अरशद आब्दी, ब्यूरो चीफ, झांसी (यूपी), NIT:
मेवातीपुरा स्थित इमाम बारगाह सैयद शुजाअत अली आब्दी में इमाम हुसैन (अ0स0) के बेटे इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ0स0) की शहादत पर कदीमी मजलिस का आयोजन किया गया। कानपुर से आये हुए मौलाना कम्बर हुसैन साहब ने इमाम की शहादत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इमाम के कई उपनाम थे जिनमें सज्जाद, सैयदुस्साजेदीन और ज़ैनुल आब्दीन प्रमुख हैं। उनकी इमामत का काल कर्बला की घटना और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद शुरू हुआ। इस काल की ध्यानयोग्य विशेषताएं हैं। इमाम सज्जाद ने इस काल में अत्यंत अहम और निर्णायक भूमिका निभाई। कर्बला की घटना के समय उनकी उम्र 24 साल थी और इस घटना के बाद वे 34 साल तक जीवित रहे। इस अवधि में उन्होंने इस्लामी समाज के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी संभाली और विभिन्न मार्गों से अत्याचार व अज्ञानता के प्रतीकों से मुक़ाबला किया।
इस मुक़ाबले के दौरान इमाम ज़ैनुल आबदीन अलैहिस्सलाम के चरित्र में जो बात सबसे अधिक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है वह कर्बला के आंदोलन की याद को जीवित रखना और इस अमर घटना के संदेश को दुनिया तक पहुंचाना है। कभी कभी एक आंदोलन को जारी रखने और उसकी रक्षा करने की ज़िम्मेदारी, उसे अस्तित्व में लाने से अधिक मुश्किल व संवेदनशील होती है। ईश्वर की इच्छा थी कि इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम कर्बला की घटना के बाद जीवित रहें ताकि पूरी सूझ-बूझ व बुद्धिमत्ता के साथ अपने पिता इमाम हुसैन के आंदोलन का नेतृत्व करें। उन्होंने ऐसे समय में इमामत का पद संभाला जब बनी उमय्या के शासकों के हाथों धार्मिक मान्यताओं में फेरबदल कर दिया गया था और अन्याय, सांसारिक मायामोह और संसार प्रेम फैला हुआ था। उमवी शासन धर्मप्रेम का दावा करता था लेकिन इस्लामी समाज धर्म की मूल शिक्षाओं से दूर हो गया था। सच्चाई यह थी कि उमवी, धर्म का चोला पहन कर इस्लामी मान्यताओं को नुक़सान पहुंचाने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने आशूरा की घटना को अपने हित में इस्तेमाल करने और इमाम हुसैन व उनके साथियों के आंदोलन को विद्रोह बताने की कोशिश की। इन परिस्थितियों में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने अपने दायित्वों को दो चरण में अंजाम दिया, अल्पकालीन चरण और दीर्घकालीन चरण। अल्पकालीन चरण, इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की शहादत और इमाम सज्जाद व उनके अन्य परिजनों की गिरफ़्तारी के तुरंत बाद आरंभ हुआ था। इमाम ज़ैनुल आबेदीन के दायित्व का दीर्घकालीन चरण उनके दमिश्क़ से मदीना वापसी के बाद शुरू हुआ। इमाम हुसैन की शहादत के बाद इमाम सज्जाद और हज़रत ज़ैनब समेत उनके परिजनों को उमवी शासन के अत्याचारी सैनिकों ने गिरफ़्तार कर लिया था। उन्हें गिरफ़्तार करने के बाद कूफ़ा नगर लाया गया जहां इमाम सज्जाद ने लोगों के बीच इस प्रकार भाषण दिया कि उसी समय वहां के लोगों की आंखों से पश्चाताप के आंसू बहने लगे और उन्होंने इमाम ज़ैनुल आबेदीन से माफ़ी मांगी। इस दौरान इमाम के ताबूत की ज़ियारत कराई गई तो हाय सज्जाद हाय सज्जाद की सदाएं गूंजने लगी। सोज़ख्वानी हाजी काज़िम रज़ा, पेशख्वानी शबरोज़ कानपुरी, निज़ामत हसन अब्बास महमूदाबादी और नौहाख्वानी हाशिम रज़ा, अनवर ने की। अन्जुमन सदाए हुसैनी झाँसी के मातमदारो ने मातम किया।
इस मौके पर मौलाना शाने हैदर ज़ैदी, मौलाना फरमान अली, इतरत हुसैन आब्दी, कमर हसन आब्दी, हाजी तकी आब्दी, ज़ायर नज़र हैदर, नईम साहब, इशरत आब्दी (बाॅबी), फुरकान हैदर, हैदर अली, राशिद आब्दी, आसिफ आब्दी, राजू आब्दी, अरशद आब्दी, अली बाबू, अख्तर अब्बास आदि सैकड़ों की संख्या में सोगवारान मौजूद रहे। संचालन एडवोकेट राहत आब्दी ने व आभार शिफायत अली आब्दी ने वयक्त किया।
Discover more from New India Times
Subscribe to get the latest posts to your email.