संदीप शुक्ला, ब्यूरो चीफ, ग्वालियर (मप्र), NIT:
गोपाल किरण समाज सेवी संस्था द्वारा बुद्ध बिहार अम्बेडकर पार्क शील नगर, आनंद नगर, ग्वालियर में बुद्ध पूर्णिमा पर संगोष्ठी एवं गरीब छात्रों को स्टेशनरी किट वितरण की गई। जिसमें मुख्य अथिति डॉ प्रवीण गौतम जी, विशिष्ट अथिति के रूप में समाज सेवी श्री प्रकाश सिंह निमराजे गोपाल किरण समाज सेवी संस्था शामिल हुए। कार्यक्रम की अध्यक्षता फूल सिंह माथुर जी ने की। प्रोग्राम के मुख्यातिथि डॉ. प्रवीण गौतम रहे। विशेष गेस्ट श्री प्रकाश सिंह निम्रराजे थे। इस अवसर पर बताया कि ,
सम्पूर्ण विश्व को शांति का संदेश देने वाले महान वैज्ञानिक, महामानव “तथागत बुद्ध का जन्म, बुद्धत्व प्राप्ति और महापरिनिर्वाण” ये तीनों एक ही दिन अर्थात बैसाख पूर्णिमा को हुए थे। ऐसा मानव जाति के इतिहास में किसी अन्य के साथ आज तक नहीं हुआ है। अपने मानवतावादी एवं विज्ञानवादी बौद्ध धम्म दर्शन से महाकारुणिक गौतम बुद्ध दुनिया के सबसे महान महापुरुष बने जिन्होंने संसार को अंधश्रद्धा, काल्पनिक शक्तियों और पाखंड से दूर रहकर तर्कपूर्णता और वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ अपने जीवन को निर्वाह करने की शिक्षा प्रदान की।
आज वैशाख पूर्णिमा है जिसे बुद्ध पूर्णिमा भी कहते हैं। बुद्ध पूर्णिमा पर बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। बौद्ध धर्म में इस दिन का विशेष महत्व होता है। इसी दिन महात्मा बुद्ध (ममता बुध्द) को बोधि वृक्ष बोधि ट्री ) के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और यही उनका निर्वाण दिवस भी है. बता दें, सुख सुविधा से संपन्न जीवन को छोड़कर राजकुमार सिद्धार्थ गौतम (सिद्धार्थ गौतम) ज्ञान की खोज में जंगल की ओर निकल पड़े थे. महात्मा बुद्ध ( गौतम बुद्ध ) को बिहार में स्थित महाबोधि मंदिर के महाबोधि वृक्ष या पीपल वृक्ष (महाबुद्धि पेंड) के नीचे कठिन तपस्या के बाद ज्ञान प्राप्त हुआ था. बाद में उनकी शिक्षा और ज्ञान को उनके अनुयायियों ने पूरी दुनियां में फैलाया. गौतम बुद्ध भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के ऐसे महापुरुषों में शामिल रहे, जिन्होंने पूरी मानवजाति पर छाप छोड़ी। गौतम बुद्ध की जयंती बुद्ध पुर्णिमा के दिन मनाई जाती है और उनका निर्वाण दिवस भी बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही हुआ था। यानी यही वह दिन था जब बुद्ध ने जन्म लिया, शरीर का त्याग किया था और मोक्ष प्राप्त किया।
27 वर्ष की उम्र में घर बार छोड़ा
गौतम बुद्ध संन्यासी बनने से पहले कपिलवस्तु के राजकुमार सिद्धार्थ थे। लोगों के दुखों को देखकर और शांति की खोज में वे 27 वर्ष की उम्र में घर-परिवार, राजपाट आदि छोड़कर चले गए थे। भ्रमण करते हुए सिद्धार्थ काशी के समीप सारनाथ पहुंचे, जहां उन्होंने धर्म परिवर्तन किया। इसके बाद बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे कठोर तप किया। कठोर तपस्या के बाद सिद्धार्थ को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई और वह महान संन्यासी गौतम बुद्ध के नाम से प्रचलित हुए और अपने ज्ञान से समूचे विश्व को प्रकाशमान किया।