Edited by Pankaj Sharma, NIT:
लेखक: ममता वैरागी
गरीब घर और पिता मजदूर आर्थिक स्थिति के कारण पिता ने बेटी से कहा मंदिर के आसपास रहाकर कभी कुछ कुछ धनी लोगों की वजह से कुछ रूपये मिल जाए। बेटी शाला जाती थी, वहां उसकी मेम ने समझाया था कि हमें भूखों मर जाना चाहिए पर भीख नहीं मांगना चाहिए, अपने को ईश्वर ने दो हाथ दो पैर दिए फिर भीख क्यों मांगें, कुछ काम करके भी रूपये कमा सकते हैं। नन्ही बेटी को अपनी मेम की बात दिल दिमाग पर छाई हुई थी और पिता की बात कि नवरात्रि में मंदिर जाए ताकि कुछ पैसे मिल जाएं।
पहले तो नादान को समझ नहीं आया फिर मेम से ही पुछ लिया कि ऐसे में मैं क्या करूं?
तब मेम ने कहा तुम एक काम करना कल मैं मंदिर आऊंगी तुम वहां मिलना, और दुसरे दिन मेम मंदिर गईं और पुजारी जी से पुछा कि दिन भर भक्त आ रहे हैं और इतना चढ़ावा चढ़ा रहे हैं इसका आप क्या उपयोग करते हैं? पंडित जी ने कहा नारियल से लगाकर सारा सामान फिर बिक जाता है और फिर दुसरे लोग उन्हें खरीद लेते हैं। मेम ने कहा यह नन्हीं बालिका है आप इसे सभी हार जो नीचे बाजार में जाते हैं दें दिया करें और पंडित जी मान गये फिर उस बालिका को समझाया और मेम चली गईं।
आज नवरात्रि का आखिरी दिन था सो मेम फिर आईं, उसने उस बेटी से पुछा सब ठीक है तो बेटी ने कहा मेम बहुत खुब आपके कारण मेरे पास रोज के सौ रुपए आ जाते हैं और पिता भी खुश हैं, अब मैंने भी कुछ सोचा है, मेम ने कहा क्या तब उसने बताया मेम सभी लोग छोटी छोटी चुनर मां के लिए ले जा रहे थे उन्हें इक्ट्ठा करके मैंने एक बड़ी साडी बना ली और मां को पहनने को दी। अरे वाह यह तो बहुत अच्छा कार्य कर रही हो, तब बेटी बोली मेम जिसके पास आप जैसे शिक्षक हो वह भला मांग कर क्यों खाए, स्वाभिमान से कैसे रूपये कमाते हैं आपने बतलाया, पंडित जी सब बातों को गौर से सुन रहे थे। अब बोले क्या करें बहनजी लोग पत्थर की मुर्ति पर तो दो सौ तीन सौ रूपये खर्च कर देते हैं पर इंसान को एक रूपया नहीं दें सकते। यह बेटी नौ दिन मंदिर में मां के समान रही है। मैं भी बहुत गलत सोचता था इस बेटी की लगन और मेहनत की तारीफ करता हूं, सच बहनजी, इतने वर्षों तक मां की सेवा की पर असली मां इस बच्ची के रुप में मेरे साथ रही। मेम ने बच्ची के सर पर हाथ फेरते हुए शाला आने को कहा और बच्ची बडे ही स्वाभिमान के साथ जोर से बोली मेम मुझे पढ़ना है मैं पढूंगी और बहुत बड़ी मेम बनूंगी और लोगों को बताऊंगी, कि कुछ भी कमाई करके खाना और खूब पढ़ना चाहिए नहीं तो इस तरह हाल हो जाते हैं। इस तरह संस्कारों पर आधारित शिक्षा से एक बच्ची बड़ी होकर जज बनी, पर उसे वह बात याद है आज तक और वह मेम भी।
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