रहीम हिंदुस्तानी/ फिरोज लिमखेडा, दामोह/झाबुआ (मप्र), NIT:
बीते दिनों से दाहोद के डाक्टरों को लेकर शहर में तरह तरह की चर्चाऐ हो रही हैं। यह चर्चाऐ तब आईं जब दाहोद के एक निजी महिला चिकात्सालय में प्रसुती के दौरान जच्चा बच्चा की मौत हो गई। जच्चा बच्चा के परिजनों ने डाॅक्टर के साथ आवेश व गुस्से में आकर हाथा पाई की।
यह बात और है कि जीवन मृत्यु तो इश्वर के हाथ में है लेकिन डाॅक्टर को भी दुनिया के भगवान का दर्जा दिया गया है। भगवान का दर्जा प्राप्त ही अगर यमराज के ऐजेन्ट बनें तो ऐसे दुनिया के भगवान याने डाॅक्टर का क्या हाल करना चाहिये वह तो उस मृतका के परिजनो ने बता दिया है। उक्त घटना के बाद चर्चाओ ने ऐसी कई बातों को जन्म दिया जो नही होनी चाहिये, जिसमे एक चर्चा सबसे ज्यादा चली जिसमें बताते हैं कि डाॅक्टर अपने आर्थिक स्वार्थ के चलते शल्य क्रिया करने से भी नही चुकते बताते हैं। सरकारी दवाखाने में सामान्य ही प्रसुती ज्यादा होती है और बहुत ही कम मामलों में सरकारी डाॅक्टर शल्य क्रियाओ को अंजाम देते हैं लेकिन निजी चिकित्सालयों में बहुत कम सामान्य प्रसुती करवाते हैं एवं सबसे ज्यादा तो शल्य क्रिया की ही प्रसुती करवाते हैं। बताते हैं कि डाॅक्टर अपने आर्थिक स्वार्थ की पुर्ति करने के लिऐ प्रसुता की जबरन शल्य क्रिया करते हैं जिससे उन्हें हजारों रुपए की कमाई होती है। ऐसी दिन में अनेक शल्य क्रिया कर लाखों रूपये प्रति दिन कमाने की होड में रहते हैं। उन्हें तो सिर्फ पैसा ही चाहिये, उनको न किसी की गरिबी की चिन्ता होती है ओर ना ही किसी के शरिर की, जबरन ही शल्य क्रिया के ओजार चला कर पेट काटना यानी कि डाॅक्टर की तिजोरी में हजार रूपयों की गड्डियां भरना है। बताते हैं कि सामान्य प्रसुता को पहले ही कोई इंजेक्शन लगा देते हैं जिससे प्रसुती रूक जाती है फिर डाॅक्टर और उनकी टीम प्रसुता के परिजनों पर दबाव बनाते हैं कि आप जल्दी निर्णय लिजिये कुछ देर बाद हमारी जवाबदारी नही रहेगी, ऐसी अवस्था में जच्चा बच्चा दो में से एक या दोनों की जान का खतरा हो सकता है। बैचारा परिवार डाक्टरों की बातों में आकर हां कह देता है तथा डाॅक्टर का स्टाफ तुरंत पचास हजार या कम ज्यादा रूपये जमा करवाने का कहता है। यहाँ तक बताते हैं कि प्रसुता को दवाखाने ले जाते ही बाॅटल चढाने की तैयारी करते हैं एवं उसी बाॅटल में प्रसुती रोकने वाली दवाई या इंजेक्शन भर देते हैं। अगर ऐसी चर्चा सही हे तो निश्चित ही डाॅक्टर को भगवान का रूप नहीं बल्कि यमराज का रूप कह सकते हैं। यदि ऐसी बातों में सच्चाई है तो निश्चित ही जिला चिकात्सा अधिकारी को शहर भर के तमाम प्रसुती गृहों की जांच पड़ताल कर उन पर कानुनी कार्यवाही करनी चाहिये एवं नियम बनाने चाहिये की प्रसुता को कोई भी दवाई / इंजेक्शन / बाॅटल चढाएं तो उसका लेबल / दवाई की शीशी / इंजेक्शन की बाॅटल एवं लिखी हुई पर्ची परिजन को दी जाऐ जिससे परिजन पता कर सके की प्रसुता को जो दवाई दी है वह सही है और ऐसी कोई दवाई नही है जो प्रसुती रोकती हो जिससे डाॅक्टर जबरन शल्य क्रिया नही करे। इस बाबत शासन प्रशासन के साथ साथ आम जन को भी जागरूक होना पडेगा तभी ऐसी लुट खसोट से आम जन बचेंगे और बहन, बेटी, बहु, शल्य क्रिया के कष्ट से महफुज रहेगी।
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