बुद्ध ने जब अपने युग की जनता को धार्मिक-सामाजिक, आध्यात्मिक एवं अन्य यज्ञादि अनुष्ठानों को लेकर अज्ञान में घिरा देखा, साधारण जनता को धर्म के नाम पर अज्ञान में पाया, नारी को अपमानित होते देखा, शुद्रों के प्रति अत्याचार होते देखे तो उनका मन जनता के लिए उद्वेलित हो उठा। वे महलों में बंद न रह सके। उन्होंने स्वयं प्रथम ज्ञान-प्राप्ति का व्रत लिया और वर्षों तक वनों में घूम-घूम कर तपस्या करके आत्मा को ज्ञान से आलोकित किया। उन्होंने जीवन के प्रत्येक क्षण को जिस चैतन्य एवं प्रकाश के साथ जिया, सत्य की ज्योति प्राप्त की, प्रेरक जीवन जिया और फिर जनता में बुराइयों के खिलाफ आवाज बुलन्द की।
40 साल तक घूम-घूम कर किया प्रचार
गौतम बुद्ध ने लगभग 40 वर्ष तक घूम घूम कर अपने सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार किया। वे उन शीर्ष महात्माओं में से थे जिन्होंने अपने ही जीवन में अपने सिद्धांतों का प्रसार तेजी से होता और अपने द्वारा लगाए गए पौधे को वटवृक्ष बन कर पल्लवित होते हुए स्वयं देखा। गौतम बुद्ध ने बहुत ही सहज वाणी और सरल भाषा में अपने विचार लोगों के सामने रखे। अपने धर्म प्रचार में उन्होंने समाज के सभी वर्गों, अमीर गरीब, ऊंच नीच तथा स्त्री-पुरुष को समानता के आधार पर सम्मिलित किया।
लोगों के दुखों को अपने विचार का माध्यम बनाया
संन्यासी बनकर गौतम बुद्ध ने अपने आप को आत्मा और परमात्मा के निरर्थक विवादों में फंसाने की अपेक्षा समाज कल्याण की ओर अधिक ध्यान दिया। उनके उपदेश मानव को दुख एवं पीड़ा से मुक्ति के माध्यम बने, साथ-ही-साथ सामाजिक एवं सांसारिक समस्याओं के समाधान के प्रेरक बने, जो जीवन को सुंदर बनाने एवं माननीय मूल्यों को लोकचित्त में संकलित करने में विशिष्ट स्थान रखते हैं। यही कारण है कि उनकी बात लोगों की समझ में सहज रूप से ही आने लगी।
महात्मा बुद्ध ने मध्यममार्ग अपनाते हुए अहिंसा युक्त दस शीलों का प्रचार किया तो लोगों ने उनकी बातों से स्वयं को सहज ही जुड़ा हुआ पाया। उनका मानना था कि मनुष्य यदि अपनी तृष्णाओं पर विजय प्राप्त कर ले तो वह निर्वाण प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार उन्होंने पुरोहितवाद पर करारा प्रहार किया और व्यक्ति के महत्त्व को प्रतिष्ठित किया।
बौद्ध धर्म से सम्राट अशोक हुआ था प्रभावित, युद्धों पर रोक लगाई
गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म का प्रवर्तन किया और बौद्ध भिक्षुओं को संगठित किया। गौतम बुद्ध का का अहिंसा एवं करुणा का सिद्धांत इतना लुभावना था कि सम्राट अशोक ने दो वर्ष बाद इससे प्रभावित होकर बौद्ध मत को स्वीकार किया और युद्धों पर रोक लगा दी। इस प्रकार बौद्ध मत देश की सीमाएं लांघ कर विश्व के कोने-कोने तक ज्योति फैलाने लगा। इसने भेद भावों से भरी व्यवस्था पर जोरदार प्रहार किया। विश्व शांति एवं परस्पर भाईचारे का वातावरण निर्मित करके कला, साहित्य और संस्कृति के विकास के मार्ग को प्रशस्त करने में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
कुछ दशक पूर्व संविधान के निर्माता डाक्टर भीमराव आंबेडकर ने भारी संख्या में अपने अनुयायियों के साथ बौद्ध मत को स्वीकार किया मूलतः बौद्ध मत बुद्ध ने एक क्रांतिकारी और सुधारवादी आंदोलन चलाया।
बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर देश- विदेश के बौद्ध मंदिरों और मठों में विशेष प्रार्थना सभाएं और पूजा-पाठ आयोजित किए जा रहे हैं।
