अशफाक कायमखानी, जयपुर, NIT;
भारत भर की तरह राजस्थान के शेखावाटी जनपद के मुस्लिम समुदाय के युवा तबके में गुटखा व पूड़ी की लत केवल एक रोग की तरह ही नहीं बल्कि महामरी का रुप धारण करने लग गई है। जिसका इलाज आने वाले दिनों में ना चिकित्सकों के पास होगा ओर ना ही सामाज के सुधारकों के बस में।
हालांकि एक सर्वे के मुताबिक गुटखा-पूड़ी की लत स्कूल जाने वाली बेटियों में ना के बराबर है लेकिन स्कूल से दूर रहकर घरों तक सीमित रहने वाली बेटियों व महिलाओं में जर्दा युक्त गुटखा व सादा पूड़ी के साथ साथ 00 जर्दा व पान पराग मसाला की लत आम बात बन गई है। जबकि लड़कों में कुछ अच्छी स्कूल में जाने वालों को छोड़कर बाकी ज्यादातर पढने या काम पर जाने वालों के साथ साथ निठल्ले बैठकर बापू ढाबा में खाने वाले तो गुटखा- पूड़ी के इतने आदी हो चुके हैं कि खाते खाते सोते हैं ओर उठते ही सबसे पहले गुटख उनके मुहं मे जाना जरुरी है। अगर इतिहास पर नजर डालें तो बीड़ी व तम्बाखू चिलम का पीने का हमारे घर व परीवार में चलन था। जिसमें एक चिलम व एक बीड़ी को बांटकर एक साथ अनेक लोग उपयोग करते थे। अब तो उससे खतरनाक गुटके की पूड़ी को अकेला एक साथ ऐसे निगलते हैं जैसे अमृत निगल रहे हैं।
गुटखे-पूड़ी को अमृत की तरह निगलने से कैंसर जैसी घातक बिमारी होना तो आम बात मानी जाती है। लेकिन समय के पहले बुढापा आना व शारिरिक दुर्बलता आना, कंधों का लटकना, पेट का बूरी तरह अंदर तक धसना जैसे आम बात होना पाया जाता है। पिछले दिनों फौज भरती में मुस्लिम युवाओं का दौड़ में बुरी तरह पिछड़ने का मुख्य कारण गुटखा सेवन ही बताया जा रहा है। वहीं अस्पतालों मेंमे मरिजों की बढती तादात में गुटखा सेवन अहम किरदार अदा कर रहा है। दूसरी तरफ ऐसा भी देखने को मिलता है कि गुटखा सेवन के आदी लोगों के चिपके गाल व अंदर दबा पेट,चेहरे पर खून की कमी के धब्बे उसकी खूबसूरती को चट कर रहा तो साथ ही उसकी मर्दानगी पर हमलावर भी होता है।
कुल मिलाकर यह है कि गुटखा व पूड़ी सेवन के आदी होते युवाओं, घर रहती बहनों को बचाने के उपाय अगर जल्द तलाशे नहीं गये तो आने वाले सालों में समुदाय के युवाओं की जवानी को चट करके रख देगा। यानी बाल्यकाल के बाद सीधा बुढापा ही नजर आयेगा। गुटखे के विरोध में कुछ लोग तो बडे सख्त लफ्जों में कहते हैं कि गुटखा-पूड़ी खाकर युवाओं के रोज रोज मरने से बेहतर है कि एक दिन—गोली मार दी जाये——–? दुसरी तरफ जर्दा गुटखा-पूड़ी खाना धर्म के अधार पर मकरु व मना है, और कुछ लोग तो इसे हराम मानते हैं। इसको समझने व अवाम को समझाने का काम धार्मिक विद्वानों की भी जिम्मेदारी बनती है। इसके सेवन को जायज किसी भी रुप में भी ठहराया नहीं जा सकता है।
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