अशफाक कायमखानी, सीकर/जयपुर (राजस्थान), NIT:
मुद्दों की पहचान कर लम्बा आंदोलन चलाते हुये सरकार को झूका कर पीड़ित लोगों को राहत दिलवाने की कला के माहिर जाबांज पूर्व विधायक कामरेड अमरा राम ने प्याज की उचित दाम पर सरकारी खरीद की मांग को लेकर एक दफा फिर क्षेत्र के प्याज उत्पादक किसानों को साथ लेकर धीरे धीरे महापड़ाव के बहाने किसान आंदोलन चलाकर उस आंदोलन को निर्णायक मोड़ पर ला खड़ा करने के साथ साथ आर-पार की लड़ाई लड़ने के मूड में किसानों को तैयार कर दिया है।
राजस्थान के अनेक लम्बे व बडे किसान आंदोलनों को सफलतापूर्वक चलाकर किसान हित में निर्णय कराने का इतिहास बनाने वाले कामरेड अमरा राम की देखरेख में सीकर के रशीदपुरा गांव के आस पास सैकड़ों गावों के प्याज उत्पादक किसानों ने 27-फरवरी को अपनी मांगों को लेकर पहले छोटे रुप में जिला कलेक्ट्रेट के सामने पड़ाव डालकर जिस आंदोलन की शूरुआत की थी वो आज विशाल आंदोलन का रुप धारण करते हुये किसान ही नहीं बल्कि हर तबके का ध्यान आकर्षित करने लगा है।
खून जमाती ठंड में खूले आसमान के नीचे जमीन को बिछोना बनाकर आवश्यक सुविधाओं के ना होने के बावजूद प्याज उत्पादक किसान 27-फरवरी से किसान आज भी पड़ाव डालकर बैठे हुये हैं जबकि इस सरकार के प्रशासन का ध्यान आज तक उस तरफ नहीं गया है कि आम भारतीय नागरिक लोकतांत्रिक तरीके से अपनी जायज मांगें सरकार के सामने रख रहा है और प्रशासन उनके लिये पानी व टायलेट का इंतजाम तक नहीं कर पाया है। सेकड़ों किसानों को आवश्यक जरुरतों से फारिग होने के लिये इधर-उधर भटकना पड़ रहा है।
लाल झंडे के नीचे सीकर में चल रहे प्याज उत्पादक किसान महापड़ाव आज आठवें दिन में प्रवेश करने के बाद भी अब तक निश्चित नहीं है कि सरकारी उपेक्षा के चलते यह महापड़ाव कितने दिन और चलेगा। पिछले सात दिन में आंदोलनकारी किसानों ने प्रशासन को ज्ञापन देने के अलावा जिले के विधायकों व सांसद के निवास पर जाकर उन्हें मांगपत्र सौंपने, शहर मे रैली व मुख्यमंत्री की शवयात्रा निकालने के साथ मुख्यमंत्री का पुतला दहन जैसे अनेक कार्यक्रम करके अपने आंदोलन को विस्तार रुप दिया है। आंदोलन मे अब क्रषि उपजमंडी व सब्जी मंडी के व्यापारी सहित अन्य संगठन भी जुड़ने लगे है।
कुल मिलाकर यह है कि किसानों को थका देने की नीति से सरकार को बाज आकर किसानों से वार्तालाप करके उनकी जायज मांगो को मानते हुये एक लोकतांत्रिक सरकार होने का संदेश देना चाहिये। वरना धीरे धीरे विस्तार लेते उक्त किसान आंदोलन ने सरकारी उपेक्षा के चलते अगर विकराल रुप धारण कर लिया तो जनता व सरकार को भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। आठवे दिन मे प्रवेश कर चुके उक्त किसान महापड़ाव अब तक पूरी तरह शांतिपूर्ण चल रहा है। लेकिन सरकारी उपेक्षा के चलते आंदोलनकारियों के आंखो से खून के आंसू निकलते देख हर किसी का दिल किसानों के लिये पसीजने लगा है।
