ओवैस सिद्दीकी, अकोला (महाराष्ट्र), NIT;
विवादों में घिरे रहने वाले बीजेपी महापौर विजय अग्रवाल एक बार फिर विवादों में घिर गए हैं। उन पर व एक पूर्व पार्षद पर गालीगलौज व मारपीट का आरोप लगाया गया है, जिसे लेकर नगर पालिका कर्मचारियों में जबरदस्त नाराजगी देखी जा रही है।जहां एक ओर पार्षदों (नगरसेवकों) द्वारा सम्पत्ती मॅपिंग हेतू स्थापत्य कंपनी के साथ करोडों का घोटाला किए जाने के आरोप लगाया जा रहा है वहीं दूसरी ओर कर बढोतरी की वजह से महापौर मुश्किलों में घिर गए हैं। सुत्रो से मिली जानकारी के अनुसार नगर निगम के सहायक कर अधीक्षक नंदकिशोर उजवणे के साथ महापौर विजय अग्रवाल ने पहले गालीगलौज व असभ्य व्याव्हार किया फिर आयुक्त के दालान में पूर्व पार्षद सागर शेगेकार ने मारपीट भी की, जिसकी वजह से नगर निगम के कर्मचारी व्यथित हैं। इस मामले से पता चलता है की नगर निगम में महापौर एवं भाजप पदधारियों की दबंगई चल रही है तथा सत्ता का दुरुपयोग कर शहर विकास की ओर कोई ख्याल नही किया जाता है। विगत मंगलवार रात को यह मामला कर्मचारी के साथ पेश आने की जानकारी है। इस बीच महापौर विजय अग्रवाल ने मंगलवार को कुर्सी फेंक कर मारने की कोशीश की तथा पूर्व पार्षद सागर शेगोकार के द्वारा कर विभाग के कर्मचारी के साथ हाथापाई करने की जानकारी सूत्रों से प्राप्त हुई है।एक ओर जहां जिले में भाजपा के खासदार संजय धोत्रे एवं गृह राज्यमंत्री रणजीत पाटील की लडाई जिले एवं राज्य के लिए चर्चा का विषय बन गई है, तो दूसरी ओर अकोला के महापौर विजय अग्रवाल की दबंगाई नगर निगम के कर्मचारियों के लिए सिर दर्द बनी हुई है, जिससे सत्ता पक्ष की प्रतिमा मलिन हो रही है तथा भाजप में आपसी मतभेद बडे पैमाणे पर होने एवं सत्ता सिर पर चढने की ग्वाही दे रही है। इस घटना से पूर्ण राजकीय सर्कल में खलबली मच गई है। इसी प्रकार के मनमाने दबंगाई के कार्य महापौर द्वारा नगर निगम में किए जाने के आरोप आए दिन पार्षद लगाते रहते हैं और महापौर इसे कबूल भी करते हैं तथा तांत्रिक गलतियों के नाम पर किए गए अपने मनमाने कार्यों पर परदा डालने का प्रयास करते हैं। यदि महापौर से ऐसे ही गलतियां होती रहीं तो शहर का विकास कैसे होंगा? सत्ता एवं कुर्सी का दुरुपयोग कर केवल स्वयं का विकास एवं भ्रष्टाचार करने के आरोप नागरिकों द्वार लगाए जा रहे हैं।
शहर के साथ साथ अब जिले के सभी नागरिकों एवं राजकीय पदाधिकारियों की नजरें इस ओर टिकी हैं कि कब वह कर्मचारी महापौर के खिलाफ शिकायत दर्ज कराते हैं और साथ ही पारदर्शिता का दावा करने वाली बीजेपी इस संदर्भ में क्या फैसला लेती है?
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