नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
हर साल मनाया जाने वाला विश्व आदिवासी दिवस इस बरस मणिपुर में हो रही नस्लीय हिंसा के साए में समूचे देश भर में काफ़ी हद तक व्यापक रूप से मनाया जा रहा है। जलगांव जिले के जामनेर में आदिवासी समुदाय के सभी तबकों ने हजारों की संख्या में लामबंद हो कर विशाल रैली निकाली। महादंड नायक एकलव्य की सजीव शोभायात्रा में हजारों की तादात में महिलाएं शामिल हुईं। शहर की मुख्य सड़क लाल झंडों से पट गई, तीर कमान पारंपारिक वेशभूषा में सजे और जींस टी शर्ट में डांस करते युवाओं के जत्थे ने आधुनिकता का परंपरा के साथ जो जुड़ाव है उसे रेखांकित किया।
APMC से रैली का आरंभ होने के पहले आदिवासी समुदाय के बुद्धिजीवियों ने समाज को मार्गदर्शन किया। मध्य प्रदेश के सीधी में हुए पेशाब कांड से लेकर मणिपुर में बीते तीन महीने से जारी नस्लीय हिंसा और आदिवासी कुकी महिलाओं के साथ हो रहे यौन हिंसाचार जैसी घटनाओं के बाबत असंतोष व्यक्त किया गया। राइट विंग के कुछ कार्यकर्ता महामहिम राष्ट्रपति के मनोनन को लेकर आदिवासियों के बीच गर्व का सप्लाई कराने के लिए पहुंचे थे जिसकी हरसंभव कोशिश फेल साबित हुई।
सत्र के कामकाज पर नज़र
मणिपुर हिंसा को यूरोपीय संसद में जगह मिलने के बाद भारत के संसद में बहस के लिए विपक्ष को मोदी सरकार के विरोध में अविश्वास प्रस्ताव लाना पड़ा। NCP की सुप्रिया सुले ने मुख्यमंत्री बिरेन सिंग को बर्खास्त करने की मांग करते हुए कहा कि मणिपुर में 179 हत्याएं हो चुकी हैं, 10 हजार से अधिक बलात्कार के मामले दर्ज किए जा चुके हैं, 60 हजार लोगों का विस्थापन हुआ है, 3500 रिलीफ कैंप, 4000 डिटेंशन कैंप लगाए गए हैं, 321 गांव और 3362 घर जलाए गए हैं। एक लाख 61 हजार जवानों को तैनात किया गया है। मसले पर दो दिन से सदन में चर्चा चल रही है। 267 के नोटिस के बाद आशा है कल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी मणिपुर पर कुछ निवेदन करेंगे। ज्ञात हो कि मणिपुर में डबल इंजिन सरकार के फेल होने के बाद हिंसाचार के तमाम मामलों की सारी मॉनिटरिंग सुप्रीम कोर्ट ने अपने अधिकार में ले ली है। आदिवासियों से जुड़े तमाम मसलों को लेकर संसद के भीतर हो रहे कामकाज और मोदी सरकार द्वारा रखे जा रहे पक्ष पर देश के आम लोग पैनी नज़र बनाए हुए हैं।
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