अशफाक कायमखानी, सीकर/जयपुर (राजस्थान), NIT:
सीकर में भाजपा व कांग्रेस के पुराने उम्मीदवारों में मुकाबला होना लगभग तय माना जा रहा है, तीसरे उम्मीदवार की उपस्थिति का आंकलन आने वाले समय पर होगा। हालांकि दलीय स्तर पर विभिन्न ऐजेंसियों द्वारा किये गये सर्वे में भाजपा व कांग्रेस के उम्मीदवार के तौर पर रतनलाल जलधारी व राजेन्द्र पारीक को ही सबसे मजबूत माना जा रहा है। पिछले दो चुनावों में तीसरे उम्मीदवार के तौर पर पहले एनसीपी व फिर रालोपा की टिकट पर चुनाव लड़ चुके वाहिद चौहान के चुनाव लड़ने के अभी तक क्लीयर संकेत नही मिल पा रहे हैं। अगर वो लड़ते भी हैं तो किस दल के निशान पर लड़ेंगे यह उनके अलावा कोई अन्य दावा नहीं कर सकता। जबकि वामपंथी दल माकपा ने एक तरह से धोद के पूर्व प्रधान उसमान खान को सीकर विधानसभा से चुनाव लड़ने की हरी झंडी दे दी है जो अभी से जनसंपर्क करने में लग चुके हैं।
अगर किसी वजह से कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की बजाये सचिन पायलट की ठीक ठाक चलने लगे तो पारीक की जगह अन्य का तकदीर खूल सकता है। वरना गहलोत की चलने पर राजेन्द्र पारीक को टिकट मिलना तय है। उम्र फेक्टर आडे आया तो उनके पूत्र को टिकट मिल सकता है। वेसे खानू खान व जीवण खां के नाम की बतौर सम्भावित उम्मीदवार के तौर पर चर्चा धीमे धीमे होती रहती है।
भाजपा के विभिन्न सर्वे के अनुसार मजबूत उम्मीदवार के तौर पर रतनलाल जलधारी व राजकुमारी शर्मा के अतिरिक्त कुछ नाम भी हवा मेऊ चक्कर लगा रहे हैं पर उनको सर्वे के अनुसार टिकट मिलना नामुमकिन सा लगता है। तीसरे उम्मीदवार के तौर पर पिछले दो चुनाव लड़ चुके वाहिद चौहान की राजनीतिक सक्रियता कमजोर होने से अभी उनके प्रति आशंका जताई जा रही है। फिर भी ऐन वक्त पर वो क्या फैसला करते हैं उसका उनकी उम्मीदवारी पर निर्भर करेगा। वैसे पूर्व केन्द्रीय मंत्री सुभाष महरिया का फिर से भाजपा जोईन करना भी सीकर के चुनाव को निश्चित तौर पर प्रभावित करेगा। माकपा की तरफ से पूर्व प्रधान उसमान खां का चुनाव लड़ना तय सा बताया जा रहा है।
कुल मिलाकर यह है कि कांग्रेस उम्मीदवार राजेन्द्र पारीक से 1993 के चुनाव से लेकर अबतक एक वर्ग विशेष की कम-ज्यादा नाराजगी के चलने के बावजूद वो कभी चुनाव जीतते व हारते आ रहे हैं। आगामी चुनावों में वो नाराजगी कितनी कम कर पायेंगे यह उनके चुनावी गणित को प्रभावित करेगा। जबकि तीसरा उम्मीदवार कौन होगा जो चुनावी गणित बैठाने पर कितना सफल होता है। यह भविष्य के गर्भ में छुपा हुआ है। गहलोत-पायलट फेक्टर भी चुनाव पर अपना असर डालेगा।
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