अबरार अहमद खान /मुकीज़ खान, भोपाल (मप्र), NIT:
देश डिजिटल इंडिया की ओर बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। कई स्कूलों में पढ़ाई का तरीका भी अब डिजिटल हो गया है। बच्चों के होमवर्क से लेकर पैरेंट्स मीटिंग की जानकारी स्कूल डायरी से निकलकर अब सीधे मोबाइल पर दी जाने लगी है। इसके बावजूद कई प्राइवेट स्कूलों के बच्चे अब भी नन्हे कंधों पर बैग का भारी बोझ उठाने पर मजबूर हैं। नौनिहालों का बचपन स्कूल बैग के बोझ के तले दबा जा रहा है। जब बस्तों का बोझ उनके कंधे नहीं झेल पाते तो हाथों का सहारा देकर बच्चों को साधना पड़ता है। बच्चों के कंधे व कमर बस्तों के बोझ से दर्द कर रहे हैं। लेकिन इसकी चिंता न तो स्कूल संचालकों को है और न ही जिले के जिम्मेदार बोझ तले दबते बचपन की सुध ले रहे हैं।
पाठ्यपुस्तकों के अलावा वर्कबुक, नोटबुक, खाने का डब्बा, पानी की बोतल और कई बार विशेष नोटबुक भी होते हैं। इस तरह से छोटे बच्चे औसतन पांच-छह किलो तक भारी बस्तों को अपने कंधे पर ढोने को मजबूर होते हैं। भारी बस्ते की वजह से न केवल बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ रहा है, बल्कि उनकी सेहत पर भी फर्क पड़ रहा है।
Discover more from New India Times
Subscribe to get the latest posts to your email.