300 वर्षों से चले आ रहे पारंपरिक गोटमार मेले के आयोजन में हुई एक युवक की मौत, 180 लोग घायल, हर वर्ष दो ग्रुपों में पत्थरबाजी का होता है मुकाबला | New India Times

आसिम खान, छिंदवाड़ा (मप्र), NIT; 

300 वर्षों से चले आ रहे पारंपरिक गोटमार मेले के आयोजन में हुई एक युवक की मौत, 180 लोग घायल, हर वर्ष दो ग्रुपों में पत्थरबाजी का होता है मुकाबला | New India Times​पांढुर्ना और सावरगांव के बीच जाम नदी पर पारंपरिक गोटमार मेले का आयोजन किया गया। जाम नदी के बीच पलास के झंडे की पूजा-अर्चना के साथ ही ये गोटमार मेला शुरू हुआ और साथ ही दोनों दलों के बीच पत्थरबाजी की भी शुरूआत हुई। मेले में दोनों ओर से पत्थरों की बारिश शुरू हुई जिसमें एक युवक की मौत हो गई जबकि 180 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। हर साल होने वाले मेले में हर बार सैकड़ों लोग घायल होते हैं लेकिन 7 साल में यह पहला मौका है जब किसी की मौत हुई है।

यह त्योहार महाराष्ट्रीयन परिवारों में मनाया जाता है। चूंकि पांढुर्णा गांव महाराष्ट्र से लगा हुआ है लिहाजा यहां की परंपराओं में महाराष्ट्र का खासा प्रभाव रहता है। पारंपरिक मेले में दोनों गांव के लोग एक दूसरे पर गोफन से पत्थरों की बरसात करते हैं। प्रशासन की रोक के बावजूद ग्रामीणों ने इस पारंपरिक मेले का आयोजन किया है। इस गोटमार युद्ध में एक युवक की मौत हो गई जबकि 180 से ज्यादा घायल हुए हैं। मृतक का नाम शंकर झीगु भलावी (25) निवासी भूयारी था। इसे मिलाकर 1955 से लेकर अब तक 13 लोगों मौत हो चुकी है, जबकि हजारों लोग घायल हुए हैं।
परंपरा के मुताबिक मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र की सीमा पर बसे पांढुर्णा में इस अनोखे पारंपरिक मेले का आयोजन किया गया। पांढुर्णा और सांवरगांव के बीच स्थित जाम नदी के मध्य में पलास का झंडा गाड़ा गया। इस झंडे की पूजा के बाद दोनों गांव के लोगों ने एक दूसरे पर पत्थर बरसाना शुरू किया।

300 सालों से जारी परंपरा

गोटमार मेले की यह परंपरा 300 से भी ज्यादा सालों से निभाई जा रही है। हालांकि लोग एक दूसरे पर पत्थर क्यों बरसाते हैं इसका वास्तविक इतिहास किसी को पता नहीं जबकि इसे लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं। बताया जाता है कि सालों पहले पांढुर्णा के एक युवक और सावरगांव की युवती के बीच प्रेम था। विवाह के लिए युवक ने युवती को पांढुर्णा गांव ले आया था। इसे लेकर दोनों गांवों के बीच इसी स्थान पर जाम नदी पर पत्थरबाजी हुई थी। इसके अलावा ये भी किवंदंती है कि गोंड सेना और अंग्रेजों के बीच हुई लड़ाई में हथियार खत्म होने के बाद गोंड सेना ने इसी स्थान पर पत्थरों के सहारे अंग्रेजों से कई दिनों तक गोटमार युद्ध किया था। इसके बाद पोला त्योहार के दूसरे दिन गोटमार मेले की परंपरा शुरू हुई और आज ये मेला लोगों की धार्मिक आस्था और परंपरा का प्रतीक बन गया है।

पुलिस प्रशासन की रही मुस्तैद नजर

मेला पारंपरिक होने के कारण प्रशासन इस पर पूरी तरह प्रतिबंध नहीं लगा पाया। हालांकि इस गोटमार युद्ध में शामिल होने वालों के लिए कई बंदिशें लगाई थी। शराब की दुकानें बंद रखी गई। गोफन तक पर काफी हद तक प्रतिबंध था। बावजूद इसके एक मौत और इतने घायल हुए। मेला स्थल पर पुलिस और प्रशासन के कई वरिष्ठ अधिकारी पूरे समय मौजूद रहे और पूरी व्यवस्था के लिए करीब 1000 पुलिस पुलिसकर्मी तैनात किए गए। मेला स्थल पर बनाए गए कंट्रोल रुम में दूरबीन के जरिए अधिकारियों ने पूरी व्यवस्था पर नजर रखीं।


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