मुसलमान आज देश का सबसे कमज़ोर तबका है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम हर बात को सर झुका कर मानते जायेंगे, हर ज़ुल्म को बर्दाश्त करते जायेंगे, हम ईमान पर कोई समझौता नहीं करेंगे: मौलाना महमूद मदनी | New India Times

अबरार अहमद खान/मुकीज खान, भोपाल/नई दिल्ली, NIT:

मुसलमान आज देश का सबसे कमज़ोर तबका है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम हर बात को सर झुका कर मानते जायेंगे, हर ज़ुल्म को बर्दाश्त करते जायेंगे, हम ईमान पर कोई समझौता नहीं करेंगे: मौलाना महमूद मदनी | New India Times

जमीअत उलेमा-ए-हिंद की राष्ट्रीय प्रंबंधक कमेटी का अधिवेशन रविवार सुबह देवबंद के उस्मान नगर (ईद गाह मैदान) में शुरू हुआ, जिसमें जमीअत उलेमा-ए-हिंद के लगभग दो हजार सदस्यों और गणमान्य अतिथियों ने भाग लिया। जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष महमूद असद मदनी की अध्यक्षता में हुए बैठक के पहले सत्र में देश में बढ़ती नफरत की रोकथाम, इस्लामोफोबिया की घटनाओं और मुसलमानों और गैर मुस्लिम समुदाय के संयुक्त मंच जमीअत सद्भावना मंच के गठन पर विस्तार से चर्चा हुई और प्रस्तावों को मंजूरी दी गई।

अपने अध्यक्षीय भाषण में मौलाना महमूद मदनी, अध्यक्ष, जमीअत उलेमा ए हिंद, ने सामाजिक समरसता के महत्व को उजागर किया। उन्होंने कहा कि देश के हालात मुश्किल जरूर हैं लेकिन मायूस होने की कोई आवश्यकता नहीं है।

उन्होंने कहा कि मुसलमान आज देश का सबसे कमज़ोर तबका है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम हर बात को सर झुका कर मानते जायेंगे, हर ज़ुल्म को बर्दाश्त करते जायेंगे। हम ईमान पर कोई समझौता नहीं करेंगे। आपने कहा कि देश में नफ़रत के खिलाड़ियों की कोई बड़ी तादाद नहीं हैं लेकिन सबसे बड़ी त्रासदी यह है कि बहुसंख्यक खामोश है लेकिन उन्हें पता है की नफ़रत की दुकान सजाने वाले देश के दुश्मन हैं।

उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वजों ने बड़ी कुर्बानियां दी हैं और हम साम्प्रदायिक शक्तियों को देश की अस्मिता से खिलवाड़ नहीं करने देंगे। मुसलमानों को अतिवाद और तीव्र प्रतिक्रिया से बचना चाहिए। आग को आग से नहीं बुझाया जा सकता। इसलिए सांप्रदायिकता और नफरत का जवाब नफरत नहीं हो सकता। इसका जवाब प्रेम और सद्भाव से दिया जाना चाहिए।

मुसलमान आज देश का सबसे कमज़ोर तबका है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम हर बात को सर झुका कर मानते जायेंगे, हर ज़ुल्म को बर्दाश्त करते जायेंगे, हम ईमान पर कोई समझौता नहीं करेंगे: मौलाना महमूद मदनी | New India Times

मौलाना महमूद मदनी ने परोक्ष रूप से अंग्रेजों से माफी मांगने वालों को भी आड़े हाथों लिया। आपने कहा कि घर को बचाने और संवारने के लिए कुर्बानी देने वाले और होते हैं और माफी नामा लिखने वाले और होते हैं। दोनों में फर्क साफ होता है। दुनिया ये फर्क देख सकती है कि किस प्रकार माफी नामा लिखने वाले फासीवादी सत्ता के अहंकार में डूबे हुए हैं और देश को तबाही के रास्ते पर ले कर जा रहे हैं।