बुद्ध पूर्णिमा न केवल बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए बल्कि संपूर्ण मानव जाति के लिये एक महत्वपूर्ण दिन है। उन्होंने न केवल अनेक प्रभावी व्यक्तियों बल्कि आम जन के हृदय को छुआ और उनके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए।
बुद्ध की सटीक वाणी:
इतना कड़वा भी मत बनो कि दुनिया तुम्हें थूक दे और इतना मीठा भी मत बनो की दुनिया तुम्हें निगल जाये।
न्याय नेकी और पवित्रता को खतरा हो तो भिग्गी बिल्ली बनकर मत बैठो।
जब तक कोई बात आपकी बुद्धि, आपके विवेक, तर्क एवं अनुभव की कसौटी पर खरी नहीं उतरती है तब तक उसे बिलकुल भी मत मानो, बेशक उसे अन्य बहुत से लोग मानते हो, या उसे मानने की परम्परा चली आ रही हो, या पवित्र गर्न्थो में ही क्यों न लिखी गई हो अथवा धर्म गुरुओं द्वारा कही हुई भी क्यों न हो।
प्रोग्राम आयोजन-
सुनीता गौतम जी, जहांआरा एवं श्री प्रकाश सिंह निमराजे ने निभाए। सुनीता गौतम, धर्मेन्द्र कुशवाह जी,रामनिवास जोनवार,अमर सिंह बंसल, आर बी धारिया, विवेक, आर्य ,विजय गौतम राजेश राजोरिया रीना शाक्य कान्ता राजोरिया, रेखा आर्य सीमा पांडोरिया,गीता टेगोर जगदीश मौर्य जगदीश टेगोर गोपाल मंडेलिया,सुनीता राजोरिया टी एन मौर्य ,आदि ने इस अवसर पर अपने विचार व्यक्त कर,
भारतवर्ष में विविध धर्मों के पावन त्योहार बड़ी धूमधाम से एक उत्सव के रूप में मनाए जाते हैं , यह भारतीय संस्कृति की एक अनूठी पहचान है । भारत एक पंथ निरपेक्ष राज्य है जिसके संविधान में समाज के प्रत्येक व्यक्ति के हित सुरक्षित और संरक्षित हैं तथा उन्हें समान रूप से अपने विकास के अवसर प्रदान किए हैं, यह सिर्फ इसलिए है क्योंकि भारतीय संविधान का “मूल ” महाकारूणिक बुद्ध की नीतियों पर आधारित है।
सिद्धार्थ के जन्म के 2582 वर्ष बीत जाने के उपरांत आज भी समाज के विभिन्न मनीषियों द्वारा तरह-तरह की मनगढ़ंत कहानियों के माध्यम से सिद्धार्थ के जन्म एवं उनके गृह त्याग से लेकर बुद्धत्व प्राप्ति तक के काल की विवेचना काल्पनिक आधार पर की जाती रही है । मैं जो लिख रहा हूं वह अक्षरशः निर्विवाद है यह तो नहीं कह सकता परंतु इतना जरूर आश्वस्त करता हूं कि आप इस पर विश्वास कर सकते हैं फिर भी जैसा कि स्वयं तथागत ने कहा है कि किसी बात को इसलिए मत मानो कि वह ग्रंथों में लिखी है, किसी बात को इसलिए मत मानो कि वह परंपराओं में निर्विहित होती चली आ रही है और किसी बात को इसलिए भी मत मानो कि वह बात स्वयं बुद्ध कह रहे हैं ।
सिद्धार्थ गौतम के बारे में साहित्य के पन्नों में उनके जन्म, गृह त्याग की घटना का जो वर्णन किया गया है कि वह आधी रात में यशोधरा और राहुल को छोड़कर चोरी-छिपे घर से इसलिए चले गए क्योंकि उन्होंने गरीब व्यक्ति, बीमार व्यक्ति एवं मृत व्यक्ति को देखा था इसलिए वह व्यथित हो गए थे । यह तथ्य पूर्णतया निराधार हैं क्योंकि सिद्धार्थ गौतम ने 29 वर्ष की अवस्था में अर्थात 534 ईसा पूर्व में गृह त्याग किया और एक व्यक्ति अपनी युवावस्था तक प्रकृति के अमिट सिद्धांतों से अनभिज्ञ रहे, समझ से परे है।
