मुस्लिम समुदाय के प्रति राजस्थान कांग्रेस की बेरुखी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को पड़ सकती है मंहगी | New India Times

अशफाक कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:

मुस्लिम समुदाय के प्रति राजस्थान कांग्रेस की बेरुखी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को पड़ सकती है मंहगी | New India Timesराजस्थान के विधानसभा चुनावों में मुस्लिम समुदाय ने कांग्रेस के प्रति विश्वास दिखाते हुए बड़ी संख्या में कांग्रेस को समर्थन दिया था लेकिन राजस्थान कांग्रेस की बेरुखी को देखते हुए अब मुसलमानों का कांग्रेस से मोह भंग होता दिखाई दे रहा है। विधानसभा चुनाव में लगभग 99 प्रतिशत मुस्लिम मत कांग्रेस के पक्ष मे आने के बावजूद कांग्रेस का आंकड़ा 99 सीट पर आकर अटक जाने के अलावा राजनीतिक दलों को मिले मतों के मुताबिक प्रदेश की कुल पच्चीस लोकसभा सीटों में से भाजपा के 13 सीटों के मुकाबले कांग्रेस के 12 सीटों पर आगे रहने पर आज कांग्रेस की सरकार बनने के बावजूद सरकार की कार्यशैली को लेकर मुस्लिम समुदाय में कम समय में छाई उदासीनता को कांग्रेस पार्टी द्वारा दूर करने की कोशिश न करने का परिणाम कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में देखने को मिल सकता है।

विधानसभा चुनावों में बडे उत्साह के साथ अपना मतदान प्रतिशत काफी हाई रखकर कांग्रेस की लाज बचाने वाला कुल आबादी का 14-15 प्रतिशत वाला मुस्लिम समुदाय की केवल भाजपा विरोधी मजबूरी को मानकर उनको सत्ता में ठीक ठीक हिस्सेदारी नहीं देने के कारण सरकारी स्तर पहले मंत्रीमंडल गठन व विभाग बंटवारा फिर राजस्थान हाईकोर्ट को जोधपुर व जयपुर बैंच में एक महाधिवक्ता व सोलाह अतिरिक्त महाअधिवक्ताओं की नियुक्ति से पूरी तरह दूर रखने के अतिरिक्त हो रहे रोजाना के फैसलों से मुसलमान अपने आपको ठगा हुआ सा महसूस करने लगा है।

मुस्लिम समुदाय के प्रति राजस्थान कांग्रेस की बेरुखी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को पड़ सकती है मंहगी | New India Times

राजस्थान में हाल ही में गठित कांग्रेस सरकार के साॅफ्ट हिन्दूत्व की राह पर चलते हुये अपनी गति बढाने के साथ साथ उन्हें लगता है कि भाजपा व मोदी के विरोध के कारण मतदान के दिन बूथ तक जाने वाला हर मुस्लिम मतदाता बटन तो कांग्रेस का ही दबायेगा लेकिन कांग्रेस इस बात को नजरअंदाज कर रही है कि अगर उदासीनता के चलते मुसलमान मतदाता बूथ तक नब्बे प्रतिशत की बजाय पचास-पचपन प्रतिशत ही लोकसभा चुनाव में बूथ तक पहुंचा और जो मतदाता नहीं पहुचेगा उन मतों का नूक्सान तो सीधा सीधा कांग्रेस को ही होना तय है।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट की बिरादरी माली व गुजर परम्परागत भाजपा का मतदाता माना जाता रहा है लेकिन इसी विधानसभा चुनावों में सचिन पायलट के मुख्यमंत्री बनने की उम्मीद पर अधीकांश गुजर मत पहली दफा कांग्रेस के खाते मे आने का परिणाम यह निकला कि प्रदेश के राजनीतिक इतिहास में भाजपा का एक भी गुजर उम्मीदवार चुनाव नही जीत पाया। इसी तरह मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की माली बिरादरी के भी भाजपा का परम्परागत वोट बैंक होते हुये कुछेक जगह कुछ प्रतिशत में कांग्रेस के पक्ष में मतदान तो किया लेकिन गहलोत के अलावा दूसरा माली उम्मीदवार कांग्रेस के निशान पर चुनाव जीत नही पाया जबकि पायलट के अलावा अन्य छ गुजर उम्मीदवार चुनाव जीतकर कांग्रेस की तरफ से विधायक बने है।
हालांकि 16 से 20 जनवरी तक राजस्थान की सभी पच्चीस लोकसभा क्षेत्रों से कांग्रेस से जुड़े नेताओं व कार्यकर्ताओं को जयपुर बूलाकर मुख्यमंत्री के सरकारी आवास पर अलग अलग समय पर अलग अलग क्षेत्रवार बैठके करके लोकसभा उम्मीदवार के लिए रायशुमारी व सरकार बनने के बाद से अब तक आये बदलाव एवं उम्मीदवार की जीत के लिये क्या कुछ नये कदम उठाने को लेकर मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री, प्रभारी महासचिव व सचिव के अलावा दिग्गज नेताओं की मोजूदगी मे फीडबैक लिया गया है जिसमें अल्पसंख्यक समुदाय के हितो व हिस्सेदारी का मुद्दा पूरी तरह नदारद रहने व क्षेत्रों के अधिकांश मुस्लिम कार्यकर्ताओं की अनुपस्थिति से एक दफा सोचने पर मजबूर जरुर कर दिया है। यूपी में बसपा-सपा गठबंधन व बिहार में राजद सहित भारत के अनेक हिस्सों में दो दलीय व्यवस्था की बजाय तीसरे विकल्प की मौजूदगी होने की तरह राजस्थान में केवल मात्र भाजपा व कांग्रेस के मध्य ही मुकाबला होने की मजबूरी के चलते मुस्लिम मतदाता ना चाहते हुये भी कांग्रेस का दामन थामने की मजबूरी का फायदा कांग्रेस नेता जमकर उठाने की कला में माहिर हो चुके हैं।

