रहीम शेरानी, ब्यूरो चीफ, झाबुआ (मप्र), NIT:
झाबुआ जिले के बामनिया मामा बालेश्वर दयाल स्मृति स्मारिका प्रकाशन समिति के द्वारा पूर्व सांसद मामा बालेश्वर दयाल की 21 वीं पुण्य तिथि के अवसर पर स्मारिका का लोकार्पण किया गया। स्मारिका के प्रधान संपादक डॉ सुनीलम, संपादक पत्रकार क्रतिकुमार वैद्य और प्रबंधक राजेश बैरागी इस अवसर पर मौजूद रहे।
लोकार्पण के अवसर पर मामा जी के अनुयाइयों को संबोधित करते हुए मामा जी की मानसपुत्री बांसवाड़ा से आई मालती बेन ने मामा जी का जीवन परिचय देते बताया कि मामाजी ने गांव-गांव जाकर आदिवासियों को उनके हक के लिए जागरुक किया। उन्होंने कहा कि मामा जी के अनुयायियों की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है क्योंकि मामा जी के प्रति आस्था लगातार बढ़ती जा रही है। उन्होंने भारत सरकार से मामा जी को भारत रत्न देने की मांग की।
सपा के पूर्व विधायक डॉ सुनीलम ने कहा कि सरकारें मामाजी से मौत के बाद भी डरती हैं क्योंकि मामाजी अंग्रेजों से तो लड़े ही आज़ादी के बाद की सभी सरकारों से उन्होंने संघर्ष किया। मामा जी शराब बंदी चाहते थे, उन्हें मानने वाले लाखों आदिवासी आज भी मांस मदिरा का सेवन नहीं करते हैं।
मौत के 21 वर्षों के बाद आज भी मामा जी पूरे भीलांचल के लोगों के दिलों पर राज करते हैं। मामा जी के प्रभाव के चलते भीलांचल में नक्सलवाद और माओवाद नहीं पनपा तथा धर्मांतरण पर रोक लगी।
डॉ सुनीलम ने बामनिया आश्रम के प्रति सरकारों के उपेक्षापूर्ण रवैये पर टिप्पणी करते हुए कहा कि साल में 4 बार 25 हज़ार से अधिक मामा जी के अनुयायी बामनिया आते हैं लेकिन सरकार द्वारा कोई इंतजाम नहीं किये जाते, यहां तक की न्यूनतम सुविधाएं भी प्रदान नहीं की जातीं।सरकार ने मामा जी को भारत रत्न देना तो दूर उन्हें इस लायक भी नहीं माना कि उनकी मूर्ति झाबुआ जिले में कहीं भी लगाई जाए।
उन्होंने झाबुआ जिले तथा बामनिया रेलवे स्टेशन का नाम मामा बालेश्वर दयाल के नाम से किये जाने की मांग की।
उन्होंने कहा कि भीली भाषा और ग्रामीण विकास के लिए जीवन भर काम किया उनकी स्मृति में बामनिया में शोध संस्थान बनाया जाना चाहिए।
डॉ सुनीलम ने कहा कि मामाजी का श्रद्धांजलि कार्यक्रम बामनिया की पंचायत द्वारा किया जाना चाहिए और सभी को आमंत्रित किया जाना चाहिए तथा श्रद्धालुओं का इंतज़ाम किया जाना चाहिए। स्मारिका के संपादक क्रान्तिकुमार वैद्य ने कहा कि मामा जी पर विश्वविद्यालयों में शोध चल रहा है और अब तक 8 किताबें और स्मारिकाएं प्रकाशन समिति द्वारा निकाली जा चुकी हैं।
हमारा लक्ष्य मामा जी के समाजवादी विचारों को जन जन तक पहुंचाना है।
राजेश बैरागी ने कहा कि मामाजी का समाधि स्थल किसी एक व्यक्ति, संगठन या पार्टी का नहीं अपितु करोड़ों मामा जी के भक्तों का है। सभी को समान रूप से मामा जी को श्रद्धांजलि देने का अवसर मिलना चाहिए। उन्होंने कहा कि मामा जी के श्रद्धांजलि कार्यक्रम के आयोजन की जिम्मेदारी पंचायत को लेनी चाहिए तथा भक्तों के लिए भोजन प्रसादी का इंतज़ाम किया जाना चाहिए।
पुंजा भगत ने कहा कि 1953 में यात्रा शुरू हुए, कुछ सालों के बाद नहीं चल पाई फिर होली पर 1969 से शुरू हुई और मामा जी के देहांत के बाद से लगातार चल रही है। प्रतापगढ़ के मास्टर रामलाल निनामा ने कहा कि मामा जी के 150 से अधिक मंदिरों में भजन कीर्तन तो होता ही है हम लोक शिक्षण का काम भी करते हैं।
सुशीला बेन ने कहा कि हर समय मेरी इच्छा रहती है कि मामा जी के धाम में आने वाले श्रीधालुओं को अधिक से अधिक सुविधा मिले लेकिन संसाधनों के अभाव के चलते संभव नहीं हो पाता। उन्होंने सभी पार्टियों से अपील की कि वे मामा जी के विचारों को बढ़ाने के लिए आगे आएं।
स्मारिका लोकार्पण के अवसर पर जीवनलाल मंडलेचा, गोपाल डामोर, वाल जी भाई, सुशीला बेन, यासीन मलवासा, कमलेश विशेष तौर पर मौजूद थे।
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