इम्तियाज़ चिश्ती, ब्यूरो चीफ, दमोह (मप्र), NIT:
शहादत का पर्व मोहर्रम सारे देश में बड़ी शिद्दत के साथ मनाया जा रहा है। इस्लामी कलेण्डर के अनुसार ये माह मोहर्रम है और इसी महीने में पैगंबर हज़रत मोहम्मद (सल.) के नवासे हज़रत इमाम हुसैन को ईराक के कर्बला में शहीद कर दिया गया था। हज़रत इमाम हुसैन अपने नाना पैग़म्बरे हज़रत मोहम्मद (सल.) के सच्चे दीन मज़हबे इस्लाम की रक्षा करते हुए शहीद हो गये थे तभी से दुनियाभर के मुस्लिम भाई माह मोहर्रम की दसवीं तारीख को शहादते इमाम हुसैन को मनाते चले आ रहे हैं और उनकी शहादत को याद करते हुए घरों में कुरानख्वानी, मजलिस, लंगर का आयोजन करते हैं।
वहीं हिंदुस्तान में मोहर्रम पर्व पर ताजियादारी का सिलसिला कायम है जो हज़रत इमाम हुसैन की याद में ताजियादारी की जाती है। अगर ताजियादारी की शुरुआत की बात करें तो भारत के पुराने बादशाह तैमूर लॉन्ग के जमाने से शुरुआत है, वक़्त के साथ साथ देशभर में ताजियों की बनावट और तरह तरह की नक्काशीदार ताजिये बनाये जा रहे हैं तो वही बड़ी कीमती साजसज्जा के साथ चाँदी का ताजिया भी बनाया जाता है जो इलाके में आकर्षण का केंद्र है बना हुआ है।
वर्षों से बनते चले आ रहे चाँदी का ताजिया तो कही राई का ताजिया , काँच का ताजिया और बुर्राख आदि बनाये जाते है और मोहर्रम की एक तारीख से 10 तारीख तक घर घर फ़ातिहा ख़्वानी की जाती है और हजरत इमाम हुसैन साहब के नाम से लंगर बांटा जाता है और दसवीं तारीख को सभी ताजिये पास की नदी तालाबों में ठंडे कर दिए जाते हैं इस तरह से दस दिनों तक बड़ी शिद्दत से शहादते इमाम हुसैन मनाया जाता है।
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