अशफ़ाक़ क़ायमखानी, सीकर/जयपुर (राजस्थान), NIT:
लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार सुमेधानंद सरस्वती व इण्डिया गठबंधन उम्मीदवार कामरेड अमरा राम की व्यक्तिगत छवि व खेती किसानी एवं स्थानीय समस्याओं के अलावा पीछले दस साल क्षेत्र में हुये विकास के मुद्दे के ईर्द गिर्द घूमता नज़र आने लगा है। इस चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों को कोई अहमियत नहीं मिल पा रही है।
पीछले दस साल के सांसद काल की भाजपा उम्मीदवार सुमेधानंद सरस्वती रेलवे में विकास कराने सहित कुछ कामों की विशेष उपलब्धि बताकर जनता से समर्थन मांग रहे हैं। लेकिन जनता में उनकी विकास का गाथा अभी तक कोई विशेष जगह नहीं बना पा रही है। इसके विपरीत गठबंधन उम्मीदवार कामरेड अमरा राम की संघर्षशील नेता की छवि व छात्र जीवन से लेकर उनके चार दफा विधायक काल के अलावा अनेक लम्बे लम्बे सफल किसान आंदोलन चलाकर सरकारों को झुका कर जनता को राहत दिलाने की छाप मतदाताओं के दिलो पर छाई हुई नज़र आ रही है।
पहले अधीकांश लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी व माकपा का उससे गठबंधन नहीं होने से कांग्रेस उम्मीदवार को मतों का नुकसान होता रहा है। पहली दफा कांग्रेस व माकपा के साथ गठबंधन होने व कामरेड अमरा राम के पक्ष में सभी कांग्रेस नेताओं का एकजुट होना उनके लिये लाभदायक माना जा रहा है। माकपा का कांग्रेस से पहली दफा चुनावों मे गठबंधन हुवा है। इससे पहले 1989 में माकपा का जनता दल व भाजपा के गठबंधन में जनता दल के हिस्से की सीट बीकानेर पर समझोता हुवा तब माकपा उम्मीदवार कामरेड श्योपत सिंह जीतकर सांसद बने थे। श्योपत सिंह की तरह अब कामरेड अमरा राम की जीत की सम्भावना जताई जाने लगी है।
कांग्रेस परिवार के दिग्गज नेता रहे रामदेव सिंह महरिया के भतीजे सुभाष महरिया के भाजपा में आने के बाद सीकर जिले में भाजपा मज़बूत हुई है। भाजपा के पहले सांसद सुभाष महरिया ही थे जो तीन दफा सांसद बने थे। उसके बाद वो भाजपा गुटबाजी के चलते चुनाव हारे व उनकी टिकट कटती रही। इसी तरह जिला कांग्रेस पहले रामदेव सिंह महरिया व चोधरी नारायण सिंह खेमे में बंटी होती थी। दोनो गुट एक दुसरे को मात देने के लिये समय समय पर माकपा को विधानसभा चुनाव में मदद करते थे। जब धोद विधानसभा से कामरेड अमरा राम चुनाव लड़ते थे तब महरिया गुट को मात देने के लिये उन्हें नारायण सिंह गुट की मदद मिलती थी।
2008 में अमरा राम जब दांतारामगढ़ विधानसभा से चुनाव लड़ने गये तब महरिया गुट की मदद अमरा राम को मिली तो नारायण सिंह चुनाव हारे व अमरा राम चुनाव जीते। इसी तरह अमरा राम जब धोद से जीतते थे तब रामदेव सिंह महरिया उनसे चुनाव हारते थे। चोधरी नारायण सिंह व उनके पूत्र वीरेन्द्र सिंह के सामने अमरा राम चार चुनाव दांतारामगढ़ से लड़ने के बावजूद चौधरी नारायण सिंह व उनके विधायक पूत्र वीरेन्द्र सिंह जी जान से अमरा राम के पक्ष में इस चुनाव में समर्थन जुटा रहे हैं। जबकि रामदेव सिह महरिया के भतीजे पूर्व केन्द्रीय मंत्री भाजपा में हैं। पहले जिस तरह कांग्रेस गुटबाजी में रहती थी। आज कांग्रेस एकजुट तो भाजपा गुटबाजी में फंसी हुई है।
जब सीकर लोकसभा क्षेत्र में करीब तेराह लाख मतदाता होते थे तब 1998 में करीब सात लाख मतदाताओं ने मताधिकार का उपयोग किया था। उस 1998 के लोकसभा चुनाव में कामरेड अमरा राम को करीब दो लाख वोट मिले थे। तब किसी तरह का गठबंधन नहीं था सब अलग अलग दल चुनाव लड़े थे। वर्तमान में बाईस लाख साठ हजार मतदाता हैं। जिनमें से चोदाह लाख कृषि आधारित किसान (जाट, यादव, गुर्जर व अन्य) एससी-एसटी व मुस्लिम मतदाता है। वही आठ लाख स्वर्ण व मूल ओबीसी मतदाता करीब है। चोमू-श्रीमाधोपुर व नीमकाथाना के बेल्ट में यादव वोट भी अच्छे खासे हैं। श्रीमाधोपुर से निर्दलीय उम्मीदवार रहे बलराम यादव व चोमू से रालोपा उम्मीदवार रहे छुट्टन यादव का समर्थन गठबंधन उम्मीदवार अमरा राम के पक्ष में होने से उस क्षेत्र में उनकी स्थिति मज़बूत मानी जा रही है।
भाजपा उम्मीदवार सुमेधानंद के समर्थन में केन्द्रीय गृहमंत्री अमीत शाह रोड शो व मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा सीकर व लक्ष्मणगढ़ में सभा कर चुके हैं। गठबंधन उम्मीदवार के समर्थन में माकपा नेता वृदा कारात, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व सचिन पायलट सभा कर चुके है। दोनों उम्मीदवार लगातार प्रचार करके समर्थन जुटाने में लगे हुये हैं।
कुल मिलाकर यह है कि सीकर की सीट गठबंधन में माकपा के हक में जाने की घोषणा के समय भाजपा उम्मीदवार की बड़ी लीड से जीतने की चर्चा थी। लेकिन उम्मीदवारों की व्यक्तिगत छवि व स्थानीय मुद्दों तक चुनाव सिमटने के कारण अब कामरेड अमरा राम का पलड़ा भारी होने की चर्चा होने लगी है। राजस्थान की पच्चीस सीटों में से गठबंधन में कांग्रेस बाईस पर व एक सीकर पर माकपा, एक नागौर पर रालोपा व एक बांसवाड़ा-डूंगरपुर पर बाप चुनाव लड़ रही है।
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