आदिवासी समुदाय और होली का पर्व | New India Times

पंकज शर्मा, ब्यूरो चीफ, धार (मप्र), NIT:

आदिवासी समुदाय और होली का पर्व | New India Times

झाबुआ, आलिराजपुर, धार, बड़वानी आदि अंचलों में गांव की बड़ी होली जो कि पूरे गांव की होती है और हर घर से लकड़ी लेकर होली माता बनाई जाती है. बड़ी होली की पूजा गांव के पटेल और पुजारा के द्वारा की जाती है। छोटी होली प्रत्येक घर में गोबर के कंडो से छोटी होली बनाकर उसका पूजन किया जाता है।

पूजन विधि कि सामग्री जैसे चने के दालिये (भूनें हुए चने), माजम,बदडचे, काकणी, खजुर, श्रीफल परिवार के प्रत्येक व्यक्ति के लिए, सिंन्दुर, गुलाल, सिक्का, घी या तेल का दीपक, तांबे के लोटे में पानी, गाय का गोबर, पलाश के पत्ते, पारंपरिक भोजन भोग लगाने के लिए, 2/3/4 झीकरिया दगड़ा (सफेद पत्थर) जिसे ‌होली माता के पेहरदार के रुप में पुजा जाता है, यह मान्यता है।

आदिवासी समुदाय और होली का पर्व | New India Times

पूजन विधि: सर्वप्रथम जमीन पर गाय, बैल के गोबर से पहले निपा जाता है उसके पश्चात नीपे हुए स्थान पर और जो पहरेदार बनाये उन्हें भी टिका लगाया जाता है सिक्का रखकर पुजन सामग्री चढ़ाई जाती है।महुआ कि दारू (शराब) से धार डाली (तर्पण) की जाती है,पलाश के पत्तों में रखे भोजन के द्वारा जिस स्थान को निपकर स्वच्छ किया गया है वहां भोजन भोग के रूप में रखा जाता है श्रीफल को हाथ में लेकर २,३ बार पानी फैरते है उसके बाद उस पर सिंदुर लगाकर होली माता के सामने प्रकृति पर २ बार धीरे-धीरे ढोक कर नीचे रख दिया जाता है और हमारे द्वारा माता ने ,श्रीफल स्वीकार किया ऐसा समझा जाता है, साथ ही घर,परिवार,और आने वाला वर्ष आनन्द मय सुख, समृद्धि लेकर आए ऐसी होली माता से कामना करते हैं।

आदिवासी समुदाय और होली का पर्व | New India Times

होली माता के चारों और घट्टी की दिशा, पेड़ पर चढ़ती हुई बेल कि दिशा, पानी में घुमते हुए भवरे की दिशा, चक्र वात की दिशा (भूतिया बाबा) ये सभी प्रकृति के नियम के अनुसार घूमते हैं। हम आदिवासी प्रकृति पूजक लोग भी इसी दिशा में घूमकर अपने सारे मांगलिक कार्य भी पूर्ण करते हैं। जबकि गैर आदिवासी विपरीत दिशा में घूमकर अपने मांगलिक कार्य पूर्ण करते हैं।

गैरआदिवासी होलिका पहले पूजन करते हैं और दहन करते हैं लेकिन हम आदिवासी होली माता को पहले अग्नि में आवाहन बुलाते हैं और फिर पूजन करते हैं।

आदिवासी समुदाय में घर का बुजुर्ग व्यक्ति पूजन करता है।

.
नोट- बच्चों के छोटी होली के उपर से कुदने से बच्चों को आंखों की बिमारी और बच्चे बिमार नहीं होते ऐसी हमारे बुजुर्गों की मान्यता है।
.
होली माता पुजा गैर आदिवासीयों की पुजा से एक भी प्रतिशत मिलती नहीं है आदिवासी समुदाय की पुजा पुरी तरह भिन्न है।
आप भी तर्क करें, तार्किक दृष्टि कोण रखें ।
यह मेरे काल्पनिक विचार नहीं है,हमारी परंपरा और पुरखों की देन हैं।
मैं किसी धर्म का विरोध नहीं करती, मैं अपने आदिवासी समाज की वास्तविकता को दर्शा रही हूं।

आदिवासी बेटी: Dipteshwari Guthare, गांव देहदला, जोबट (जिला अलिराजपुर 69)


Discover more from New India Times

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

By nit

Discover more from New India Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading