वी. के. त्रिवेदी, ब्यूरो चीफ, लखीमपुर-खीरी (यूपी), NIT:
लखीमपुर-खीरी जनपद में ब्लाक प्रमुख के चुनाव के मद्देनजर सभी ब्लॉकों में प्रमुख बनने की होड़ में लगे दिग्गजों का सियासी खरीद-फरोख्त का व्यवसाय जारी है? क्षेत्र पंचायत सदस्यों के बारे में खबर है कि कई तो बिक चुके हैं कई बिकने की लाइन में हैं! जबकि ईमानदार बीडीसी असमंजस में हैं। सीधा फंडा है, यह पचास हजार लो सर्टिफिकेट जमा करो, बाकी हिसाब किताब वोट के बाद?
ब्लाक प्रमुख के पद का चुनाव वैसे हमेशा से शासन सत्ता व धनबल का चुनाव माना गया है। वर्तमान में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के संपन्न होने के बाद अब ब्लॉक प्रमुख का चुनाव जनपद के सभी ब्लाकों में होना है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार ब्लाकों में ब्लाक प्रमुख बनने की होड़ में जुटे दिग्गजों ने अभी से एड़ी चोटी का जोर लगाना शुरू कर दिया है. सूत्रों के मुताबिक इस दौरान क्षेत्र पंचायत सदस्यों को किसी भी तरह मान मनौती पूरी करके अपने पक्ष में लाने के लिए प्रयास जारी है।
खबर है कि पंचायत सदस्यों को लालच की दवा की घुट्टी पिलाई जा रही है, यही नहीं सीधा साफ बोला भी जा रहा है कि जब वोट पैसे से मिले तो उसके लिए किसी का चरण वंदना करने की क्या जरूरत है। कई क्षेत्र पंचायत सदस्यों ने अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया कि भाई ब्लाक प्रमुख बनने के लिए वोट खरीद-फरोख्त का जो व्यापार चल रहा है उसमें साफ साफ बोला जाता है कि 50,000 रुपए नगद लो और अपना सर्टिफिकेट हमारे पास जमा करो बाकी का बचा हुआ रूपया आपको वोट के बाद अदा कर दिया जाएगा।
सियासी अखाड़े के दिग्गज अथवा प्रमुख प्रत्याशी लोग इस बात की मुहिम में जुटे हुए हैं कि ब्लॉक में जितने भी बीडीसी हो उसमें से अधिक से अधिक सदस्यों को अपने पाले में लाने की सारी कोशिशों को सफल जामा पहना दिया जाए। सूत्रों का दावा है कि इस समय पंचायत सदस्यों को एक लाख से लेकर 2 लाख रुपए तक में खरीदने की बिसात बिछाई जा रही है.
फिलहाल कोई भी बीडीसी खुलकर यह बात कहने को तैयार नहीं है लेकिन जिस प्रकार से जिले में विभिन्न ब्लाकों में यह बीडीसी खरीदने व बेचने का गोरखधंधा कुछ माननियों के द्वारा किया जा रहा है वह काफी शर्मशार करने वाला कृत्य है।
बीडीसी खरीद-फरोख्त की आहट आम जनता को भी है.
स्थिति यह है कि कई बार तो आम जनता चुने गए क्षेत्र पंचायत सदस्य से सीधे बोल देती है, भैया बिक गए हो कि अभी बच गए हो, कोई दाम देने आया क्या? अरे देख लेना जो मिल जाए ले लेना कम से कम चुनाव का खर्चा तो निकल जाएगा, ब्लॉक प्रमुख बनने के बाद क्षेत्र पंचायत सदस्यों को आखिर पूछता कौन है?
वहीं दूसरी ओर इस खरीद-फरोख्त की चुनावी सरगर्मी में सबसे ज्यादा अगर कोई परेशान है तो वह है ईमानदार एवं चरित्र के उज्जवल जीते हुए बीडीसी! ईमानदार क्षेत्र पंचायत सदस्यों का कहना है कि जब बहुमत के आधार पर अन्य सदस्य संबंधों अथवा रूपयों पैसों या फिर अन्य लालच के चलते बिक जाएंगे तब ब्लाक प्रमुख के पद पर सही व्यक्ति कहाँ बैठ पाएगा!
जाहिर है कि धनबल अथवा अन्य राजनीतिक बल से जीता हुआ व्यक्ति आगे चलकर अपनी मनमानी पर उतारू होगा.
फिलहाल सियासत की इस शर्मसार मंडी में कई प्रत्याशियों ने तो अपने खास लोगों को क्षेत्र पंचायत सदस्यों को खरीदने के लिए लगा रखा है। फिलहाल कई ऐसे होशियार घाघ हैं जिनके पास एक भी बीडीसी मौजूद नहीं है लेकिन वह भी 10 बीडीसी जेब में रख कर उन्हें बिकवा देने की मुहिम जारी रखे हुए हैं.
सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार ऐसे कई जालसाज अथवा ठग किस्म के दलाल कई नये नवेले प्रत्याशियों का पैसा भी हजम कर चुके हैं। गौरतलब है कि ब्लाक प्रमुख के चुनाव में सत्ता की हनक व नेतागिरी की धमक तो चलेगी ही? सबसे ज्यादा अगर कोई काम करेगा तो वह करेंगे नोटों की चमक. वहीं दूसरी ओर कई क्षेत्र पंचायत सदस्यों का यह भी कहना था कि भैया हम भी सोच रहे हैं जो मिल जाए उसे चुपचाप अंदर करें बाकी बाद में तो ब्लॉक के चक्कर काटने ही पड़ेंगे?
ऐसे में स्पष्ट है कि 50 हजार से लेकर 75 हजार तक की पेशगी की रकम बांटी जा रही है. जनता इसे जानती है लेकिन कुछ बोल नहीं सकती. दरअसल यह बीमारी गांव की पंचायती राजनीति में कोढ़ बन गई है। प्रधान अथवा बीडीसी, जिला पंचायत सदस्य के चुनाव में मतदाताओं को भी खरीदा और बेचा जाता है जबकि कई मतदाता ऐसे भी हैं जो स्वयं भी दारू, साड़ी, रुपया पर बिकने को हमेशा तैयार रहते हैं और बिक भी जाते हैं.
स्पष्ट है कि जब जनता में ही बिकने वालों की बहुतायत संख्या है तो उनका चुना हुआ नेता कैसा निकलेगा इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है क्योंकि जैसी जनता वैसा उसका नेतृत्व.
फिलहाल क्षेत्र पंचायत सदस्यों से मुलाकात के दौरान अथवा फोन के दौरान केवल एक बात बोली जाती है क्या है तैयार हो तो बोलो क्योंकि हमारी बात दूसरे बीडीसी से भी चल रही है? 50 नगद लो, सर्टिफिकेट जमा करो बाकी वोट दे दोगे उसके बाद हिसाब किताब कर दिया जाएगा?जाहिर है कि त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव अथवा गांव क्षेत्र की सरकार के लिए यह खरीद-फरोख्त का रोग वास्तव में
हमारे लोकतंत्र पर एक ऐसा काला धब्बा है जिसे शायद ही कभी आगे दूर किया जा सके।
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