उन्होंने कहा कि जमीअत उलमा ए हिंद भारत के मुसलमानों की दृढ़ता का प्रतीक है। साथ ही जमीअत सिर्फ मुसलमान तक ही सीमित नहीं है बल्की यह देश की पार्टी है। मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि साम्प्रदायिक नफ़रत को दूर करना मुसलमानों से कहीं अधिक सरकार और मीडिया की जिम्मेदारी है।

इससे पहले जमीअत के पदाधिकारियों ने देश और समाज के मुददों पर प्रस्ताव पेश किये जिनका अनुमोदन भी किया गया। इन प्रस्तावों के ज़रीये देश की समस्याओँ के समाधान के लिये एक रूर रेखा देने का भरसक प्रयत्न किया गया।

देश में नफ़रत के बढ़ते हुए दुषप्रचार को रोकने के उपायों पर विचार के लिये प्रस्तुत प्रस्ताव में देश में नफ़रत के बढ़ते हुए दुषप्रचार को रोकने के उपायों पर विचार के लिये व्यापक चर्चा की गयी। प्रस्ताव के माध्यम से इस बात पर गहरी चिंता व्यक्त की गयी कि देश के मुस्लिम नागरिकों, मध्यकालीन भारत के मुस्लिम शासकों और इस्लामी सभ्यता व संस्कृति के खि़लाफ़ भद्दे और निराधार आरोपों को ज़ोरों से फेलाया जा रहा है और सत्ता में बैठे लोग उनके खि़लाफ़ कानूनी कार्रवाई करने के बजाय उन्हें आज़ाद छोड़ कर और उनका पक्ष लेकर उनके हौसले बढ़ा रहे हैं।

जमीअत उलेमा-ए-हिंद इस बात पर चिंतित है कि खुले आम भरी सभाओं में मुसलमानों और इस्लाम के खि़लाफ़ शत्रुता के इस प्रचार से पूरी दुनिया में हमारे प्रिय देश की बदनामी हो रही है और उस की छवि एक तास्सुबी, तंगनज़र, धार्मिक कट्टरपंथी राष्ट्र जैसी बन रही है। इससे हमारे देश के विरोधी तत्वों को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने का मौक़ा मिल रहा है।

प्रस्ताव में कहा गया कि जमीअत उलेमा-ए-हिंद ख़ास तौर से मुस्लिम नौजवानों और छात्र संगठनों को सचेत करती है कि वे देश के दुश्मन अंदरूनी व बाहरी तत्वों के सीधे निशाने पर हैं, उन्हें निराश करने, भड़काने और गुमराह करने के लिए हर सम्भव तरीक़ा अपनाया जा रहा है। इससे निराश न हों, हौसले और समझदारी से काम लें और जमीअत उलेमा ए हिंद और इसके नेतृत्व पर भरोसा रखें।

मौलाना सलमान मंसूरपुरी, उपाध्यक्ष, जमीअत उलेमा ए हिंद ने इस्लाम धर्म के खिलाफ़ जारी नफरत
( इस्लामोफोबिया ) से संबंधित प्रस्ताव के अनुमोदन पर अभिभाषण में कहा कि मुसलमान अपने रवैए से ये साबित करने की कोशिश करें कि वो सिर्फ अपने धर्म को ही सर्वोपरि नहीं मानते। इस्लाम के विश्वबन्धुत्व के सन्देश को आम किया जाये। अंतरधार्मिक संवाद को बढ़ाने के भी प्रयास किए जाएं। मुसलमान अपने क्रिया कलापों से इस्लाम के सही पैरोकार बनें। सरकार ऐसे मेनस्ट्रीम और यूट्यूब चैनलों जो इस्लाम धर्म के खिलाफ उन्माद फैलाते हैं रोक लगाई जानी चाहिये।

अधिवेशन में जमीअत द्वारा सामाजिक सौहार्द के लिये सद्भावना मंच गठित किये जाने के प्रस्ताव को भी मंज़ूरी दी गयी जिसके तहत जमीअत ने देश में 1000 ( एक हज़ार ) सद्भावना मंच स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसका उद्देश्य देश और समाज में आपसी सहिष्णुता और सद्भावना को बढ़ाना है। इस प्रस्ताव पर अपने संबोधन में हज़रत मौलाना मुफ्ती अबुल कासिम नोमानी, कुलपति, दारुल उलूम देवबंद ने देश की सांस्कृतिक विविधता की प्रशंसा की। आपने कहा कि मुसलमानों ने हमेशा देश की सद्भावना को सुदृढ़ करने में योगदान दिया है। समाज के दबे कुचले तबके के उत्थान के लिए भी प्रयास किए जाने चाहिए। सद्भावना मंच के दायरे को बढ़ाया जाना चाहिए।

