अशफ़ाक़ क़ायमख़ानी, ब्यूरो चीफ, जयपुर (राजस्थान), NIT:

परम्परागत रुप से भाजपा के मुकाबले कांग्रेस का मतदाता समझे जाने वाले मुस्लिम समुदाय में से निकल कर भाजपा पार्टी में रहकर दो दफा विधायक बनकर दोनों दफा वसुंधरा राजे सरकार में नम्बर टू मंत्री रहने वाले यूनुस खान को दो महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में लगता है कि भाजपा खोने जा रही है। वसुंधरा राजे खेमे के प्रमुख नेता यूनुस खान की राजनीति पार्टी में राजे के पार्टी में प्रभाव के बने रहने पर निर्भर करती है। कल प्रधानमंत्री के जयपुर आकर सभा करने के समय उनके द्वारा राजे से किनारा करने के बाद अब राजे समर्थकों के लिये टिकट पाना काफी मुश्किल होता नजर आने लगा है। प्रधानमंत्री की सभा में ऐनवक्त पर पीएमओ से फोन आने पर नागौर की पूर्व सांसद जो हाल ही में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाली ज्योति मिर्धा को मंच पर बैठाना भी कम से कम नागौर की राजनीति को प्रभावित करेगा।
डीडवाना विधानसभा से चार चुनाव लड़ चुके यूनुस खान को 2018 मे डीडवाना की बजाय टोंक से सचिन पायलट के सामने भाजपा ने अपना उम्मीदवार बनाया था। जहां से वो चुनाव हार गये। यूनूस खान को डीडवाना से 2018 मे टिकट ना देने पर समुदाय मे उनके समर्थकों मे भाजपा के प्रति असंतोष कायम होने पर डीडवाना के साथ साथ जायल, नावा, लाडनूं व लक्ष्मनगढ विधानसभा मे विपरीत असर पड़ा। जहां से कांग्रेस उम्मीदवार बडे अंतर से चुनाव जीतकर विधायक बन गये।
पूर्व मुख्यमंत्री राजे को भाजपा द्वारा साइड लाइन करने के संकेत मिलने पर उनके समर्थक अब अपनी रणनीति बदलते नजर आ रहे है। पूर्व मंत्री यूनुस खां पांच अक्टूबर को डीडवाना मे वसुंधरा राजे की विशाल सभा करके अपनी ताकत दिखाते नजर आयेंगे। वहीं दो अक्टूबर को बाडमेर में वसुंधरा राजे की सभा का जिम्मा भी यूनुस खान के पास बताते हैं।
पहले के मुकाबले वर्तमान में मुस्लिम समुदाय का भाजपा के पक्ष मे मतदान करना टेढ़ी खीर माना जाता है। ओर जब भाजपा किसी एक मुस्लिम को भी उम्मीदवार नही बनाती है तो उस हालत मे तो भाजपा के पक्ष में मतदान पक्ष मे कराना नामुमकिन नजर आता है। प्रदेश मे कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं मे जनाधार व मतदाताओं का मूड बदलने वाला कोई दमदार नेता नजर नहीं आता। वो कांग्रेस के खिलाफ मतदान करवाने मे असक्षम नजर आते है। प्रदेश मे दो दलीय व्यवस्था रहने के चलते मुस्लिम मतदाता का मिजाज अपने आप कांग्रेस की तरफ रहता है। प्रदेश मे केवल मात्र यूनुस खा एक मात्रा नेता है जो भाजपा के पक्ष मे आठ-दस विधानसभा क्षेत्रो मे कम ज्यादा तादाद मे भाजपा के पक्ष मे मतदान करवा सकते है।
हालांकि 2023 के विधानसभा चुनाव में भाजपा द्वारा किसी मुस्लिम को उम्मीदवार बनाने की सम्भावावना क्षीण नजर आती है। उस हालत मे अगर यूनुस खा को भाजपा से टिकट नहीं मिलती है तो वह निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं। चर्चा तो यह भी है कि भाजपा से टिकट नहीं मिलने पर यूनुस खान को कांग्रेस नागौर या चूरू से अपना उम्मीदवार भी ऐनवक्त पर बना सकती है।
कुल मिलाकर यह है कि भाजपा किसी भी मुस्लिम को प्रदेश में कहीं से भी उम्मीदवार नहीं बनाने की तरफ चल चुकी है। 5 अक्टूबर को डीडवाना में राजे की विशाल सभा करके यूनुस खान अपना दम दिखाकर अगला कदम क्या उठाते हैं उस पर सबकी नज़र रहेगी। भाजपा उम्मीदवार बनते है या निर्दलीय चुनाव लड़ने का संकेत देते हैं या फिर ऐनवक्त पर कांग्रेस इन्हें नागौर या चूरू से चुनाव लड़ने का आफर करती है। वैसे धीरे धीरे एक एक करके केन्द्रीय स्तर पर भी भाजपा अपने मुस्लिम नेताओं को साइड लाइन कर चुकी है। ऐसे ही हालात राजस्थान में भी नजर आने लगे हैं।
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