इस बिंदु की वास्तविक सच्चाई यह है कि सिद्धार्थ गौतम का जन्म कपिलवस्तु में महाराज शुद्धोधन के यहां हुआ। वह किसी भी प्रकार से कोई चमत्कारिक व्यक्ति नहीं थे। हां इतना जरूर था कि सिद्धार्थ बचपन से ही मृदुभाषी एवं समस्त जीवो पर दया करने वाले इंसान थे किसी पर भी अत्याचार होना उन्हें पसंद नहीं था उनकी दृष्टि में प्रत्येक मानव समान था। कपिलवस्तु के शाक्यों की सीमा से सटे कोलिय राज्य के बीच रोहिणी नदी विभाजक रेखा थी और इस नदी के जल से ही दोनों राज्य अपने-अपने खेत सींचकर फसलों का उत्पादन करते थे। कपिलवस्तु के प्रत्येक युवक को शाक्य संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था इसलिए सिद्धार्थ ने 20 वर्ष की आयु पूर्ण करने के उपरांत शाक्य संघ में प्रवेश किया। उनके संघ में प्रवेश करने के 8 वर्ष बाद दोनों राज्यों में भूमि सिंचाई को लेकर जल विवाद हुआ और अंततः शाक्यों ने कोलियों के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की, जिसका सिद्धार्थ ने यह कहकर कि “युद्ध किसी समस्या का स्थाई समाधान नहीं है” विरोध किया। शाक्य संघ ने उनके खिलाफ दंड का प्रस्ताव पारित किया और अंततः सिद्धार्थ ने गृह त्याग किया।
सिद्धार्थ जन्म से ही करुणा की प्रतिमूर्ति थे वह किसी के विरुद्ध अत्याचार किए जाने के पक्षधर नहीं थे । तत्कालीन व्यवस्था में उन्हें बताया गया कि “वलि कर्म ” ब्राह्मणों का कर्तव्य है, “युद्ध” करना क्षत्रियों का कर्तव्य है, “व्यापार” करना वैश्यों का कर्तव्य है, और “सेवा” करना शुद्रों का कर्तव्य है। प्रत्येक को अपने-अपने कर्तव्य निभाने चाहिए, शास्त्रों की ऐसी ही आज्ञा है परंतु सिद्धार्थ ने कहा कि धर्म तो समता पर आधारित होना चाहिए। बैर से बैर कभी शांत नहीं होता। व्यक्ति एक दूसरे का शोषण क्यों करता है ? इस संसार में दुख है तो आखिर क्यों है ? संसार में दुख: ना हो इसके लिए क्या करना चाहिए ? मानवता का प्रचार-प्रसार कैसे हो ? इन अनसुलझे प्रश्नों के कारण ही सिद्धार्थ ने गृह त्याग किया । जिस समय सिद्धार्थ ने गृह त्याग किया उस समय मगध पर राजा बिंबिसार का शासन था। कपिलवस्तु से लगभग 400 मील की दूरी पैदल तय कर सिद्धार्थ राजगृह के पांडव पर्वत पर पहुंचे । जब राजा बिंबिसार को इस बात की जानकारी लगी तो उन्होंने सिद्धार्थ को समझाया और कहा कि तुम्हारे कुल से मेरी प्रगाढ़ मैत्री है इसलिए अगर तुम अपना पैतृक राज्य नहीं चाहते हो तो मेरा राज्य स्वीकार करो क्योंकि तुम राजा बनने के योग्य हो परंतु सिद्धार्थ ने कहा कि मैं संसार की कलाओं से आहत हूं और मैं शांति पाने की इच्छा से गृह त्याग कर आया हूं धरती के दुख से बचने के लिए मैं दिव्यलोक का राज्य भी स्वीकार नहीं करूंगा। इसके उपरांत सिद्धार्थ ने भृगु ऋषि से विचार-विमर्श किया। ऋषि आलार कलाम से विचार-विमर्श कर सांख्य दर्शन, ध्यान मार्ग , ऋषि उत्द्क रामपुत् से ध्यान की विधि सीखी। अपने शरीर को अत्यधिक कष्ट प्रदान किया।। मात्र भिक्षाटन करके ही भोजन ग्रहण किया परंतु प्रश्नों का उत्तर नहीं मिला। अंततः उरवेला में सुजाता के हाथ की खीर खाई जिसके फलस्वरूप उनके पांच परिव्राजक साथी सिद्धार्थ को पथ भ्रष्ट बताकर उनका साथ छोड़कर चले गये । निरंजना नदी के तट पर सिद्धार्थ ने बुद्धत्व प्राप्ति संकल्प लिया और उरुवेला छोड़ बोधगया की ओर प्रस्थान किया । बोधगया में एक पीपल के वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ ने आसन लगाया और प्रण किया कि अपने प्रश्नों के उत्तर की प्राप्ति के उपरांत ही आसन त्यागूॅगा, अनेकों कठिनाइयों आई परंतु अंततः सिद्धार्थ के ज्ञान चक्षु खुले और वह बुद्ध हो गए । कहते हैं कि संबोधि प्राप्त के लिए सिद्धार्थ को लगातार 4 सप्ताह तक ध्यान मग्न रहना पड़ा।
