राजस्थान में उच्च मुस्लिम अधिकारी फिल्ड पोस्टिंग से कोसों दूर | New India Times

अशफाक कायमखानी, जयपुर, NIT; ​राजस्थान में उच्च मुस्लिम अधिकारी फिल्ड पोस्टिंग से कोसों दूर | New India Timesहालांकि किसी भी प्रशासनीक अधिकारी को उसके केडर के अनुसार किसी भी स्तर की पोस्टिंग देने का विशेषाधिकार राज्य सरकार का होता है, लेकिन अक्सर आजादी के बाद से ही देखने को मिलता रहा है कि लोकप्रिय सरकारें सभी समुदाय व बिरादियों के काबिल अधिकारियों को उनकी योग्यता अनुसार किसी ना किसी रुप मे जनता से सीधे जुड़ाव वाली पोस्टों पर तैनात करती रही हैं, जिससे सभी को लगे कि स्टेट के विकास व उसकी हिस्सेदारी में उनकी भी भागीदारी है। लेकिन पिछले कुछ समय से राजस्थान के प्रशासनीक स्तर पर ऐसा होना दूर कौडी होना साबित होता नजर आ रहा है।

राजस्थान के प्रशासनीक ढांचे पर जरा गौर करें तो पाते हैं कि भारतीय प्रशासनिक सेवा के दो मुस्लिम अधिकारी कमरुल जमा चौधरी व अथर अमीर भारतीय सिविल सेवा में चयनीत होकर राजस्थान में उपखण्ड अधिकारी पद पर पोस्टेड हैं। वही राजस्थान प्रशासनीक सेवा से तरक्की पाकर भारतीय प्रशासनीक सेवा के अधिकारी बने अशफाक हुसैन व मोहम्म्द हनीफ भी गुमनामी के तौर पर जनता में जाने जानी वाली पोस्ट पर वर्तमान में पोस्टेड हैं। हां इनमें से अशफाक हुसैन को एक दफा सरकार ने छ: महिने से भी कम समय के लिये जनता से सीधे जुड़ाव वाली पोस्ट दोसा जिला कलेक्टर पद पर जरुर लगाया था, लेकिन मोहम्मद हनीफ तो सदस्य , राजस्व मंडल या फिर जयपुर में किसी गुमनामी वाली पोस्टों पर ही रहते आये हैं। वैसे जनवरी-18 में मोहम्मद हनीफ व सितम्बर-18 में अशफाक हुसैन जैसे दोनों कर्तव्यनिष्ठ व इंसाफाना कलम के धनी भारतीय प्रशासनीक सेवा से अपना कार्यकाल पुरा करके सेवा निवृत होने को हैं।

भारतीय सिविल सेवा मे चयनीत होकर भारतीय पुलिस सेवा का कोई भी मुस्लिम अधिकारी राजस्थान स्टेट केडर में आज तक पोस्टेड नहीं हो पाया है। लेकिन समय समय पर राजस्थान पुलिस सेवा से तरक्की पाकर कुछ अधिकारी भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी जरुर बन पाये हैं, जिनमें लियाकत अली, मुराद अली, नीसार अहमद व सरवर खान IG–POLICE पद से रिटायर हुये हैं। जबकि हैदर अली जैदी व मोहम्मद तारिक आलम मौजूदा समय में IPS होने के नाते RAC में कमाण्डेट व डीजी दफ्तर में पोस्टेड हैं। 

इसी तरह राजस्थान प्रशासनीक व पुलिस सेवा के अधिकारियों की भी एक लम्बी चौड़ी लिस्ट मौजूद है लेकिन उनमें से भी कुछ गिनती के अधिकारियों को छोड़कर बाकी सभी को जनता से सीधे जुड़ाव वाली फिल्ड पोस्टिंग से अभी तक करीब करीब दूर ही लगा रखा गया है। अगर किसी को उपखण्ड अधिकारी व अपर/ उप पुलिस अधीक्षक पद पर लगा भी रखा है तो उनमें से अधिकांश को सीमावर्ती व आदिवासी बेल्ट में ही लगा रखा है। दूसरी तरफ सरकार के चहेते मंत्री दर्जा प्राप्त वो मुस्लिम लीडर लोग जिनको बोर्ड/निगम का चेयरमेन तो बना रखा है लेकिन उनकी बार बार लिखित व मौखिक कोशिशों के बावजूद भी उन्हें पीएस के तौर पर सरकार अभी तक किसी भी राजस्थान प्रशासनीक सेवा के अधिकारी को पोस्टेड उनके यहाँ अभी तक नही कर पाई है।

हालांकि कोई स्वीकार करे या ना करे लेकिन इन केडर के अधिकारियों की फील्ड पोस्टिंग में पिछले कुछ सालों से सियासी दखल चरम पर पहुंच चुका है। इसी सियासी दखल को प्रभावित करने की ताकत शायद अब मुस्लिम समुदाय में शून्यता की तरफ ढलने समान नजर आ रही है। राजस्थान में सरकार चला रहे सियासी दल भाजपा के मात्र दो मुस्लिम विधायकों में से नागोर जिले के डीडवाना से जीते विधायक व राजे मंत्रमण्डल के एक मात्र मुस्लिम मंत्री यूनुस खान तो अपने इस कार्यकाल में समुदाय से पूरी तरह कटे कटे व दूरी बनाकर चल रहे हैं,  कि कभी उनको उनकी मामूली सी हमदर्दी पर भी अछूत ना मान बैठे। सरकार चला रहे सियासी दल के दूसरे मुस्लिम विधायक नागोर से जीते हबीर्बूरहमान की यूनुस खां के मंत्री रहते व दोनों के एक ही जिले नागोर से विधायक होने के चलते जो दुर्गति बनी हुई है उससे कोई अनजान नहीं है।

कुल मिलाकर यह है कि राजस्थान की राजे सरकार के कुछ महीनों बाद करीब चार साल पुरे होने को हो रहे हैं। जिसके चलते सियासी गलियारों में आम चर्चा है कि अब उपरोक्त स्तर के अधिकारियों की अगले कुछ समय में तैनाती सियासी दखल के बिना किसी फील्ड पोस्टिंग पर होना टेढी खीर समान माना जा रहा है।


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