हाशिम अंसारी, प्रयागराज/लखनऊ (यूपी), NIT:
कार्यालय परीक्षा नियामक प्राधिकारी प्रयागराज उत्तर प्रदेश द्वारा कराई जा रही विभिन्न परीक्षाओं में गड़बड़ियां सामने आ रही हैं जिसको देखते हुए परीक्षा नियामक पर सवालिया निशान उठ रहे हैं पूर्व में हुई बीटीसी की परीक्षाएं हो या शिक्षक पात्रता परीक्षा हो या इससे इतर अन्य कोई परीक्षा हो इसमें गड़बड़ियां स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है बीटीसी 2015 बैच के तृतीय सेमेस्टर का परीक्षा परिणाम 15 सितंबर को परीक्षा नियामक द्वारा जारी किया गया था जिसमे काफी प्रशिक्षुओं में बैक पेपर लगा था प्रशिक्षुओं द्वारा स्क्रुटनी का फॉर्म डाला गया था परीक्षा नियामक के नाम का प्रति सब्जेक्ट ₹100 का डिमांड ड्राफ्ट भी बनवाया गया था उसके बावजूद अभी तक परीक्षा नियामक द्वारा स्कूटनी का रिजल्ट घोषित नहीं किया जा सका और तृतीय सेमेस्टर बैक पेपर डेट निकालकर उनका एग्जाम करा दिया गया अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि यदि स्कूटनी मे बच्चे के नंबर बढ़ते हैं और उसका परीक्षाफल सही साबित होता है तो इस बैक पेपर का क्या मतलब है क्या बैक पेपर फॉर्म भरवा कर छात्रों से ₹ 400 प्रति प्रशिक्षु वसूल कर परीक्षा नियामक अपनी जेब भरने का काम कर रहा है या बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है इस तरह से परीक्षा नियामक बच्चों के अमूल्य समय के साथ साथ उनके पैसों की भी बर्बादी कर रहा है स्पष्ट रूप से कहने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि परीक्षा नियामक द्वारा कराई जा रही प्रतियोगी परीक्षाओं में 100 में 90% परीक्षा नियामक फेल साबित हो रहा है और भ्रष्टाचार व उदासीनता इत्यादि के प्रति घुटने टेकती नजर आ रही है हाल ही में हुई शिक्षक पात्रता परीक्षा में परीक्षा प्रश्न पत्र में आए 22 प्रश्नों पर सवालिया निशान उठे प्रथम उत्तर कुंजी जारी होने के पश्चात आपत्तिया ली गई आपत्तियों के बाद द्वितीय उत्तर कुंजी 30 नवंबर को जारी की गई जिसमें करीब 6 नंबर का अंतर आया प्रश्न इस बात का उठता है कि क्या पेपर बनाने वाला या उत्तर कुंजी बनाने वाला दोनों लोग प्रश्न पत्र की गरिमा को नहीं समझ रहे या उस गरिमा को जानते ही नहीं हैं यदि उस गरिमा को वह नहीं जानते तो कोई हक नहीं है उनको इन प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न पत्र बनाने का क्या अधिकार है ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों को जो बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर उनको कोर्ट की ठोकर खाने पर मजबूर कर रहे हैं आज ऐसे बहुत से अभ्यर्थी रोड पर टहलने हैं जिनके हाथ में कलम होनी चाहिए थी एक अध्यापक देश का निर्माण कारी कहा जाता है आज उसी का यह हाल किया जा रहा है कि उसको कोर्ट की चौखट पर दस्तक देनी पड़ती है कोई भी परीक्षा शांतिपूर्ण बिना कोर्ट कचहरी के संपन्न नहीं हो रही आखिर क्या कारण है जो ऐसा हो रहा है जिस बच्चे को यदि अभ्यर्थी को परीक्षा पास कर उसके हाथ में जॉइनिंग लेटर होना चाहिए था आज उसके हाथ में 400 500 पन्नों की फाइल लेकर कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाते हुए देखा जाता है कोई परीक्षा पूर्ण व शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न नहीं हो रही इससे पूर्व 68500 भर्तियां हुई जिसमें करीब 41000 प्रशिक्षु सफल हुए और उसके बाद घोटाला सामने आया उस पर सीबीआई जांच चल रही है अभी तक उस पर निष्कर्ष नहीं निकल सका कि क्या गलत और क्या सही।
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