अब्दुल वाहिद काकर, जलगांव/धुले (महाराष्ट्र), NIT:
लग्जरी यात्री बसों में कमर्शियल गुड्स की अवैध ढुलाई खुलेआम चल रही है लेकिन जिम्मेदार विभाग के पास कार्रवाई के करने की फुर्सत नहीं है। इसलिए एसटी परिवहन विभाग को करोड़ों के राजस्व का चूना लगाकर निजी बस संचालकों को फायदा पहुंचाया जा रहा है।
यही नहीं, इस कारोबार से यात्रियों के सामान और जान पर जोखिम बना रहता है। जिसका जीता जागता उदाहरण नाशिक में लग्जरी यात्री बस ट्रक की सड़क दुर्घटना में करीब 12 व्यक्तियों को जान से हाथ धोना पड़ा है। वहीं तीस गंभीर रूप से घयाल हुए थे।
आरटीओ विभाग की उदासीनता के कारण सड़कों पर खुलेआम अनफिट बसें डबल नंबर की बसें अधिकारियों की आशिर्वाद से दौड़ रही हैं। ऐसा ही सनसनीखेज खुलासा नासिक लग्जरी ट्रक दुर्घटना में भी हुआ है। पूर्व में यात्रियों का लगेज गायब होने की घटनाएं हुई भी हैं लेकिन उनमें कोई कार्रवाई नहीं की जाती।
उप प्रादेशिक परिवहन कार्यालय के जिम्मेदार बसों में कमर्शियल गुड्स की ढुलाई से अधिकारी अनजान बने हुए हैं।
सूत्रों की मानें तो इस अवैध धंधे में अधिकारी और बड़े राजनेता भी शामिल हैं जिससे यह अवैध कारोबार जोरों से फल फूल रहा है।
नहीं होनी चाहिए ढुलाई
सैकड़ों निजी यात्रियों को जलगांव जिले से औरंगाबाद, पुणे मुंबई, नागपुर, अकोला, अमरावती, सूरत, अहमदाबाद, इंदौर और अन्य स्थानों पर ले जाने के लिए 200 से अधिक बसें शहर से प्रस्थान करती हैं। वहां से बड़े पैमाने पर इन निजी बसों के जरिए पार्सल भेजे जाते हैं। लेकिन इन पार्सलों की कोई फूलप्रूफ जांच नहीं की जाती। पार्सल के अंदर विस्फोटक, मादक पदार्थ कुछ भी रखकर भेजा जा सकता है। बसों में यात्री लगेज की आड़ में बड़े पैमाने पर कॉमर्शियल गुड्स की ढुलाई की जा रही है। इससे हर महीने मोटा व्यवसाय किया जा रहा है। नियमानुसार इन बसों में निर्धारित यात्री लगेज के अलावा व्यावसायिक माल की ढुलाई नहीं होनी चाहिए।
सड़कों पर फ्लाइंग स्कॉट नहीं करत जांच
पिछले महीने के दौरान, नासिक, धुलिया, औरंगाबाद और अन्य महानगरीय क्षेत्रों में राजमार्गों पर निजी यात्री लग्जरी बसों में आगजनीकी घटनाएं हुई हैं। जिसमें कई लोग मारे गए जबकि कुछ बच गए।
आरटीओ विभाग की उदासीनता के कारण इन ट्रैवल बसों में क्षमता से अधिक भीड़ व अन्य कारणों से दुर्घटनाएं हुई हैं।
संबंधित विभाग इन बसों के माध्यम से माल ढुलाई के साथ ही समय-समय पर वाहन की वहन क्षमता, वाहन की स्थिति की जांच में भी लापरवाही बरत रहा है।
परिवहन विभाग का फ्लाइंग एस्कॉर्ट जिन वाहनों से मंथली कार्ड वसूली नहीं की जाती ऐसे वाहनों को महामार्ग को तलाश करने में लगा रहता है। जिसके चलते इन लग्जरी वाहनों की सघन तलाशी अभियान नहीं चलाया जाता और इसके माध्यम से अधिकारी मोटी मलाई काट रहे हैं।
तीसरी आंख को रतौंधी
मुंबई-इंदौर -जलगाँव -औरंगाबाद-नाशिक- नागपुर के बीच होने वाली कमर्शियल गतिविधियों का माल भी बड़े पैमाने पर जलगाँव मंगाया जाता है। कुछ माल पैकेट पर लिखकर मंगाने -भेजने से काफी सस्यात्राता पड़ता है। माल का पार्सल खोलकर चेक नहीं किया जाता। छोटे पैकेट के 150 रुपए और कार्टून के 150- 250 रुपए लगते हैं। पार्सल का बुकिंग काउंटर 24 घंटे खुला रहता है और किसी भी समय बुकिंग करवा सकते हैं, मजे की बात तो यह है कि कमर्शियल लगेज से लदी बस संभागीय परिवहन कार्यालय के सामने से होकर प्रतिदिन गुजरती है, लेकिन जिम्मेदार आंख बंद करे हुए हैंं, इसके अलावा शहर में घुसते ही तीसरी आंख की जद में भी आते हैं, लेकिन तीसरी आंख को रतौंधी होने के चक्कर में वह भी इसे देख नहीं पाती। रेलवे स्टेशन के सामने सुबह के समय बड़े पैमाने पर लग्जरी बसों से कमर्शियल गुड्स उतारा जाता है जिसकी और स्थानीय प्रशासन ने पूरी तरह से लापरवाही बरत रखी है।
यात्रा सुरक्षित नहीं: चेक पोस्ट नहीं होती संघन जांच
इंदौर का सफर करना है तो, जलगाँव ज़िले की सभी तहसीलों में ट्रेवल्स एजेंट और उनके कार्यालय द्वारा टिकट उपलब्ध कराई जाती है, जानकारों की माने तो ऐसे किसी ट्रेवल्स की बसों के संचालन की अनुमति संभाग में नहीं है, बावजूद इसके जलगाँव से यात्रियों को अनेक ट्रेवल्स द्वारा टिकट काटकर दी जाती है,टिकट में स्पष्ट लिखा है कि यात्री अपने सामान की स्वयं रक्षा करें, इससे साफ जाहिर होता है कि जिले मे अवैध बसों का संचालन धड़ल्ले से हो रहा है, आये दिन खान्देश में नशीली मादक पदार्थो और प्रतिबंधित पान मसाला गुटखा का जखीरा पकड़ा जाता है, लेकिन कभी इन बसों की मुक्ताईनगर करकी , रावेर जोरवर्ड इसी तरह नंदुरबार ज़िले में गुजरात से आने वाली बसों की बेडकी और गवली चेकपोस्ट पर जांच पड़ताल नहीं होती कि आखिर इन बसों से आ क्या रहा है, जागरूक लोगों ने कलेक्टर सहित पुलिस अधीक्षक से मांग की है कि यात्री बसों से कमर्शियल गुड्स की अवैध ढुलाई पर रोक लगाई जाये और इन बसों की जांच की जाये कि आखिर इन बसों से बड़े शहरों से क्या भेजा जा रहा है।
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