सिद्धार्थ गौतम को जब संबोधि प्राप्त हुई तो वह बुद्ध बन गए परंतु उनको प्राप्त होने वाला ज्ञान अत्यंत “सूक्ष्म” था जिस कारण वह स्वयं कई दिनों तक इस दुविधा में रहे कि आखिर मैं इस सूक्ष्म ज्ञान को सबसे पहले किससे शेयर करूँ, फिर फैसला लिया कि मैं अपने गुरु अलारकलाम को इस सूक्ष्म ज्ञान से अवगत कराऊंगा परंतु जानकारी करने पर ज्ञात हुआ की अलारकलाम का देहावसान हो चुका है और कुछ समय पूर्व ही उद्धक रामपुत्त का भी निधन हो चुका है इसके उपरांत बुद्ध ने सारनाथ में अपना प्रथम धम्म उपदेश अपने उन पांच साथियों को दिया जो कि उन्हें पथभ्रष्ट बता कर उनका साथ छोड़ कर चले आए थे। आखिर क्या था वह सूक्ष्म ज्ञान ! जिसको प्राप्त कर सिद्धार्थ बोधिसत्व से बुद्ध बन गए । यदि बुद्ध के उस सूक्ष्म बुद्धत्व की विवेचना की जाये तो शायद सदियां बीत जाएगीं और बीत ही गई। महाकारूणिक बुद्ध को लोग आज तक नहीं समझ पाए हैं और जिन्हें समझना था उन्होंने उस सूक्ष्म ज्ञान को अत्यल्प समय में समझ लिया और वह अर्हत हो गए ।
बुद्ध का पंचशील संसार का श्रेष्ठतम सिद्धांत है जिसके अनुसार 1 – प्राणी मात्र की हिंसा ना करना । 2 – बिना दिए किसी वस्तु को ग्रहण ना करना अर्थात चोरी ना करना । 3 -व्यभिचार ना करना । 4 – झूठ ना बोलना । 5 – नशीली वस्तुओं का सेवन ना करना। मुख्य है । जिन व्यक्तियों द्वारा इनका पालन किया जाता है वह निश्चित रूप से समाज के युगदृष्टा होते हैं और समाज को एक दिशा प्रदान करते हैं ।
बोधिसत्व वही प्राणी है जो बुद्ध बनने के लिए प्रयत्नशील रहता है और 10 परिमिताओं का पूर्ण पालन कर लेने वाला व्यक्ति होता है (1)निष्क्रमण (2)अधिष्ठान(3) दान (4)सील(5) शांति(6) वीर्य (7)ध्यान (8)प्रज्ञा(9) मैत्री(10) समता ।
बुद्ध का आर्य अष्टांगिक मार्ग भी अनूठा सिद्धांत है जिसको अपनाकर कोई भी राष्ट्र जनमानस का कल्याण कर सकता है (1)सम्यक दृष्टि, (2)सम्यक संकल्प (3) सम्यक बाणी(4) सम्यक कर्म (5) सम्यक आजीविका(6) सम्यक व्यायाम (7)सम्यक् स्मृति (8)सम्यक समाधि।
कोई भी व्यक्ति समाज अथवा राष्ट्र बुद्ध की नीतियों को अपनाकर अपना और अन्य समस्त जीवों का सर्वांगीण विकास कर सकता है। एक ऐसा क्रांतिकारी व्यक्तित्व एवं गुरु जिसने वैज्ञानिक आधार पर प्रत्येक व्यक्ति को तर्क करने की खुली आजादी प्रदान की और कहा कि आप मेरी बातों पर भी विश्वास तब करो जब अपने सामान्य ज्ञान की कसौटी पर परख लो। हम सबने अन्य धर्मों का भी अधययन किया है कहीं पर भी मेरी समझ से इस तरह की वैज्ञानिकता की बात नहीं कही गई है । मानव – मानव एक समान। बुद्ध का संघ उस महासागर के समरूप है जिनमें संसार की अनेकों धाराएं चाहे वह नदी के रूप में हों, नहर के रूप में हों,या अन्य किसी रूप में हों, जब उस महासागर में समाहित हो जाती हैं तो अपना अस्तित्व , रूप, रंग और गंध को पूर्णतया समाप्त कर उस संघ रूपी महासागर से एकाकार हो जाती है जिसमें सिर्फ और सिर्फ करुणा, मैत्री और प्रज्ञा का वास है।
कार्यक्रम को सफल बनाने मैं भूमिका रहे।
आज के कार्यक्रम का संचालन अमर सिंह बंसल जी ने किया एवं आज के कार्यक्रम का प्रबंधन मान सिंह पांडोरिया जी ने किया।
कार्यक्रम में जय भीम अनु जा जन जाति कल्याण समिति, जिला बल अधिकार फोरम के कार्यकर्ता का भी सहयोग रहा।
Discover more from New India Times
Subscribe to get the latest posts to your email.