फोरलेन में बदली सड़कें लेकिन बायपास की रफ़्तार धीमी, तोड़े गए नारियल वाले कामों का कब कटेगा फीता??? | New India Times

नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:

फोरलेन में बदली सड़कें लेकिन बायपास की रफ़्तार धीमी, तोड़े गए नारियल वाले कामों का कब कटेगा फीता??? | New India Times

एकनाथ खडसे और सुरेश जैन के सक्रिय होने के बाद राज्य सरकार ने जलगांव शहर के अंदरूनी सड़कों के निर्माण के लिए 100 करोड़ रुपए का फंड दिया है। PWD डिवीजन ऑफिस में गैरकानूनी तरीके से चार्ज संभालने वाले अफसरों को लेकर भी कोई ठोस कार्रवाई की जाने की मांग उठने लगी है। उद्धव ठाकरे सरकार के समय जनता की आड़ में ठेकेदारों की वकालत करने वाले आंदोलन जीवी नेताओं की आज बल्ले बल्ले है। जिले के दोनों मंत्रियों गिरीश महाजन और गुलाबराव पाटिल की ओर से विकास कार्यों को लेकर नारियल तोड़ो कार्यक्रम ताबड़तोड़ जारी है। मंत्रियों के निर्वाचन क्षेत्रों में 2019 से 22 तक जिन कामों के नारियल तोड़े गए थे उनके काम ठप से हैं।

फोरलेन में बदली सड़कें लेकिन बायपास की रफ़्तार धीमी, तोड़े गए नारियल वाले कामों का कब कटेगा फीता??? | New India Times

जामनेर की बात करें तो शहर में दाखिल होने वाली सभी सड़कें फोरलेन बनाई जा चुकी हैं लेकिन दाखिल होने के बाद शहर के भीतर की नागरी बस्तियों की हालत नहीं बदली है। 10 से 15 हजार तक कि मुस्लिम आबादी वाले जुना बोदवड रोड इलाके में बुनियादी विकास की स्थिति तो इतनी खराब है की इसे दिखाने के लिए लोगों को सोशल मीडिया का सहारा लेना पड़ रहा है। मुख्य धारा के माध्यम से पार्टी और सरकारी विज्ञापनों की लालच में समस्याओं को लेकर एक लाइन तक नहीं लिख पा रहे हैं। इस इलाके में जो कुछ भी काम किए गए हैं वो दलगत भ्रष्टाचार के हत्थे चढ़ गए हैं। पूरे शहर में स्वछ भारत के नाम पर ठेके पर दिए शौचालय और स्वच्छता अभियान से जुड़े संदेशों से रंगी दीवारें बस इतनी ही उपलब्धि है। सिटी का सारा गीला-सूखा कचरा शहर के बाहर डंपिंग ग्राउंड पर खूलेआम जलाया जा रहा है। बगल में बना दो करोड़ का रिसायकल प्लांट बंद है। कांग नदी पर 6 करोड़ रुपए से मंजूर ब्रिज का काम डेढ़ साल से शुरू ही नहीं हुआ है। भुसावल बायपास का काम दो सालों से चल रहा है कब पूरा होगा पता नहीं, इसका ठेका नेताजी के नजदीकी रिश्तेदार ने लिया है। दत्त चैतन्य नगर में 2005 में बना महात्मा ज्योतिबा फूले टाउन हॉल प्रशस्त लायब्रेरी में तब्दील होने की प्रतिक्षा कर रहा है। क्रीड़ा मंत्रालय का प्रभाव व्यक्त करने के लिए स्टेडियम का प्रस्ताव अखबारों की खबरें बना बाद में सब कुछ हवा हो गया। सभागारों के नाम पर कॉलोनियों के ओपन स्पेसेस पर डोम चढ़ा दिए गए हैं।


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