विधानसभा चुनाव-2023 में सीकर जिले के नेता पुत्रों के आगे आने की उम्मीद जगी. बालेंदु-गिरीराज-महेश व अंशु 2023 के विधानसभा चुनाव में अपने पिता की जगह लड़ सकते हैं चुनाव | New India Times

अशफाक कायमखानी, सीकर/जयपुर (राजस्थान), NIT:

विधानसभा चुनाव-2023 में सीकर जिले के नेता पुत्रों के आगे आने की उम्मीद जगी. बालेंदु-गिरीराज-महेश व अंशु 2023 के विधानसभा चुनाव में अपने पिता की जगह लड़ सकते हैं चुनाव | New India Times

हालांकि राजस्थान विधानसभा के आम चुनाव होने में अभी पोने दो साल के करीब समय बाकी है लेकिन नेताओं की ढलती उम्र व कमजोर होती सेहत के चलते नेता पुत्रों के मैदान मे आने की उम्मीद पहले की तरह अब आगे भी 2023 के चुनावों में जगने लगी है।

विधानसभा चुनाव-2023 में सीकर जिले के नेता पुत्रों के आगे आने की उम्मीद जगी. बालेंदु-गिरीराज-महेश व अंशु 2023 के विधानसभा चुनाव में अपने पिता की जगह लड़ सकते हैं चुनाव | New India Times

जिले में पूर्व मंत्री गोपाल सिंह खण्डेला के पूत्र बंशीधर बाजिया, पूर्व मंत्री हरलाल सिंह खर्रा के पूत्र झाबरसिंह खर्रा, पूर्व मंत्री व प्रदेशाध्यक्ष रहे चोधरी नारायण सिंह के पूत्र वीरेन्द्र सिंह, पूर्व विधायक मोहन मोदी के पूत्र सुरेश मोदी ने राजनीति मे कदम बढाकर विधायक बन चुके है। जबकि विधायक भंवरु खां के भाई हाकम अली खां विधायक बन चुके है। इसी तरह मंत्री रहे रामदेव सिंह महरिया के भतीजे सुभाष महरिया सांसद व केन्द्रीय मंत्री एव दुसरे भतीजे नंदकिशोर महरिया विधायक रह चुके है।

विधानसभा चुनाव-2023 में सीकर जिले के नेता पुत्रों के आगे आने की उम्मीद जगी. बालेंदु-गिरीराज-महेश व अंशु 2023 के विधानसभा चुनाव में अपने पिता की जगह लड़ सकते हैं चुनाव | New India Times

श्रीमाधोपुर के वर्तमान विधायक दीपेन्द्र सिंह शेखावत की सेहत कुछ कमजोर होने के कारण उनके पूत्र बालेंदु सिंह शेखावत अगला विधानसभा चुनाव पिता की जगह लड़ सकते है। खण्डेला के वर्तमान विधायक महादेव सिंह के पूत्र गिरिराज सिंह पहले भी कांसेस की टिकट पर एक चुनाव लड़ चुके है। जिसके 2023 का विधानसभा चुनाव अपने पिता की जगह खण्डेला से चुनाव लड़ने की सम्भावना जताई जा रही है। इसी तरह सीकर के वर्तमान विधायक राजेन्द्र पारीक की ढलती उम्र व कमजोर सेहत के चलते उनके पूत्र अंशु पारीक ने राजनीति मे उनकी जगह कमान सम्भाल रखी है। 2023 के विधानसभा चुनाव मे अंशु पारीक सीकर से उम्मीदवार बन सकते है। धोद के वर्तमान विधायक परशराम मोरदिया की जगह उनके स्थान पर महेश मोरदिया के चुनाव लड़ने की सम्भावना क्षेत्र मे जताई जाने लगी है।

कुल मिलाकर यह है कि कहने को कोई कुछ भी कहे लेकिन यह सत्य है कि राजनीतिक दल भी अक्सर परिवारवाद को बढावा देना उचित मानता रहा है। वही नेताओं की इच्छा भी हमेशा परिवार के इर्द गिर्द ही घुमकर रह जाती है। वही आम मतदाता भी नेताओं के परिवार से बने उम्मीदवार को तरजीह देते रहे है। इसी के चलते आगामी आम विधानसभा चुनाव मे विधायकों की जगह उनके पुत्रो के विधानसभा चुनाव लड़ने की सम्भावना जताई जाने लगी है।


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