मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मुस्लिम समुदाय की वाजिब मांगों पर नजर डालकर हल तलाशना चाहिए नहीं तो<br>मुस्लिम मतदाता आवश्यकता अविष्कार की जननी के तहत तीसरे विकल्प के रूप में मौजूद ओवैसी का थाम सकता है दामन | New India Times

अशफाक कायमखानी, ब्यूरो चीफ, जयपुर (राजस्थान), NIT:

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को मुस्लिम समुदाय की वाजिब मांगों पर नजर डालकर हल तलाशना चाहिए नहीं तो<br>मुस्लिम मतदाता आवश्यकता अविष्कार की जननी के तहत तीसरे विकल्प के रूप में मौजूद ओवैसी का थाम सकता है दामन | New India Times

राजस्थान में पहले स्वतंत्र पार्टी व लोकदल, फिर जनता पार्टी के बाद जनता दल एवं उसके बाद भाजपा नेता भैरोंसिंह शेखावत व कांग्रेस की आपसी रणनीति के तहत प्रदेश में राजनीतिक तौर पर तीसरे विकल्प के खत्म होने से लगभग 1993 के बाद मुस्लिम समुदाय के पास मात्र कांग्रेस व भाजपा ही विकल्प बचे रहने से मुस्लिम समुदाय की राजनीतिक तौर पर अनदेखी प्रदेश में तेजी के साथ होने लगी है। प्रैसर पोलटिक्स का वेक्यूम होने के चलते होती उस अनदेखी के वास्तविक जिम्मेदार मुस्लिम समुदाय स्वयं व कांग्रेस पार्टी के नेता दोनों सामूहिक तौर पर जिम्मेदार माने जा सकते हैं। हालांकि कांग्रेस नेताओं द्वारा ऊपरी तौर केवल मात्र मुस्लिम हितैषी के दिखावे का वातावरण बनाने की चेष्टा के चलते भाजपा कांग्रेस को मुस्लिम पार्टी व भाजपा को हिन्दुत्व हितैषी दल के तौर पर आम मतदाता के जेहन में बैठाने में काफी हद तक कामयाब हो रही है। वहीं खासतौर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी मुस्लिम में भाजपा का खौफ गहराई तक बैठाने के लिये चुनाव घोषणा पत्र में मुस्लिम हितैषी केवल वादे व सरकारी स्तर पर केवल दिखावे के तौर पर घोषणाएं करने से चूक नहीं रहे हैं। गहलोत की उक्त रणनीति का अधीकांश मुस्लिम समुदाय शिकार होकर उन्होंने केवल भाजपा को हराने व उसके खिलाफ जहर उगलने का काम किया जिससे भाजपा कमजोर होने के बजाये उसे मजबूती मिलती गई। इससे मुस्लिम मतदाता मैन स्टीम राजनीति से अलग थलग होते हुये वो बिन बूलाऐ मेहमान की तरह केवल कांग्रेस का वोट बैंक बनकर ही रहते नजर आने लगा।
मुख्यमंत्री गहलोत को अच्छा प्रशासक कहा जा सकता है लेकिन 1998 में पहली दफा उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद से उन्होंने विधानसभा क्षेत्रों का एक मात्र मालिक कांग्रेस विधायक व कांग्रेस उम्मीदवारों को बनाये रखने की परिपाटी डाली उससे कांग्रेस की रीढ़ कांग्रेस कार्यकर्ता खत्म होते गये और विधायकों के स्वयं के चापलूसों की एक सैना तैयार होती गई। इसी तरह उन्होंने प्रदेश की मुस्लिम लीडरशिप को मिटाकर लीडरशिप के तौर पर केवल चेहरे खड़े किये जिनकी समुदाय में पकड़ रत्ती भर भी नहीं। उनमे से अधीकांश नेता व विधायक मुख्यमंत्री के खिलाफ समुदाय में बढ रहे आक्रोश पर पानी डालने की बजाये उसमें घी डालने का अधिक काम करते आ रहे हैं। वर्तमान समय में मदरसा पैराटीचर्स की मांगों को लेकर चल रहे आंदोलन सहित विभिन्न मुद्दों को लेकर देखा गया है कि कांग्रेस की अधीकांश मुस्लिम लीडरशिप एक दूसरे को चोट मारने में लगी है जबकि वो लीडरशिप मिलकर हकीकत मुख्यमंत्री के पास ठीक से प्रेजेंट करें तो आंदोलकारियों व सरकार के बीच का रास्ता निकाल कर हल आसानी से निकला जा सकता है।
