जिले में मलेरिया का ग्राफ हो रहा है कम, मरीजों की संख्या में आ रही है कमी, झाबुआ जिले को वर्ष 2027 तक मलेरिया मुक्त करने का है लक्ष्य | New India Times

रहीम शेरानी हिन्दुस्तानी, ब्यूरो चीफ, झाबुआ (मप्र), NIT:

जिले में मलेरिया का ग्राफ हो रहा है कम, मरीजों की संख्या में आ रही है कमी, झाबुआ जिले को वर्ष 2027 तक मलेरिया मुक्त करने का है लक्ष्य | New India Times

कभी मलेरिया की दृष्टि से अति संवेदनशीलन झाबुआ जिले में साल दर साल मरीजों की संख्या में कमी आ रही है। आठ साल पहले तक जहां हर साल 10 हजार से ज्यादा मलेरिया रोगी मिला करते थे तो वहां इस साल बीते तीन महीने में केवल तीन मरीज मिले हैं। हाई रिस्क गांवों की संख्या भी 588 से घटकर महज 11 रह गई है। इन आंकड़ों के आधार पर स्वास्थ्य विभाग वर्ष 2027 तक जिले को मलेरिया मुक्त बनाने का दावा कर रहा है।
इस बदलाव के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा मलेरिया के उपचार में तेजी लाई गई है। यानी जैसे ही मलेरिया की पुष्टि हुई, वैसे ही एएनएम और आशा कार्यकर्ता को मरीज के उपचार के लिए लगा दिया। वे मरीज का लगातार फॉलोअप करती रही कि यदि वाइवेक्स मलेरिया है तो वह 14 दिन तक नियमित दवाई लें और फैल्सीफेरम मलेरिया होने पर एसीटी थैरेपी लें। इसका परिणाम ये रहा कि मलेरिया परजीवी का संक्रमण फैलने की बजाए वहीं रुक गया और धीरे- धीरे मरीजों की संख्या में कमी आती चली गई। वर्तमान में जो 11 हाई रिस्क गांव रह गए हैं ,उनमें सेमलखेड़ा, हीराखांदन, देवझिरी, उमरी, खेरमाल, नवागांव, रोजिया, आंगलियापाड़ा, खांदन, महुडीपाड़ा और डाडोरी शामिल है।

क्लोरोक्वीन दवा हुई बेअसर

हाईरिस्क क्षेत्र में मलेरिया की मुख्य दवा क्लोरोक्वीन बेअसर हो गई है। बताया जाता है कि लगातार दवाई के उपयोग से इसके प्रति मलेरिया परजीवी में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो गई है। लिहाजा अब मरीजों को स्पेशल एसीटी ट्रीटमेंट दिया जा रहा है। यह अलग-अलग दवाइयों का कॉम्बिनेशन है जो मलेरिया रोगी को दी जाती है।

कैसे घोषित करते हैं हाई रिस्क क्षेत्र

मलेरिया रोग के हिसाब से किसी क्षेत्र को हाई रिस्क घोषित करने के शासन के अपने मापदंड हैं। इसके तहत तीन साल के मलेरिया रोगियों के आंकड़े देखे जाते हैं। मलेरिया के केस में यदि वृद्घि होती है तो फिर क्षेत्र को हाई रिस्क घोषित कर दिया जाता है।

इन पांच प्वाइंट से समझिए क्यों कम हुई जिले में मरीजों की संख्या
●जनजागरूकता: लोगों में पहले के मुकाबले काफी जागरूकता आई है।
●प्रशिक्षण: एएनएम और आशा कार्यकर्ता को खास तौर पर प्रशिक्षित किया गया है। ●गांव में ही टेस्ट: अब गांव में ही एएनएम और आशा कार्यकर्ता टेस्ट कर लेती है। ●उपचार: पॉजिटिव मरीज मिलने पर तत्काल उसका उपचार शुरू कर दिया जाता है। ●मच्छरदानी का उपयोग: स्वास्थ्य विभाग द्वारा करीब 10 लाख मच्छरदानियों का वितरण किया जा चुका है। ग्रामीण भी अब इनका उपयोग करने लगे हैं।

साल दर साल किस तरह मलेरिया मरीजों की संख्या में कमी आई

वर्ष कुल टेस्ट पॉजिटिव पीवी पीएफ

2015 194998 11617 6040 5577
2016 177571 7306 4302 3004
2017 156670 2314 1636 678
2018 168797 698 420 278
2019 172227 355 212 143
2020 131795 150 90। 60
2021 199704 57 43। 14
2022 234066 70 55। 15
(स्त्रोत:मलेरिया विभाग)
मच्छरों से निपटने के लिए यह करें उपाय.
●मच्छरदानी का उपयोग करें। खिड़कियों में मच्छररोधी जाली लगाएं।
●शाम को नीम की पत्ती का धुआं करें।
●पानी के मटके व टंकियों को ढंककर रखें। प्रति सप्ताह उनकी सफाई करें।
●टूटे-फूटे टायर, बर्तन, फूलदान आदि में पानी जमा न होने दें।
●घर के आसपास नाली में पानी जमा न होने दें। हर सप्ताह नालियों में जला हुआ ऑइल डालें।
●जलाशयों में लार्वाभक्षी गंबूसिया मछली डालें।
●बुखार के रोगियों को तत्काल आशा कार्यकर्ता, एएनएम से या शासकीय चिकित्सालय में जांच व उपचार कराएं।
●वाइवेक्स मलेरिया होने पर 14 दिन और फैल्सीफेरम मलेरिया होने पर 3 दिन का पूर्ण उपचार लें।
●गांव में जिन कुओं व तालाबों का उपयोग नहीं किया जाता और वे मच्छरजन्य परिस्थितियों को जन्म देते हैं तो उनका जिर्णोद्धार करवाएं।
फैक्ट फाइल
375 ग्राम पंचायत
832 गांव
10,25,048 जिले की आबादी
11 हाईरिस्क गांव

2027 तक जिले को मलेरिया मुक्त बनाना है। हमारा लक्ष्य 2027 तक झाबुआ जिले को मलेरिया मुक्त बनाना है। इस दिशा में हम तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। पिछले साल 70 मलेरिया मरीज मिले थे। इस साल मार्च तक सिर्फ तीन मरीज मिले हैं: डॉ. डीएस सिसोदिया, जिला मलेरिया अधिकारी, झाबुआ

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