रहीम शेरानी हिन्दुस्तानी, ब्यूरो चीफ, झाबुआ (मप्र), NIT:

झाबुआ जिला के समाज सेवी राजेंद्र श्रीवास्तव (नीरज) व इंदौर के समाजसेवियों जितेंद्र सुमन, जय्यू जोशी, करीम पठान, सीमा सिंह आदि की मेहनत लगन ओर अथक प्रयासों से भटके हुए कालू सिंह अपने घर लोट आया। परिजनों को जब उसके जीवित होने का पता चला तो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा।
ऐसे सच्चे अच्छे कार्य करने वालों को दिल से सलाम नमस्ते
कालू उर्फ़ कालिया उम्र लगभग 23 वर्ष, निवासी – जुलवनिया बड़ा, तहसील – थांदला, जिला झाबुआ जो की मई 2009 से घर से लापता था जब घर वालों ने अथक प्रयास करने के उपरांत कहीं भी पता नहीं चलने पर थक हारकर उसका क्रिया कर्म तक कर दिया था एवं प्रभु इच्छा समझ उसे मृत समझ लिया था।
कालू जो कि मानसिक चिकित्सालय तेजपुर आसाम में भर्ती था, तेजपुर मेंटल हॉस्पिटल में बात करते समय हमारे सक्रिय जागरूक समाजसेवी जितेंद्र सुमन को पता चला कि मध्यप्रदेश का एक लड़का काफी सालों से वाहा भर्ती हे, अभी तक उसके घर का पता नहीं निकल पा रहा। जितेंद्र सुमन और उनके महाकाल संस्था के साथियों एवं झाबुआ के समाजसेवी नीरज श्रीवास्तव से बात की जीतोड मेहनत और कोशिशों और परिश्रम के कारण उसके परिवार का पता लगा गया पता लगने के के बाद ठीक 14 वर्षो बाद वो अपने घर पहुंचा जहां रेलवे स्टेशन पर नीरज और नगर के गणमान्य नागरिकों द्वारा कालू और उसके परिवार का स्वागत किया गया।
अकसर हम अपने आस पास दिखाई देने वाले मानसिक बीमारों को इग्नोर कर देते हैं अगर हम थोड़ा भी प्रयास करें तो शायद कालू जैसे कई बिछड़े लोगों को अपने घर से मिलवा सकते हे।
वो 14 साल का समय इस मां और उस पिता के लिए कितना कठिन रहा होगा जिन्होंने अपने बेटे को देखे बिना उसे मृत समझ लिया था। आज उस परिवार के आंसू पोंछ जीवन धन्य हो गया।
पूरी कहानी कुछ इस प्रकार थी…

अखबार में जो चित्र देख रहे हो उसकी कहानी किसी चमत्कार से कम नहीं।
दरअसल इसका नाम कालुसिंह वसुनिया निवासी बड़ा जुलवानिया तहसील थांदला है जो विगत 14 वर्ष से घर से लापता था।
बात है मई 2009 की जब कालुसिंह की मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी तब वह रानापुर (जिला झाबुआ) के एक अस्पताल से इलाज के दौरान भाग गया था , घरवालों द्वारा ढूंढने के काफी प्रयास किए गए, काफी खोजबीन की गई परंतु यह शख्स नहीं मिला, 4-5 साल बीत गए घरवालों को मिलने की उम्मीदें कम हो गई।
फिर एक दिन घरवालों को पता चलता है की कल्याणपुरा क्षेत्र में किसी विक्षिप्त का शव मिला और उसका अंतिम संस्कार पुलिस द्वारा कर दिया गया, उस क्षेत्र के लोगों द्वारा बताए गए कुछ पहचानो से घरवालों को लगा शायद यह उनका बेटा था और वह अब दुनिया में नहीं है। उसी शव को संभवतः उनका बेटा मानकर इंसान के मर जाने के बाद की जाने वाली सभी रस्में घरवालों द्वारा कर दी गई, यहां तक की उसका नुक्ता वगेरह भी कर दिया गया।
परिवार कालूसिंह को भूल चुका था, किसी को यह उम्मीद नहीं थी की वह वापस आएगा, परंतु उसकी मां जो बार बार यही कहती थी की मेरा बेटा आएगा….मेरा बेटा आएगा…..लोग कहते थे ये औरत बेटे के गम में पागल हो गई है लेकिन कहते है न की मां की जान उसके बच्चों में बसती है, भगवान ने भी शायद सुन ली उस मां की दुआ…..l
2023 आ चुका होता है, लो फिर एक दिन सोशल मीडिया एवं बाणगंगा मानसिक चिकित्सालय इंदौर में पदस्थ नर्सिंग ऑफिसर जितेंद्र सुमन जी तथा नीरज श्रीवास्तव (सामाजिक कार्यकर्ता, मेघनगर झाबुआ) के माध्यम से घरवालों को पता चलता है की कालुसिंह जिंदा है और असम प्रदेश के किसी मानसिक चिकित्सालय में भर्ती है, पहले तो परिवार वालों को यकीन नहीं होता है, फिर उसकी फोटो भेजी जाती है, वीडियो कॉल के जरिए उससे बात की जाती है फिर यकीन होता है।
परिवार वाले सब खुश हो जाते है, बातें चलती है मानो चमत्कार हो गया हो, फिर घरवाले उनको असम लेने जाते है, कालुसिंह कुछ लोगों को पहचान लेता है और कुछ परिवार के सदस्यों को नहीं पहचान पाता है।
4 मई 2023 को कालुसिंह अपने घर आ जाता है।
14 वर्ष बाद जब मां को उसका बेटा मिल जाता है, और वो बेटा जिसको दुनिया भूल चुकी थी, उसे पाकर वो खुशी के आंसू रोती है मां बेटे का यह प्यार देखकर वहां मौजूद परिवार के अन्य सदस्यों के आंखो में भी आंसू आ जाते है वं और
कालुसिंह से मिलने उसका पूरा परिवार इकट्ठा हो जाता है और उसे देखकर सब यही बोल रहे होते है की यह तो चमत्कार हो गया।
कालुसिंह की घर वापसी में नीरज श्रीवास्तव मेघनगर, जितेंद्र सुमन इंदौर का सराहनीय योगदान रहा परिवारजन ने उनका धन्यवाद किया।
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