वैसे भी मुस्लिम समुदाय की सरकार से विकास ने नाम पर कोई मांग नहीं होती है। वो अपने क्षेत्रों मे अतिक्रमण कर करके स्वयं सिकुड़ रहे हैं। सरकारी सेवाओं में उनका प्रतिशत घटता जा रहा है। उनमें तबादले करने की बडी़ समस्या नहीं। दो चार अधिकारियों को फिल्ड पोस्टिंग दे दो समुदाय खुश। उर्दू व उर्दू टीचर्स के अलावा पैराटीचर्स की मामूली सी मांगों का निपटारा आसानी से हो सकता है। मेडिकल में विभिन्न तरह की भर्तियों के साथ कुछ यूनानी चिकित्सकों की एवं उर्दू टीचरों की भर्ती भी कर दो तो समुदाय खुश। बोर्ड-निगम का गठन अन्य बोर्ड-निगम के गठन के साथ हो ही जायेगा।
वर्तमान सरकार के समय पहले नवाब दुर्रू मियां के जयपुर स्थित निजी निवास लूहारु हाऊस व फिर पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के जयपुर स्थित सरकारी आवास पर पूर्व प्रायोजित प्रदेश भर से कुछ चयनित मुस्लिम लोगों की हुई मिटिंग में समुदाय से जुड़ी मांगों पर मंथन होने के बाद उनसे मुख्यमंत्री का ना मिलने से समुदाय में अच्छा संदेश नहीं गया। 16 महीने से लिये बने वक्फ बोर्ड चेयरमैन से उम्मीद थी की वो कुछ अच्छा करेंगे लेकिन वो स्वयं विवादों में फंसकर रह गये। राजस्थान लोकसेवा आयोग व राजस्थान राजस्व बोर्ड में सदस्य व हाईकोर्ट में अतिरिक्त महाधिवक्ता नामित नहीं होने, अधिकारियों का फिल्ड पोस्टिंग से दूर रहने व कुछ अन्य कारण से भी समुदाय में वर्तमान सरकार के प्रति आक्रोश पनपा रहा है।
कुल मिलाकर यह है कि मुख्यमंत्री गहलोत को भाजपा के मुकाबले कांग्रेस को वोट करना मुस्लिम समुदाय की मजबूरी ना मानकर उनको मैन स्टीम का मतदाता मानकर उनके साथ अलग से नहीं पर अन्य मतदाताओं की तरह व्यवहार करना होगा। उनके मनों की वास्तविक स्थिति जानने के लिये अपने वास्तविक सोर्स का उपयोग करना होगा। कांग्रेस नेता व वर्करस को उनके मध्य भेजना होगा। विभिन्न सामाजिक व धर्मनिरपेक्ष लोगों से बात करके उनके मनों में पैदा हो चुके अविश्वास को खत्म करना चाहिए। मुस्लिम मतदाता चाहे वर्तमान समय में हो हल्ला करके भाजपा को नहीं हरा पाये लेकिन उनके उदासीन होने या किसी तीसरे विकल्प की तरफ किसी भी प्रतिशत में उनके खिसकने से कांग्रेस के जहाज के डूबने की आशंका जरूर बनती है। वर्तमान समय में मदरसा पैराटीचर्स के चल रहे आंदोलन को निपटाने सहित अन्य मांगों पर विचार करके समुदाय के आक्रोश को आसानी से राजस्थान सरकार निपटा सकती है। समुदाय के सम्बंधित अधीकांश मांगों का सरकारी चाहे तो आसानी से निपटारा कर सकती है। वहीं सरकार के नजदीकी वर्कर व नेताओं द्वारा सरकार द्वारा उठाये अच्छे कदमों व बनाई गई योजनाओं का लाभ को आमजन तक पहुंचाने में कोताही बरतना भी आक्रोश को पनपाने में सहायक है।


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