भाजपा के गठन के बाद नागौर लोकसभा क्षेत्र से पहली बार भाजपा उम्मीदवार नदारद, रालोपा मैदान में | New India Times

अशफाक कायमखानी, नागौर/जयपुर (राजस्थान), NIT:
भाजपा के गठन के बाद नागौर लोकसभा क्षेत्र से पहली बार भाजपा उम्मीदवार नदारद, रालोपा मैदान में | New India Times

1979 में राजनीतिक पार्टी के रुप में गठित भारतीय जनता पार्टी के लिये 2019 का लोकसभा चुनाव ऐसा अजीब संदेश लेकर आया है कि नागौर लोकसभा क्षेत्र से पार्टी ने पहली दफा अपना उम्मीदवार चुनाव में ना उतार कर रालोपा से गठबंधन करके उसके लिये सीट छोड़ कर एक तरह से कांग्रेस उम्मीदवार को मजबूत मानकर रालोपा के सामने समर्पण कर देना माना जा रहा है।

नागोर से भाजपा के निशान कमल पर दो दफा भंवरसिंह डांगावास व उससे पहले एक दफा भानुप्रकाश मिर्धा लोकसभा चुनाव जीत कर सांसद बन चुके हैं फिर भी भाजपा के अपने निशान पर पहली दफा 2019 के लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार नहीं उतारने की चर्चा आमजन मे खासी उछालें मार रही है।
भाजपा के गठन के बाद नागौर लोकसभा क्षेत्र से पहली बार भाजपा उम्मीदवार नदारद, रालोपा मैदान में | New India Times

भाजपा ने 1979 से लगभग सभी लोकसभा चुनाव में नागौर से अपना उम्मीदवार बनाया है लेकिन पूरे समय भाजपा व भाजपा की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ बोलते रहने के बावजूद विधायक हनुमान बेनीवाल से गठबंधन करके उनके सामने घुटने टेकने के खिलाफ भाजपा के अंदर भी काफी नाराजगी दिखाई दे रही है। भाजपा के पूर्व विधायक व पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के करीबी सगीर अहमद ने भाजपा को छोड़ते समय साफ कहा है कि तत्तकालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के खिलाफ बोलने वाले बेनीवाल से भाजपा ने गठबंधन करके ठीक नहीं किया है।
उपरोक्त हालात के अलावा नागौर से चुनाव लड़ रहे रालोपा उम्मीदवार हनुमान बेनीवाल व कांग्रेस उम्मीदवार ज्योती मिर्धा को लेकर भी अनेक दिलचस्प बातें चल रही हैं। विधायक बेनीवाल पहले भाजपा के निशान पर फिर निर्दलीय और 2018 के विधानसभा चुनाव में रालोपा के बोतल निशान पर चुनाव लड़कर विधायक बने हैं और अब 2019 के लोकसभा चुनाव में रालोपा उम्मीदवार के तौर पर टायर के निशान पर चुनाव लड़ रहे है। बेनीवाल के पिता रामदेव चौधरी भी कांग्रेस-भाजपा के खिलाफ विधायक रहे हैं। इसी तरह कांग्रेस उम्मीदवार ज्योती मिर्धा स्वयं कांग्रेस के निशान पर तीसरी दफा लोकसभा चुनाव लड़ रही हैं लेकिन ज्योती के दादा नाथूराम मिर्धा कांग्रेस व कांग्रेस के खिलाफ जनता दल से भी सांसद रहे हैं। वहीं पिता भानुप्रकाश मिर्धा कांग्रेस के खिलाफ भाजपा के निशान कमल चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़कर सांसद बन चुके हैं।

कुल मिलाकर यह है कि भवरसिंह डांगावास व भानुप्रकाश मिर्धा के भाजपा के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव जीत कर सांसद बनने के बावजूद रालोपा के अभी तक सांसद नहीं जीतने पर भी भाजपा के रालोपा के सामने समर्पण करने की चर्चा पूरे क्षेत्र के आमजन की जबान पर देखी व सुनी जा रही है।


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