मुस्लिम समुदाय के प्रति राजस्थान कांग्रेस की बेरुखी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को पड़ सकती है मंहगी | New India Times

मुस्लिम विरोध की बूनीयाद पर भाजपा की तरफ से किसी भी मुसलमान को आगामी लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार कतई नहीं बनाया जाना तय है। इसी का फायदा उठाते हुये परम्परागत रुप से एक उम्मीदवार मुस्लिम को कांग्रेस उस सीट से बना सकती है जहां से कांग्रेस के जीतने की सम्भावना पूरी तरह क्षीण हो चुकी हो। इसके विपरीत अगर सच में कांग्रेस मुस्लिम समुदाय के साथ इंसाफ करना चाहे तो अब तक दो दफा कांग्रेस की तरफ से मुस्लिम उम्मीदवार के तौर एक मात्र चुनाव जीतकर लोकसभा सदस्य बनने वाले झूंझुनू से कैप्टन मोहम्मद अय्यूब खान की झुंझुनूं से ही उम्मीदवार मैदान में उतारे या फिर बहुत कम अंतर से मुस्लिम उम्मीदवार के चुनाव हारने वाली चूरु या नागौर से उम्मीदवार बनाये तो बात बने। लेकिन लोकसभा चुनावों को लेकर फीडबैक लेने व ऊपरी स्तर पर हो रहे मंथन के अनुसार मुस्लिम उम्मीदवार को केवल सिम्बॉलिक चुनाव लड़वाया जा सकता है। इसके साथ साथ खबर तो यहां तक भी आ रही है कि साॅफ्ट हिंदुत्व के चलते कांग्रेस राजस्थान में एक भी मुस्लिम को भाजपा की तरह उम्मीदवार भी ना बनाये।

राजस्थान में सरकार ठीक से चलाने व ब्यूरोक्रेसी पर नकेल कस कर जनहित में अनेक तरह की योजनाओं का क्रियान्वयन करने का अशोक गहलोत को माहिर माना जाता है लेकिन पता नहीं क्यों और कैसे यह हो रहा है कि 1998 में भारी बहुमत से व 2008 में लगभग बहुमत जुटाकर अशोक गहलोत के नेतृत्व में बनी सरकार अगले चुनाव में वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली भाजपा की सरकार की तरह रिपीट नहीं होने की तरह कांग्रेस सरकार भी रिपीट नहीं कर पा रही है। कांग्रेस को आगामी लोकसभा चुनावों में ठीक ठीक सफलता पानी है तो उसको अपने परम्परागत मत मुस्लिम समुदाय में छाई उदासीनता को दूर करके उनको सत्ता में हिस्सेदारी मिलने का अहसास कराते हुये उनमें मतदान के प्रति उत्साह व जोश का संचार करने के प्रति कदम उठाना होगा। वरना रिजल्ट उत्साहवर्धक आना जरा टेढी खीर साबित हो सकता है।


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