मुसलमान आज देश का सबसे कमज़ोर तबका है लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम हर बात को सर झुका कर मानते जायेंगे, हर ज़ुल्म को बर्दाश्त करते जायेंगे, हम ईमान पर कोई समझौता नहीं करेंगे: मौलाना महमूद मदनी | New India Times

इस अवसर पर जमीअत उलेमा-ए-बंगाल के अध्यक्ष मौलाना सिद्दीकउल्लाह चौधरी, शैखुल हदीस दारुल उलूम देवबंद मौलाना सलमान बिजनौरी, मौलाना हबीब-उर-रहमान इलाहाबाद और अन्य ने भी संबोधित किया।

बैठक का संचलन जमीअत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना हकीमुद्दीन कासमी ने किया। उन्होंने जमीअत उलेमा-ए-हिंद के द्विवार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत किया जिसमें जमीअत की महत्वपूर्ण सेवाओं का उल्लेख किया गया है।उन्होंने पिछली कार्यवाही भी पढ़ी।

इससे पहले जमीअत उलेमा-ए-हिंद ने एक अहम प्रस्ताव में कहा कि सरकार के संरक्षण में देश में सांप्रदायिकता की काली हवा बह रही है, जिसने बहुसंख्यक वर्ग के दिमाग में जहर घोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। मुसलमानों, मुस्लिम शासकों और इस्लामी सभ्यता के खिलाफ निराधार प्रचार का अभियान जोरों पर है और अधिकारी इसमें लिप्त लोगों को कानूनी रूप से गिरफ्तार करने के बजाय रिहा कर रहे हैं। इससे विश्व स्तर पर प्यारी मातृभूमि को बदनाम किया जा रहा है और भारत दुनिया में कट्टरता, संकीर्णता और धार्मिक अतिवाद का प्रतीक बनता जा रहा है, जिसके कारण भारत विरोधी तत्व अंतरराष्ट्रीय मंच पर आ गए हैं। ऐसे में, देश की अखंडता और विकास के संबंध में जमीअत उलेमा -ए-हिंद ऐसे उपायों को तत्काल रोकने के लिए भारत सरकार का ध्यान आकर्षित करना चाहती है क्यों कि ये लोकतंत्र, न्याय और समानता की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हैं।
जमीअत उलेमा-ए-हिंद इस स्थिति पर चिंतित है और निम्नलिखित उपाय करने की आवश्यकता महसूस करता है:
2017 में प्रकाशित विधि आयोग की 267वीं रिपोर्ट के अनुसार, हिंसा भड़काने वालों और सभी अल्पसंख्यकों को विशेष रूप से दंडित करने के लिए एक अलग कानून बनाया जाना चाहिए; विशेष रूप से, मुस्लिम अल्पसंख्यकों को सामाजिक और आर्थिक रूप से अलग-थलग करने के प्रयासों को विफल किया जाना चाहिए। इस अधिवेशन में हर साल 15 मार्च को “विश्व इस्लामोफोबिया” दिवस मनाने की भी घोषणा की गई।
सद्भावना मंच पर एक प्रस्ताव में, जमीअत ने घोषणा की कि वह धर्म संसद के माध्यम से घृणास्पद व्यक्तियों और समूहों के प्रभाव को खत्म करने के लिए देश भर में कम से कम एक हजार सद्भावना संसद बुलाएगा। विभिन्न धर्मों के प्रभावशाली लोगों को आमंत्रित किया जाएगा।

आज की बैठक में जमीअत उलेमा, दारुल उलूम देवबंद, दारुल उलूम वक्फ से जुड़ी देश की कई अहम हस्तियां और अन्य जिम्मेदार व्यक्ति भी मौजूद थे।

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