अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित एवं स्वीकार्य दिवस | New India Times

Edited by Arshad Aabdi, NIT:

लेखक: सैय्यद शहंशाह हैदर आब्दी

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित एवं स्वीकार्य दिवस | New India Times

अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस प्रतिवर्ष 21 जून को मनाया जाता है। यह दिन वर्ष का सबसे लम्बा दिन होता है और योग भी मनुष्य को दीर्घ जीवन प्रदान करता है। पहली बार यह दिवस 21 जून 2015 को मनाया गया।
चण्डीगढ़ में 2016 में अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस आधिकारिक नाम “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” अन्य नाम ‘योग दिवस’, ‘विश्व योग दिवस’ सांस्कृतिक आयोजन तिथि 21 जून, आवृत्ति वार्षिक। प्रथम बार 21 जून 2015।

“योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है यह दिमाग़ और शरीर की एकता का प्रतीक है; मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है; विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला है तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रदान करने वाला है। यह व्यायाम के बारे में नहीं है, लेकिन अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है। हमारी बदलती जीवन- शैली में यह चेतना बनकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है। तो आयें एक अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को गोद लेने की दिशा में काम करते हैं।”

जिसके बाद 21 जून को “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” घोषित किया गया। 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र के 177 सदस्यों द्वारा 21 जून को “अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। प्रधानमंत्री मोदी के इस प्रस्ताव को 90 दिन के अंदर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया, जो संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है।

योग हिन्दु क्यों? नमाज़ मुसलमान क्यों?

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित एवं स्वीकार्य दिवस | New India Times

21 जून 2020 को प्रथम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की पांचवी वर्ष गांठ, इसका विरोध और समर्थन जारी है। आम आदमी यह समझ नहीं पा रहा है कि किसी औवेसी, बुखारी, ठाकरे, तोगड़िया, गिरिराज, साध्वी, साक्षी, स्वामी और योगी आदि आदि आदि……. के अपनी-अपनी भाषा में, अपने मुखपत्रों को या देश के किसी के कोने में किसी संचार माध्यम को दिये गये बेतुके बेहूदा बोल, इतने महत्वपूर्ण क्यों हो जाते हैं कि इनका राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय भाषा में अनुवाद किया जाये और मुख्य समाचार बनाकर पूरे देश में प्रकाशित किया जाये, टीवी चैनलों पर दिन रात प्रसारित कर लंबी-लंबी चर्चा कराई जाये? देश और उसकी आम अवाम के दूसरे अहम मुद्दे गौण हो जायें।

देश का प्रधानमंत्री भी इन बदतमीज़ बडबोलों के आगे इसलिये असहाय नज़र आये क्योंकि वो भी कल तक इसी तरह की बयानबाज़ी को अपनी शान समझता था?

दर असल समस्या की जड़ है अपने को श्रेष्ठ और सही समझते हुये दूसरे को हीन और ग़लत समझना। यहीं से शुरू होता है अविश्वास, और फिर संवाद हीनता। संवादहीनता पैदा करती है अनगिनत समस्याएं।

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित एवं स्वीकार्य दिवस | New India Times

हमारे अल्पज्ञान के अनुसार योग एक आध्यात्मिक प्रकिया को कहते हैं जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने और ईश्वर का ध्यान लगाने का काम होता है। यह शब्द, प्रक्रिया और धारणा बौद्ध धर्म, जैन धर्म और हिंदू धर्म में ध्यान प्रक्रिया से सम्बंधित है। योग शब्द भारत से बौद्ध धर्म के साथ चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्री लंका में भी फैल गया है और इस समय सारे सभ्य जगत में लोग इससे परिचित हैं।

इतनी प्रसिद्धि के बावजूद इसकी परिभाषा सुनिश्चित नहीं है। श्रीमद भगवत गीता जैसे प्रतिष्ठित ग्रंथ में योग शब्द का कई बार प्रयोग हुआ है, कभी अकेले और कभी सविशेषण, जैसे बुद्धियोग, संन्यासयोग, कर्मयोग। वेदोत्तर काल में भक्तियोग और हठयोग नाम भी प्रचलित हो गए हैं।

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित एवं स्वीकार्य दिवस | New India Times

महात्मा गांधी ने अनासक्ति योग का व्यवहार किया है। पातंजल योगदर्शन में क्रियायोग शब्द देखने में आता है। पाशुपत योग और माहेश्वर योग जैसे शब्दों का भी चर्चा मिलती है। इन सब स्थलों में योग शब्द के जो अर्थ हैं वह एक दूसरे के विरोधी हैं परंतु इतने विभिन्न प्रयोगों को देखने से यह तो स्पष्ट हो जाता है कि योग की परिभाषा करना कठिन काम है। परिभाषा ऐसी होनी चाहिए जो अव्याप्ति और अतिव्याप्ति दोषों से मुक्त हो, योग शब्द के वाच्यार्थ का ऐसा लक्षण बतला सके जो प्रत्येक प्रसंग के लिये उपयुक्त हो और योग के सिवाय किसी अन्य वस्तु के लिये उपयुक्त न हो।
जिस प्रकार स्वर्ण आग में तप कर कुंदन बनता है, उसी प्रकार अपने भीतर के कुसंस्कारों, कुकर्मों व कलुषता का त्याग करने व योग साधना के योग्य बनने के लिये योग व तप की आवश्यकता होती है ताकि हम आत्म साक्षात्कार कर सकें। तप से तात्पर्य पूजा पाठ, अर्चना आदि से नहीं है बल्कि बुरी आदतों को प्रयत्नपूर्वक त्यागना ही तप है।

सनातन धर्म से लेकर इस्लाम धर्म तक सभी अवतारों, पैगम्बरों ने जन-जन के लाभ हेतु योग को महत्व दिया है नाम भले ही कुछ और दिया हो और हमारी दिनचर्या का अभिन्न अंग बनाने के लिये इसे पूजा – अर्चना और इबादत से जोड़ दिया है ताकि हम ईश्वर/ अल्लाह की प्रार्थना हेतु बैठें तो भी सेहत का लाभ हमें मिलता रहे।
नमाज़ भी एक आध्यात्मिक प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें शरीर, मन और आत्मा को एक साथ लाने और अल्लाह का ध्यान लगाने का काम होता है। इस्लाम में इस पहले अहम सूतून को ही अल्लाह की “इबादत” कहा गया।

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित एवं स्वीकार्य दिवस | New India Times

ग़ौर से देखिये, नमाज़ में योग के और योग में नमाज़ के दर्शन होते हैं। जब नमाज़ पढ़ी जाती है तो वज्रासन की मुद्रा में बार-बार आना होता है। ईसाई धर्म का निशान क्रास भी योग की ही मुद्रा है। योग को हिंदू दर्शन का अंग माना जाता है, लेकिन समाज और मनुष्य की बेहतरी के लिए किसी अन्य धर्म के दर्शन को अपनाने में कोई बुराई नहीं है।

मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) एक अज़ीम योगी थे, ख़ुदा के लिये इबादत करने का तरीक़ा ‘नमाज़’ इसे योग से जोड़ती है। वह बिना योग का अभ्यास किए इसे नहीं कर सकते थे। ऐसी हमारी कल्पना है।

हम आज भी दिन में पांच बार नमाज़ पढ़ते हैं, यानी योग करते हैं। किसी को कोई एतराज़ न हो, इस बात का ध्यान रखते हुए यहां नमाज़ (योग) की शुरुआत ‘बिस्मिल्लाह अल रहमान अल रहीम’ से होती है।

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस: संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित एवं स्वीकार्य दिवस | New India Times

नमाज़ पढ़ने का तरीक़े में “तकबीरःतुल अहराम”, “क़ियाम”, “रुकूअ”, “सजदा”, “क़ुनूत”, और “तशःहुद व सलाम” अरकान काफी हद तक योग की विभिन्न प्रक्रियाओं से मिलते जुलते हैं। या यूं भी कहूं तो गलत नहीं होगा कि योग की विभिन्न प्रक्रियाऐं, नमाज़ के अरकान से काफी हद तक मिलती हैं।

“वसुदेव कुटुंबकम” की अवधारणा वाले सबसे प्राचीन ‘सनातन धर्म’ पर केवल हिंदुओं का एकाधिकार क्यों?

“अलहम्दो लिल्ल्लाहे रब्बुल आलेमीन” का ऐलान करने वाले सबसे आधुनिक धर्म ‘इस्लाम’ के सिर्फ मुसलमान ठेकेदार क्यों?

सोचिये और थोड़ा दिल बड़ा कीजिये आपको योगा में नमाज़ के और नमाज़ में योगा के बहुत से गुण मिल जायेंगे। तो फिर कहिये – हिन्दुस्तान ज़िन्दाबाद ! ज़िन्दाबाद !! ज़िन्दाबाद !!!


Discover more from New India Times

Subscribe to get the latest posts to your email.

By nit

This website uses cookies. By continuing to use this site, you accept our use of cookies. 

Discover more from New India Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading