारी को प्रदेश सरकार के सिर डालते हुए अपना दामन बचाती नज़र आ रही है।
मालूम हो कि पत्रकारों की सुरक्षा एवं उनके कल्याण के प्रति असंवेदनशील भारत सरकार ने पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने की बात पर अपना पल्ला झाड़ते हुए गेंद प्रदेश सरकारों के पाले में डाल इतिश्री कर ली है। यह आरोप पत्रकार सुरक्षा एवं कल्याण के लिए प्रतिबद्ध अखिल भारतीय संगठन प्रेस क्लब ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स के राष्ट्रीय अध्यक्ष सैयद ख़ालिद क़ैस ने केंद्र सरकार पर लगाये हैं।
विदित रहे कि संगठन द्वारा देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के नाम एक ज्ञापन पत्रकारों की सुरक्षा एवं उनके कल्याण के उद्देश्य से दिनाँक 11 मई 2021 को प्रधानमंत्री कार्यालय भेजा था जिसकी शिकायत याचिका संख्या पीएमओपीजी/ई/2021/0362903 है।
उक्त ज्ञापन में संगठन द्वारा गैर-मान्यता प्राप्त पत्रकार को कोरोना योद्धा घोषित करने और उनकी सुरक्षा और जीवन बीमा प्रदान करने की शिकायत याचिका प्रस्तुत करते हुए राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों के इन पत्रकारों को 50 लाख की आर्थिक सहायता उपलब्ध कराने सहित सम्पूर्ण देश मे पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने पर बल दिया गया था। उक्त याचिका पर सूचना और प्रसारण मंत्रालय भारत सरकार द्वारा श्री क़ैस को भेजे पत्र दिनाँक 07 जून 2021 को फाइल क्रमांक एस-15011/07/2021-प्रेस
के माध्यम से अवगत कराया कि यह मंत्रालय पत्रकारों या उनके परिवारों को पत्रकारों की मृत्यु के कारण अत्यधिक कठिनाई में और स्थायी विकलांगता, बड़ी बीमारियों के मामले में पत्रकार को तत्काल आधार पर एकमुश्त अनुग्रह राशि प्रदान करने के लिए पत्रकार कल्याण योजना लागू करता है। और दुर्घटनाओं के मामले में गंभीर चोटों के कारण अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता होती है।
मंत्रालय के इस उत्तर की सत्यता सारे देश के सामने है जब कोरोना काल मे उचित उपचार के आभाव में देश भर में सैकड़ों पत्रकारों ने असमय अपनी जानें गवाईं ओर सरकार के दावे के अनुसार उनके परिवारों में से कितनो को अनुग्रह राशि प्राप्त हुई।पत्रकार कल्याण योजना के अंतर्गत कितने पत्रकार लाभान्वित हुए। यहां तक कि सरकार के पास तो पत्रकारों के मरने के ओर उनको प्रदत्त अनुग्रह राशि के आंकड़े तक उपलब्ध नही हैं।

उक्त पत्र में कहा गया कि सरकार सुरक्षा से संबंधित मामलों और पत्रकार सहित प्रत्येक नागरिक को सर्वोच्च महत्व देती है। पत्रकारों सहित नागरिकों की सुरक्षा के लिए मौजूदा कानून पर्याप्त हैं। इसके अलावा, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्य के विषय हैं और राज्य सरकारें अपराध की रोकथाम, पता लगाने, पंजीकरण और जांच के लिए और अपनी कानून प्रवर्तन एजेंसियों के माध्यम से अपराधियों पर मुकदमा चलाने के लिए जिम्मेदार हैं। पत्रकारों की सुरक्षा पर विशेष रूप से एमएचए द्वारा 20.10.2017 को राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को एक एडवाइजरी जारी की गई थी जिसमें उनसे अनुरोध किया गया था कि वे पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानून को सख्ती से लागू करें।

सरकार का यह कथन भी कोरा साबित होता है कि सुरक्षा से संबंधित मामलों और पत्रकार सहित प्रत्येक नागरिक को सर्वोच्च महत्व देती है। पत्रकारों सहित नागरिकों की सुरक्षा के लिए मौजूदा कानून पर्याप्त हैं। जबकि वास्तविकता में 2020 से 2021 के कोरोना काल मे सच उजागर करने वाले पत्रकारों के खिलाफ दर्ज एफआईआर सरकार के दावों की पोल खोल रही हैं। इसी कोरोना काल मे वरिष्ठ पत्रकार विनोद दुआ के खिलाफ दर्ज एफआईआर को अपास्त करते हुए स्वयम सुप्रीम कोर्ट को घोषित करना पड़ा था कि पत्रकार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सरकार अंकुश नही लगा सकती है।यह स्वयम इस बात का प्रमाण है कि किस प्रकार भारतीय संविधान से प्रदत्त शक्ति और अधिकार का सरकारी तंत्र द्वारा दमन कर पत्रकारों को प्रताड़ित किया गया है।

श्री प्रेम चंद अवर सचिव, भारत सरकार द्वारा भेजे गए इस पत्र में सीधे तौर पर केंद्र सरकार ने जहां गैर अधिमान्य पत्रकारो को फ्रंट लाइन वर्कर सहित कोरोना योद्धा घोषित करने से अपना दामन बचा लिया वही दूसरी ओर पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने जैसे महत्त्वपूर्ण मामले से अपना पल्ला झाड़ते हुए यह बताने का प्रयास किया है कि पत्रकार सुरक्षा कानून का विषय भारत के संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्य के विषय होता है, इसके लिए प्रादेशिक सरकारेँ ही जिम्मेदार हैं। लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ का दम भरने वाले पत्रकारों के लिए केंद्र सरकार कितनी असम्वेदनशील है इसका प्रमाण यह पत्र है।


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