अशफाक कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:
काफी कशमकश व राजनीतिक करवटें बदलने के साथ राजस्थान के मुख्यमंत्री बनने के बाद अशोक गहलोत के पूरे पांच साल के लिये अपने स्थायित्व के लिये लोकसभा चुनाव में प्रदेश की अधिकतम सीटों पर कांग्रेस उम्मीदवारों को विजयी बनाने की पहली कड़ी चूनौती लगभग सामने आ चुकी है जिस चूनौती को पार लगाने के लिए उन्होंने भाजपा विरोधी छोटे छोटे उन दलों से समझौता करके अधिकतम सीट अपने गठबंधन के खाते में डालने का होमवर्क शायद पूरा कर लिया है जिसको आगामी 28 फरवरी को अहमदाबाद में होने वाली कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में रखकर उसको अंतिम रुप दिया जा सकता है।
राजस्थान में एनसीपी, लोकदल व राष्ट्रीय लोकतांत्रिक जनता दल के साथ कांग्रेस का विधानसभा चुनाव से समझौता चला आ रहा है जबकि रालोपा, माकपा, बीटीपी व बसपा से समझौता होने पर कांग्रेस के सामने लोकसभा चुनाव में वोट काटू दलों का चुनावी मैदान में आने का डर पूरी तरह खत्म होने से एक तरह से भाजपा गठबंधन व कांग्रेस गठबंधन में सीधा मुकाबला होने से कांग्रेस गठबंधन काफी मजबूत स्थिति में आने की संभावना व्यक्त की जा रही है।
राजस्थान में भारतीय ट्राईबल पार्टी व माकपा के दो दो व रालोपा के तीन विधायकों के अलावा बसपा के 6 विधायक होने के बावजूद यह सभी दल प्रदेश के अलग अलग हिस्सों में अपने अपने क्षेत्र में प्रभाव रखते हैं। दो विधायकों वाली बीटीपी के प्रभाव का क्षेत्र मेवाड़ के बासंवाड़ा-डूंगरपुर व उदयपुर जैसी आदिवासी बाहुल्य लोकसभा सीट पर माना जाता है तो रालोपा का अधिकांश असर मारवाड़ की सीटों पर माना जाता है। माकपा का प्रभाव शेखावाटी जनपद के अलावा बीकानेर सम्भाग में माना जाता है जबकि बसपा का यूपी के लगते भरतपुर व दिल्ली के लगते अलवर व उससे लगते जिले झूंझुनू लोकसभा क्षेत्र में अधिक माना जाता है।
पिछले दिनों मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मेवाड़ के आदिवासी क्षेत्र के दौरे के समय बीटीपी के प्रति नरम रुख अपनाते हुये उन्हें अपना साथी बताते हुये कहा था कि वो अपनों में से है, जो दूर चले गये, फिर साथ आ जायेंगे। वही रालोपा नेता विधायक हनुमान बेनीवाल की उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट से निकटता व बार बार आपस में मिलते रहने से रालोपा के कांग्रेस के साथ आने की सम्भावना को मजबूती मिली है। जबकि चाहे यूपी में ना सही पर राजस्थान मे बसपा से गठबंधन होना दोनों दलों की मजबूरी माना जा रहा है। बसपा राजस्थान में गहलोत सरकार को बाहर से समर्थन भी दे रही है। माकपा का किसान वर्ग पर काफी असर होना माना जाता है। केंद्र में सियासत करने वाले एक माकपा नेता से मैंने राजस्थान में माकपा व कांग्रेस में लोकसभा चुनाव को लेकर सीट शेयर समझौता होने की सम्भावना पर पुछा तो उन्होंने मना नहीं किया पर इंतजार करने को कहा।
हालांकि आज के समय में बीटीपी ने बासंवाड़ा-डूंगरपुर, उदयपुर व चित्तौड़गढ़ लोकसभा सीट से व माकपा ने सीकर, चूरु व बीकानेर से चुनाव लड़ने का ऐहलान कर रखा है। जबकि बसपा व रालोपा ने लड़ने वाली सीटों को लेकर अपने पत्ते अभी तक नही खोले हैं जबकि राजनीतिक समीक्षक मानकर चल रहे है कि माकपा को बीकानेर व बीटीपी को बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट समझौते में दी जा सकती है। रालोपा को नागौर या फिर नागौर के बदले मारवाड़ की अन्य एक सीट गठबंधन में दी जा सकती है। बसपा को भरतपुर सीट गठबंधन मे दी जा सकती है। बीकानेर से जनता दल गठबंधन के 1989 के लोकसभा चुनाव में माकपा के कामरेड श्योपत सिंह एक मात्र अब तक चुनाव जीत चुके हैं। जबकि अलवर की सीट कांग्रैस नेता भंवर जितेंद्र सिंह अपने लिये सुरक्षित करने के लिये भरतपुर बसपा को दिलवाकर बसपा विधायक वाजिब अली को अलवर से लड़ने से रोकना चाहते हैं।
कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान में कांग्रेस व भाजपा विरोधी छोटे छोटे दलों के मध्य लोकसभा चुनाव को लेकर आपसी गठबंधन व सीट बंटवारे को लेकर लगभग सहमति का आधार तय हो चुका है। आगामी 28 फरवरी को अहमदाबाद में होने वाली कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में इस गठबंधन को कांग्रेस की तरफ से फाइनल टच देने की पूरी पूरी सम्भावना जताई जा रही है।
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