हिंदुत्व एवं आदिवासी समुदाय हमारी प्रकृति के रक्षक हैं, विश्व आदिवासी दिवस पर हमें आदिवासी सभ्यता के संरक्षण एवं उनके हितों की रक्षा का संकल्प लेना चाहिये: डॉ अवनीश मिश्रा | New India Times

राकेश यादव, देवरी/सागर (मप्र), NIT:

हिंदुत्व एवं आदिवासी समुदाय हमारी प्रकृति के रक्षक हैं, विश्व आदिवासी दिवस पर हमें आदिवासी सभ्यता के संरक्षण एवं उनके हितों की रक्षा का संकल्प लेना चाहिये: डॉ अवनीश मिश्रा | New India Times

दमोह सांसद प्रहलाद सिंह पटेल केंद्रीय मंत्री प्रतिनिधि डॉ अवनीश मिश्रा ने आदिवासी समाज की विशिष्ट सभ्यता एवं संस्कृति के द्योतक विश्व आदिवासी दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाओं के साथ कहा कि हिंदुत्व एवं आदिवासी समुदाय हमारी प्रकृति के रक्षक हैं। आज 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस पर हम सब उनकी भाषा,संस्कृति,जीवन-शैली एवं कलाओं को संरक्षित करने का संकल्प लेते हैं।
हमारी प्राचीन परंपराओं एवं ऐतिहासिक संस्कृति के प्रतीक, जल-जंगल-जमीन के संरक्षण मे सदैव तल्लीन, प्रकृति के सेवक आदिवासी भाई-बहनों के साथ
आइये, इस अवसर पर दुनिया की सबसे प्राचीन आदिवासी सभ्यता के संरक्षण व आदिवासी हितों की रक्षा का संकल्प लें।

डॉ अवनीश मिश्रा बताया कि आज जबकि हर समाज और व्यक्ति अपने विकास लिए चाँद और मंगल की ऊँचाई छूना चाहता है, लेकिन सिर्फ एकमात्र आदिवासी समाज ही ऐसा है जो सिर्फ इतना चाहता है कि उसके अस्तित्व, अस्मिता और अधिकारों की गारंटी हो तथा उसके जीने–बढ़ने के लिए सामान अवसर हासिल होI एक वास्तविक सभ्य और लोकतान्त्रिक समाज के नागरिक की हैसियत से हमारा दायित्व नहीं बनता है कि अपने ही देश–समाज के अभिन्न अंग, जिस आदिवासी समाज के अस्तित्व अस्मिता और अधिकारों को सुनिश्चित करने का जो संकल्प संयुक्त राष्ट्र संघ ने लिया हम भी संयुक्त राष्ट्र संघ के उस वैश्विक मानवीय संकल्प को आत्मसात करें कि हम आपके साथ हैं।

हिंदुत्व एवं आदिवासी समुदाय हमारी प्रकृति के रक्षक हैं, विश्व आदिवासी दिवस पर हमें आदिवासी सभ्यता के संरक्षण एवं उनके हितों की रक्षा का संकल्प लेना चाहिये: डॉ अवनीश मिश्रा | New India Times

पूरी दुनियाँ में प्रकृति पूजा कौन करता है? सूर्य चन्द्र
नदी पहाड़ वृक्ष जल जम़ीन जंगल अग्नि वायु आकाश पंचमहाभूत तक की पूजा करने वाले को कुछ भी कहे पर है तो हिन्दु
प्रकृति की समझें रचनाएं कौन
सम्यक विकासपथ अपनाए कौन
नेटिव अमेरिकन एक्सप्रेस के शोध के अनुसार 50,00,000 मूलनिवासी आदिवासियों को कोलम्बस के काल में ही मारा गया। ये आँकड़ा केवल उत्तरी अमेरिका का है यदि दक्षिणी अमेरिका के आँकड़े जोड़े जायें तो नरसंहारों का यह आँकड़ा एक करोड़ तक जाता है।

अफगानिस्तान से लेकर बंगाल तक और कश्मीर से लेकर अंडमान तक के लोगों के जीन एक ही वंश के हैं।वनवासी शब्द प्रकृति के अधिक निकट,उचित है वर्तमान में शहरीकरण के चलते पर्यावरण,मानवको छोड़ अन्यजीवों को कष्ट पहुंचारहे हैं जबकि वनवासी समाज प्रकृति पूजा सस्टेनेबल डेवलपमेंट आधारित जीवन व्यतीत करता है जो हिंदुत्व का प्राण है वे वर्तमान ऋषि है।
संस्कृति-कर्मा नृत्य जनजातियों की लोक-संस्कृति का पर्याय है। कर्मा नाच, सतपुड़ा और विंध्य की पर्वत श्रेणियों के बीच दूर-दराज़ के गाँवों से लेकर छत्तीसगढ़,उत्तर प्रदेश,मध्यप्रदेश, ओडिशा,आंध्र प्रदेश,तेलंगाना,झारखंड और महाराष्ट्र के कई इलाक़ों तक प्रचलित है।
मेरी संस्कृति भारतीय संस्कृति दुनिया की अति प्राचीन संस्कृति, दुनिया को ज्ञान देने वाली संस्कृति, दुनिया को विज्ञान देने वाली संस्कृति है।
भारत एक चिरन्तन राष्ट्र है, जिसने हजारों वर्षों से पूरे विश्व को दिशा दी है। एक विशिष्ट सामाजिक सांस्कृतिक चेतना व्याप्त होने के कारण इसका ताना- बाना आज भी उसी स्वरूप में मौजूद है- वह सूत्र है एकात्मता, एकरसता और समरसता का।
रामायण कथा वनवासियों के पराक्रम और अतुल्य सामर्थ्य की कथा है, जिसमें उन्होंने राम के नेतृत्व में पूंजीवाद,आतंकवाद के पोषक साम्राज्यवादी रावण को पराजित कर सोने की लंका को धूलधूसरित कर दिया।
हम सभी भारत वासी आदि काल से भारत में निवास करते हैं। इसलिए हम सब आदिवासी हैं।
हमारी संस्कृति एक है। हमारी पूजा पद्धति भी समान है। हम सब प्रकृति पूजक हैं।
जनजाति समाज में होली दीवाली मुख्य त्यौहार माने जाते हैं, जिसमे नई फसल के पकने के साथ ही गाय बैल की पूजा की जाती हैं एवं अपने देवताओं,पूर्वजों को प्रसाद स्वरूप नई फसल को पका कर अर्पित किया जाता हैं।

भाजपा युवा नेता मीडिया प्रभारी आनन्द दीक्षित ने 9 अगस्त का दिन पूरी दुनिया के सभी आदिवासी समाज के लोगों के इस दिवस को अपनी भाषा–संस्कृति व स्वशासन-परम्परा के संरक्षण और विकास के साथ-साथ जल–जंगल–ज़मीन व खनिज के पारंपरिक अधिकार के लिए संकल्पबद्ध होने का दिवस बताया हैI वर्षो पूर्व जब अंग्रेज इस देश को गुलाम बनाकर शासन करने आये तो यहाँ के आदिवासियों ने ही सबसे पहले सशत्र विरोध कर स्वतन्त्रता संग्राम का बिगुल फूंका था रामचरितमानस में माता शबरी के हाथों जूठे बेर भगवान राम को खिलाना और निषादराज के प्रति प्रेम और आत्मीयता सम्पूर्ण समाज को संदेश है कि हम सब एक है।


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