मेहलका अंसारी, बुरहानपुर (मप्र), NIT:
वर्तमान में जिले में अनुकूल मौसम के कारण केला फसल पर (सीएमवी) कूंकबर मोजेक वायरस का प्रकोप अधिक मात्रा में देखा जा रहा है। इस वायरस पर विचार-विमर्श करने एवं रोकथाम के लिए तैयारी को लेकर बैठक में आज सांसद श्री नंदकुमार सिंह चौहान, जिला कलेक्टर एवं दण्डाधिकारी श्री प्रवीण सिंह, खण्डवा से आये वरिष्ठ वैज्ञानिकजन एवं कृषि एवं उद्यानीकि विभाग के अधिकारी भी शामिल रहे। बैठक में सीएमवी वायरस की गंभीरता को देखते हुए सांसद श्री नंदकुमार सिंह चौहान ने कहा कि इस वायरस से केले की फसल को बचाव हेतु किसानों को अधिक से अधिक जागरूक किया जाये तथा यह वायरस वास्तव में टिशुकल्चर पर ही है या दूसरे पौधों पर भी है, यह कैसे आया एवं इस वायरस की प्रमाणिकता के लिए लैब में जांच किया जाना कारगर रहेगा। वायरस संबंधित जानकारी प्रदर्शित करने एवं उसके प्रकोप एवं अन्य जानकारी जिससे उस पर नियंत्रण लाया जा सके के संबंध में वैज्ञानिकों की टीम एवं संबंधित अधिकारियों को सीएमवी वायरस से ग्रसित क्षेत्रों में भ्रमण करने के निर्देश दिये गये। निर्देशित किया गया कि आप फील्ड में जाकर भ्रमण करें तथा शीघ्र ही रिपोर्ट प्रस्तुत करें जिससे कि आगे की रणनीति बनाई जा सकें।
उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण उपसंचालक श्री आर.एन.एस.तोमर ने जानकारी देते हुए बताया कि वर्तमान में जिले में अनुकूल मौसम के कारण केला फसल पर (सीएमवी) कूंकबर मोजेक वायरस का प्रकोप अधिक मात्रा में देखा जा रहा है। इस रोग को स्थानीय भाषा में हरण्या रोग के रूप में भी जाना जाता है।
इस रोग के लक्षण हरी पत्तियों के नष्ट हो जाने पर पीले रंग की धारियां का दिखाई देना, पत्ते पानी के संपर्क में आते है तो पौधा सड़ा हुआ या जला हुआ दिखाई देता है। यह रोग छोटे पौधों पर ज्यादा प्रभावी होता है। यह वायरस मक्का, कपास, ककड़ी वर्गीय फसलों पर सुप्त अवस्था में बैठे रहता है। अनुकूल मौसम 25 से 26 डिग्री सेंटिग्रेड तापमान लगातार बारिश एवं बादल तथा 80 से 90 प्रतिशत आर्द्रता होने पर यह वायरस तीव्र गति से बढ़ने लगता है।
केले में सीएमवी रोग के प्रभावी नियंत्रण के लिए उपाय
- संक्रमित पौधों को जड़ सहित उखाड़कर खेत से दूर ले जाकर जला देना चाहिए एवं बगीचे में प्रतिदिन निरीक्षण कर रोग ग्रसित पौधों को निकालकर उनके स्थान पर रोग रहित पौधे लगाना चाहिए।
- बगीचे में अंतरवर्तीय फसलों के रूप में कददुर्गीय फसलें, टमाटर, सागभाजी फसलों को लगाने से बचें।
- प्रभावित खेतों में बीमारी फैलाने वाले कीटो के नियंत्रण हेतु निम्नानुसार रसायन का छिड़काव करें-इमिडाक्लोप्रिड 6 एम.एल., एफीफेट 15 ग्राम, स्टीकर 15 एम.एम. नीम तेल 50 एम.एल. 15 लीटर पानी में मिलाकर बगीचा साफ करने के उपरांत साफ मौसम में छिड़काव करना चाहिए।
जिला कलेक्टर ने इस बीमारी से रोकथाम हेतु आवश्यक कार्रवाई करने हेतु विभागीय अधिकारियों को निर्देशित किया।
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