निजी स्कूलों में किताबों में कमीशन खोरी जारी, स्कूल संचालकों की मनमानी के अभिभावक हो रहे हैं शिकार | New India Times

आसिफ़ शाह, भिंड ( मप्र ), NIT; ​
निजी स्कूलों में किताबों में कमीशन खोरी जारी, स्कूल संचालकों की मनमानी के अभिभावक हो रहे हैं शिकार | New India Timesमप्र समेत लगभग पूरे देश में निजी स्कूलों के संचालकों की मनमानी जारी है। कहीं डोनेशन के नाम पर अभिभावकों से वसूल किया जा रहा है तो कहीं कापी-किताबों में कमीशनखोरी कर मोटी रकम ऐंठी जा रही है। 

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार मप्र के भिंड जिला के मौ क्षेत्र में भी निजी स्कूल संचालकों की मनमर्जी का शिकार अभिभावक हो रहे हैं। यहां बच्चों की पढ़ाई के नाम पर वार्षिक हज़ारों रुपये अभिभावकों को खर्च करने पढ़ रहे रहे हैं, कुछ फीस के नाम पर कुछ शुल्क़ के नाम पर औऱ साथ ही मोटी चपत उन्हें किताबों के साथ भी लगाई जा रही है। कल में अपनी बेटी के लिये बाजार से एक निजी स्कूल की किताबें ख़रीदने के लिये गया जो कि कक्षा 3 की छात्र है जिसकी किताबो की कीमत 752₹ है क्या ये सही है?  फिर मैंने अपने छोटे बेटे के लिये किताबें ख़रीदे जो कि L K G का छात्र है उसकी किताबों की कीमत 230₹ क्या ये लूट जो बच्चों के घर वालों से की जा रही है सही है?  इसकी कोई रोकथाम का उपाय नही है क्या? क्या सभी स्कूलों में एक जैसी किताबें और एक जैसा कोर्स शुरू नहीं किया जा सकता?  सवाल बहुत हैं पर जवाब नहीं हैं। कब थमेगी ये लूट जो कमीशन के नाम पर की जा रही है?
आरोप है कि सरकारी स्कूलों के शिक्षक तो कोचिंग चलाने में व्यस्त हैं। उन्हें बच्चों के भविष्य से कोई मतलब नहीं है। उन्हें बस अपनी जेब गर्म करने की पड़ी रहती है। प्राचार्य से अगर बात की जाये तो वह अन्य स्कूलों में चेकिंग करने की बोल कर पल्ला झाड़ लेते हैं। वह कभी अपने मुख्यालय पर मौजूद ही नहीं रहते। कई शिक्षक तो ऐसे भी हैं जो स्कूलों में बैठ कर सिगरेट गुटखे के मज़े में व्यस्त रहते हैं। अब बच्चे बेचारे कहां जायें? यही आलम निजी स्कूलों का है। यहाँ पर 10वीं,12वीं पास शिक्षक बच्चों को पढा रहे हैं। इन स्कूलों के लिये मान दंड तय नहीं है। क्या शिक्षा विभाग इन कमियों पर गौर करेगा?


Discover more from New India Times

Subscribe to get the latest posts to your email.

By nit

This website uses cookies. By continuing to use this site, you accept our use of cookies. 

Discover more from New India Times

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading