"उंट के मुह में जीरा" समान है शहर की सफाई व्यवस्था, सताने लगा है डेंगू का डर, प्रशासन की तैयारियां नजर आने लगीं हैं अधूरी, जिला प्रशासन केवल प्रसिद्धी कार्यो में व्यस्त, गंभीर मुद्दों की ओर आंखें बंद | New India Times

ओवेस सिद्दीकी, ब्यूरो चीफ अकोला (महाराष्ट्र), NIT:

"उंट के मुह में जीरा" समान है शहर की सफाई व्यवस्था, सताने लगा है डेंगू का डर, प्रशासन की तैयारियां नजर आने लगीं हैं अधूरी, जिला प्रशासन केवल प्रसिद्धी कार्यो में व्यस्त, गंभीर मुद्दों की ओर आंखें बंद | New India Times

डेंगू का डर हर बार आम जनता को बुरी तरह सताता है क्योंकि समय पर समुचित इलाज न होने से जान भी चली जाती है। पिछले कुछ वर्षों का आंकड़ा देखें तो औसतन हर वर्ष आधा दर्जन के करीब मौतें डेंगू से होती हैं। वहीं डेंगू पॉजीटिव रोगियों (संदिग्ध रोगी) की संख्या करीब 50 से 100 के बीच पहुंच जाती है, इनमें से तो कुछ सिविल अस्पताल में समय पर इलाज के लिए पहुंचने के बाद किस्मत से बच जाते हैं परन्तु कइयों को जिंदगी की जंग लडऩे के लिए बाहरी एवं निजी स्थानों पर जीवन भर की एकत्रित पूंजी खर्च करनी पड़ती है। हालांकि स्वास्थ्य विभाग तो समय पर डेंगू से जंग लडने के लिए तैयारी में जुट जाने के प्रदर्शन में नजर आता है लेकिन वास्तविकता कुछ और ही होती है। मामल तो यह है की शहर के कई परिसरो में कई महिनों दवाओं का छिड़काव नही देखा गया है साथ ही कूडे के अंबार आसानी से देखे जा सकते हैं। डेंगू की आमद की दस्तक होते ही सिविल अस्पताल में आइसोलेशन वार्ड व टेस्टों के साथ इलाज की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है परन्तु मनपा प्रशासन जिस पर डेंगू से बचाव के लिए सफाई आदि की व्यवस्था का जिम्मा होता है, की डेंगू से निपटने की तैयारियां फिलहाल अधूरी लग रही हैं। जिस कारण लोगों में डेंगू का डर सताने लगा है।गंदे नाले जो कि महीनों से अवरोधकों से अटे पड़े हैं तथा जिनकी सफाई कब की हो जानी चाहिए थी अब तक भरे पड़े हैं। उनकी सुध अब मनपा प्रशासन लेने जा रहा है जो ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। दूसरे तरफ निगम निष्क्रिय स्थिति में है। निगम पर भाजपा का कब्जा है। ऐसे में परस्पर विरोधी पार्टियों में बने गतिरोध के चलते प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं।लाखों रुपय खर्च करने के पश्चात भी शहर में अस्वच्छता के दर्शन किए जा सकते हैं। जिला एवं मनपा प्रशासन लाख स्वच्छ अकोला सुन्दर अकोला के नारे लगाए लेकिन हकिकत में सब खोखले हैं। आज भी जिले के ग्रामीण भाग समेत शहर के कई परिसर गंदगी मुक्त नहीं हुए हैं।ग्रामीण भाग से भी अधिक बदतर हाल शहर की हैं।

"उंट के मुह में जीरा" समान है शहर की सफाई व्यवस्था, सताने लगा है डेंगू का डर, प्रशासन की तैयारियां नजर आने लगीं हैं अधूरी, जिला प्रशासन केवल प्रसिद्धी कार्यो में व्यस्त, गंभीर मुद्दों की ओर आंखें बंद | New India Times

मोर्णा की तरह इन मुद्दों का हल निकालना भी जरुरी

ज्ञात रहे की मनपा आयुक्त का अतिरिक्त पदभार अकोला के प्रसिद्ध जिलाधिकारी अस्तिकुमार पांडेय को सौंपा गया है, जिनकी सराहना देश के प्रधानमंत्री ने भी की थी। वे केवल अपने मोर्णा स्वच्छता को लेकर सजग नजर आए किंतु शहर के कई गंभीर मुद्दों की ओर आंखें बंद किए हुए हैं। शहर समेत जिले भर मे बालमजदुरी का ग्राफ बढ रहा है, शासकीय शालाओं का शिक्षा का स्तर निरन्तर रुप से गिर रहा है, कई शालाओं में विध्यर्थी मुलभुत सुविधाओं से भी वंचित हैं। शहर पर कचरे का साम्राज्य है, नायगांव डंपिंग की वजह से नागरिक परेशान हैं, डेंगू का ग्राफ दिन ब दिन बढ रहा है लेकिन इस ओर जिला प्रशासन, मनपा प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नही उठाए जाते। ऐसा आभास होता है की जिलाधिकारी केवल प्रसिद्धी कार्यो में सजग हैं तथा शहर के गंभीर एवं आवश्यक मुद्दों से अंजान। जरुरत महसूस हो रही है की जिस प्रकार जिलाधिकारी ने मोर्णा स्वच्छ मिशन को पूर्ण किया है उसी प्रकार शहर की स्वच्छता एवं शिक्षा के स्तर को बढाने हेतू उचित कदम उठाएं।


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