साबिर खान/ मकसूद अली, मुंबई, NIT:
बहुचर्चित सोहराबुद्दीन-प्रजापति कथित फर्जी मुठभेड़ मामले में 13 साल बाद फैसला आया है। सीबीआई अदालत ने सभी आरोपियों को बरी कर दिया है। सीबीआई के स्पेशल जज एसजे शर्मा ने कहा, ”मैं मारे गए तीन लोगों के परिवार के लिए बुरा महसूस कर रहा हूं, लेकिन लाचार हूं,अदालत सबूतों के आधार पर फ़ैसला करती है, दुर्भाग्य से इस केस में सबूत ग़ायब हैं।”
कोर्ट के फ़ैसले पर सोहराबुद्दीन के भाई रुहाबुद्दीन ने मीडिया से कहा कि ”हम फ़ैसले से संतुष्ट नहीं हैं, फ़ैसले के ख़िलाफ़ हम हाईकोर्ट जाएंगे।
वर्ष 2005 के इस मामले में 22 लोग मुकदमे का सामना कर रहे हैं, जिनमें ज्यादातर पुलिसकर्मी हैं। मुंबई की एक विशेष सीबीआई अदालत इस मामले की सुनवाई कर रही है। इस मामले पर लोगों की विशेष निगाहें लगी हुई थीं क्योंकि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह भी आरोपियों की लिस्ट में शामिल थे। हालांकि, उन्हें 2014 में आरोप मुक्त कर दिया गया था। शाह इन घटनाओं के वक्त गुजरात के गृह मंत्री थे। मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष के करीब 92 गवाह मुकर गए। इस महीने की शुरूआत में आखिरी दलीलें पूरी किए जाने के बाद सीबीआई मामलों के विशेष न्यायाधीश एस जे शर्मा ने कहा था कि वह 21 दिसंबर को फैसला सुनाएंगे।
इस मामले में ज्यादातर आरोपी गुजरात और राजस्थान के वरिष्ठ स्तर के पुलिस अधिकारी हैं। अदालत ने सीबीआई के आरोप पत्र में नामजद 38 लोगों में 16 को सबूत के अभाव में पहले ही आरोपमुक्त कर दिया है। इनमें अमित शाह, राजस्थान के तत्कालीन गृह मंत्री गुलाबचंद कटारिया, गुजरात पुलिस के पूर्व प्रमुख पी सी पांडे और गुजरात पुलिस के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी डीजी वंजारा शामिल हैं।
क्या है पूरा मामला
सीबीआई के मुताबिक आतंकवादियों से संबंध रखने वाला कथित गैंगेस्टर सोहराबुद्दीन शेख, उसकी पत्नी कौसर बी और उसके सहयोगी प्रजापति को गुजरात पुलिस ने एक बस से उस वक्त अगवा कर लिया था, जब वे लोग 22 और 23 नवंबर 2005 की दरम्यिानी रात हैदराबाद से महाराष्ट्र के सांगली जा रहे थे। सीबीआई के मुताबिक शेख की 26 नवंबर 2005 को अहमदाबाद के पास कथित फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी गई और उसकी पत्नी को तीन दिन बाद मार डाला गया और उसके शव को ठिकाने लगा दिया गया।
साल भर बाद 27 दिसंबर 2006 को प्रजापति की गुजरात और राजस्थान पुलिस ने गुजरात – राजस्थान सीमा के पास चापरी में कथित फर्जी मुठभेड़ में गोली मार कर हत्या कर दी। अभियोजन ने इस मामले में 210 गवाहों से पूछताछ की जिनमें से 92 मुकर गए। इस बीच, बुधवार को अभियोजन के दो गवाहों ने अदालत से दरख्वास्त की कि उनसे फिर से पूछताछ की जाए। इनमें से एक का नाम आजम खान है और वह सोहराबुद्दीन का सहयोगी था।
उसने अपनी याचिका में दावा किया है कि सोहराबुद्दीन पर कथित तौर पर गोली चलाने वाले आरोपी एवं पूर्व पुलिस इंस्पेक्टर अब्दुल रहमान ने उसे धमकी दी थी कि यदि उसने मुंह खोला तो उसे झूठे मामले में फंसा दिया जाएगा। एक अन्य गवाह एक पेट्रोल पंप का मालिक महेंद्र जाला है।
सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से केस को गुजरात से बाहर सुनवाई की मांग की थी
सोहराबुद्दीन केस सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सीबीआई को सौंपा गया था। सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में यह मांग की थी कि इस केस की सुनवाई गुजरात के बाहर की जाए। कोर्ट ने इसकी मंजूरी दी और मुंबई में केस ट्रांसफ़र कर दिया गया था। इस केस में कुल 38 लोगों के ख़िलाफ़ चार्ज़शीट दाखि़ल की गई थी।
वर्ष 2014 में अमित शाह, गुलाब चंद कटारिया, गुजरात और राजस्थान के सीनियर आईपीएस सहित कुल 15 लोगों को सबूतों के आभाव में बरी कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई ने जब केस ट्रांसफ़र करने की मांग की थी, तब दलील दी थी कि गवाहों पर दबाव न डाला जाए और वे पलट न जाएं इसके लिए केस की सुनवाई गुजरात से बाहर होनी चाहिए।
लेकिन मुंबई सीबीआई कोर्ट में प्रस्तुत हुए 45 गवाहों में से 38 अपने बयान से पलट गए थे। इन सभी गवाहों ने कोर्ट में दिए अपने बयान में कहा था कि सीबीआई के लिखे गए उनके बयान के बारे में वो कुछ नहीं जानते।
केस से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां
इस केस की जांच करने वाले गुजरात सीआईडी के पुलिस इंस्पेक्टर वीएल सोलंकी ने सीबीआई को दिए अपने बयान में तत्कालीन गृह राज्य मंत्री अमित शाह का नाम लिया था।सोलंकी ने बताया था कि अमित शाह चाहते थे कि एनकाउंटर की जांच बंद कर दी जाए।
सीबीआई की जांच में बाहर आए तथ्यों के मुताबिक राजस्थान में मार्बल के खदान के मालिक विमल पटनी ने सोहराबुद्दीन शेख की हत्या के लिए गुलाब चंद कटारिया से संपर्क साधा था और दो करोड़ में ये काम अमित शाह के पास आया था।
सोहराबुद्दीन शेख की हत्या की प्लानिंग पहले से थी। राजस्थान और गुजरात पुलिस ने ज्वाइंट ऑपरेशन के नाम पर इस हत्या को अंजाम दिया था और इसे एनकाउंटर बताया था। इसके बाद इस केस के अहम गवाह रहे सोहराबुद्दीन के साथी तुलसी प्रजापति सीआईडी को अपना बयान दे पाते, उससे पहले ही उसका भी एनकाउंटर अंबाजी के पास कर दिया गया और इस केस से किसी तरह का संबंध नहीं रखने वाली सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसरबी की भी हत्या बाद में कर दी गई। उनकी हत्या गुजरात आईपीएस अधिकारी डीजी वंजारा के गांव इलोल में की गई थी।
वर्ष 2014 में केंद्र में सत्ता परिवर्तन हुआ और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, उसके बाद तस्वीर बदल गई। अमित शाह, गुलाब चंद कटारिया, मार्बल किंग विमल पटनी, अहमदाबाद जिला बैंक के अध्यक्ष अजय पटेल और निदेशक यशपाल चुड़ासमा को कोर्ट ने सबूतों के आभाव में बरी कर दिया। इसी के साथ सीबीआई की चार्ज़शीट के मुताबिक इस केस में मुख्य भूमिका निभाने वाले गुजरात के आईपीएस अधिकारी अभय चुड़ासमा, नरेंद्र अमीन, डीजी वंजारा, विपुल अग्रवाल, राजस्थान के आईपीएस अधिकारी दिनेश एमएन को भी सबूतों के आभाव में बरी कर दिया गया। इसी तरह इस केस में सीधे तौर पर जुड़े हुए गुजरात के आईपीएस अधिकारी राजकुमार पांडियन को सबूतों के आभाव और उन्हें आरोपी बनाने की इजाजत सरकार से नहीं लेने के चलते केस से बरी कर दिया गया था।
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