हनीफ खान, ब्यूरो चीफ, सोनभद्र (यूपी), NIT:
भ्रष्ट हैं अधिकारी, भ्रष्ट है महकमा वही हाल है “ना हर चले न कुदारी बैठे, भोजन दे मुरारी” जिसकी कहावत आपने सुना होगा, ठीक इसी तरह इस समय सरकारी विभाग में चल रहा है। सरकारी अफसर कुर्सी तोड़ते हुये अपने चेम्बर में बैठ कर टाईम पास कर रहे हैं और जिले में झोलाछाप डाॅक्टरों कि भरमार हो गई है जो गरीब आदिवासी तबके के लोगों को किलनी की तरह चुस रहे हैं। अगर मरीज अपनी जान बचाकर नही भागे तो जान भी गवानी पड़ जाती है लेकिन उन पर कार्यवाही के नाम पर जीरो है।
जब कोई अस्पताल खोलने के लिये लाईसेन्स बनवाने के लिये जाता है तो उसकी बिना जांच पड़ताल किये बडी़ ही आसानी से विभागीय अधिकारियों द्वारा लाईसेन्स जारी कर दिया जाता है। अगर पार्टी ठीक ठाक नहीं दिखी तो उसे मौखिक रूप से ही लाईसेन्स जारी कर दिया जाता है औरउनका हफ्ता बांध दिया जाता है। ठीक इसी तरह का जब एक मामला प्रकाश में आया तो जैसे लगा कि सिर से आसमान और पैरों तले जमीन ही खिसक गयी हो।
मामला राबर्टसगंज कोतवाली क्षेत्र के अंतर्गत महिला थाने के पास स्थित दुर्गा पाॅली हास्पिटल का है जिसमें कुमारी देवी पत्नी सीता राम (35) वर्ष निवासी रामगढ़ थाना पन्नू गंज जनपद सोनभद्र जिसका ऑपरेशन (सफईया) 8 दिन पहले दुर्गा पाॅली हास्पिटल के डॉक्टर द्वारा किया गया था वही ऑपरेशन के दौरान महिला के बच्चेदानी एवं आंत की नस डॉक्टर द्वारा काट दी गई थी जिससे उसके पेट से लाइट्रिग निकल रही थी और उस महिला की हालत देखते ही देखते ज्यादा बिगड़ती गई। वहीं बिगड़ती हालत देख परिवारजनों ने तुरंत महिला को श्रेया हॉस्पिटल में भर्ती कराया।
वहीं कुछ लोगों द्वारा बताया जाता है कि दुर्गा पाॅली हास्पिटल में यह घटना पहली बार नहीं हुआ है इसके पहले भी कई घटनाएं हो चुकी हैं और मामले को रफा-दफा करने की भी कोशिश की जा चुकी है लेकिन इसके ऊपर कई बार विभागीय अधिकारियों द्वारा कार्यवाही कर के अस्पताल को सीज भी किया जा चुका है लेकिन बाद में कुर्सी के नीचे का खेल दिखाकर अस्पताल खोलवा लिया गया।
वहीं पीड़ित परिवार वालों का कहना है कि जब हमने इसकी लिखित शिकायत स्थानीय थाने को दिया तो पुलिस द्वारा 20 हजार रूपये लेकर मामला खत्म करने को कहा गया।
क्या पुलिस पैसा दिलवाकर दबवाती है मामला?
क्या पुलिस अधीक्षक महोदय इसकी जांच कराकर घूसखोर पुलिस कर्मी के ऊपर भी कोई कार्यवाही करेंगे या फिर इसी तरीके से गरीब आम जनता न्याय के लिए कोतवाली का दरवाजा खटखटाती रहेगी और खाकी वर्दी पहनकर कोतवाली में तैनात पुलिसकर्मी गरीब आदिवासी तबके लोगों को न्याय के बदले 10 से 20 हजार रूपये दिलवा करके हर रोज मामले को रफा-दफा करने की कोशिश करेंगे?
सूत्रों के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार सबसे बडा़ सवाल यह उठता है कि अस्पताल परिसर में नियम के अनुसार ऑपरेशन थिएटर की कोई व्यवस्था नहीं है और ना ही यहां पर डिग्री धारक कोई भी डॉक्टर है तो आखिरकार सीएमओ द्वारा बिना जांच के अस्पताल का रजिस्ट्रेशन कैसे कर दिया जाता है?
अधिकारी करते हैं घटनाओं का इंतजार
अगर देखा जाए तो अधिकारियों द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की जाती है। किसी भी घटना होने का अधिकारी बेसब्री से इंतजार करते हैं। जब कोई घटना घटती है तो दिखावे के लिए कार्रवाई कर दिया जाता है उसके बाद में लीपापोती में पूरा विभाग जुट जाता है। जब इसके बारे में स्वास्थ्य विभाग से मौके पर आए एक अधिकारी से मीडिया ने पूछा कोई भी घटना होने से पहले आप लोग कार्यवाही क्यों नहीं करते हैं और घटना होने के बाद क्यों करते हैं? तो उनके पास चुप्पी साधने के अलावा कोई जवाब ही नहीं था। वहीं जब सीएमओ साहब के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि सीएमओ साहब इस समय जिले से कहीं बाहर हैं। वहीं अस्पताल के बाहर सैकड़ों की संख्या में जनता व भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष धर्मवीर तिवारी व जिला पंचायत सदस्य मनोज सोनकर सीएमओ का आने का बेसबरी से इन्तजार कर रहे थे और पीड़ित परिवार का पूरा पैसा वापस कराने व उसका सही सलामत इलाज कराने की बात पर अड़े रहे लेकिन मौके पर सीएमओ नहीं पहुंचे।
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