नरेन्द्र कुमार, ब्यूरो चीफ़, जलगांव (महाराष्ट्र), NIT:
27 मार्च 2023 को मणिपुर हाई कोर्ट द्वारा आदेश में कहा गया था कि मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करना है तो राज्य सरकार केंद्र सरकार को सिफारिश भेजे। कोर्ट के इस फैसले के बाद 3 मई 2023 से मैतेई और कुकी आदिवासियों में आपसी झड़प शुरू हो गई जो आज दस महिने बाद भी जारी है। मणिपुर हाई कोर्ट के जस्टिस गोलमेई गैफुलशीलु की बेंच ने पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई की जिसमें कोर्ट ने अपनी गलती मानते हुए सुप्रीम कोर्ट के एक निर्देश को कोट करते कहा कि सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक़ “किसी भी जनजाति को ST सूची में शामिल करने के लिए न्यायिक निर्देश जारी नहीं किया जा सकता क्यों की यह राष्ट्रपती का एकमात्र विशेष अधिकार है ” मणिपुर हाई कोर्ट के एक गलत निर्देश के बाद उपजी हिंसा पर राष्ट्रपती और भाजपा शासित केंद्र और राज्य सरकार मूक दर्शक बनी रही।
दस महिने से जारी हिंसा में पुलीस थानों से पांच हजार हथियार 50 हजार से अधिक बुलेट्स लूटी गई। 500 से अधिक लोग मारे गए, ईसाई धर्मावलंबी कुकी आदिवासियों के 400 चर्च जलाए गए। दो आदिवासी महिलाओं के साथ सार्वजनिक रूप से संगठित यौन हिंसा की गई। सुप्रीम कोर्ट के दख़ल के बाद हिंसा की न्यायिक समीक्षा शुरू की गई। विधायिका (संसद+विधनसभा), कार्यपालिका (मंत्रीपरिषद), न्यायपालिका (न्यायालय) इन तीनों में से किसी एक ने संविधान के प्रती अपने कर्तव्य को ईमानदारी से निभाया होता तो मणिपुर के भीतर लगी जाती और धर्म की आग और इस आग को हवा देने वाली प्रतिगामी गंदी सोच से मणिपुर को बचाया जा सकता था। मणिपुर में कुकी आदिवासियों के खिलाफ़ हो रही नस्लीय हिंसा के विरोध में सबसे पहले महाराष्ट्र के जलगांव से आदिवासियों ने आवाज़ उठाई थी। आज उसी जलगांव के आदिवासी पुलीस के खिलाफ लागातार चीख पुकार कर रहे हैं। ख़बर में प्रकाशित पुलिस अधीक्षक को सौंपे ज्ञापन में लिखा है की पीड़ित बेटे के पिता वासुदेव भील ने जामनेर थाने में समाजिक अन्याय को लेकर शिकायत दर्ज कराई थी जिसकी कॉपी लेने के लिए कोतवाली पहुंचने पर दरोगा ने उनके साथ अभद्र व्यवहार किया। वासुदेव ने दरोगा किरण शिंदे पर कार्रवाई करने की मांग की है। विदित हो कि कार्रवाई के मांग पत्र को जिला पुलीस प्रमुख कार्यालय ने दायर कर लिया है। उक्त मामले में पुलिस की ओर से मिडिया के सामने कोई पक्ष नहीं रखा गया। ज्ञात हो की जलगांव जिले में आदिवासियों के उपर होने वाले समाजिक अन्याय, अत्याचार की घटनाओं में बीते दो साल में काफ़ी इज़ाफा हुआ है।
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