कासिम खलील, बुलढाणा (महाराष्ट्र), NIT; तकरीबन एक माह के लंबे अंतराल तक बुलढाणा वनविभाग की सेवा में रहने के बाद अपनी मां से बिछड़े भालू के शावक को आखिर बुलढाणा वनविभाग ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देश पर नागपुर के गोरेवाडा ज़ू में छोड़ने के बाद राहत की सांस ली है।
बुलढाणा ज़िले के “ज्ञानगंगा अभयारण्य” को भालू की भूमि के नाम से जाना जाता है। हाल ही में बौद्ध पूर्णिमा की चांदनी रात में हुई वन्यजीव गणना में ज्ञानगंगा अभयारण्य में 59 भालू देखे जाने की पृष्ठी की गई है। अक्सर अभयारण्य को छोड़ कर ये भालू बाहर भी आ जाते हैं। पिछली 20 अप्रैल की सुबह अभयारण्य से कुछ फासले पर स्थित खामगांव तहसिल के ग्राम कालेगांव नान्द्रि के पास एक खेत के सूखे कुए में 5 माह का नर जाती का भालू का शावक कुछ ग्रामस्थ द्वारा देखे जाने के बाद तत्काल वनकर्मी वहां पहुंचे और शावक को बाहर निकाला। इस शावक को अपनी मां से दोबारा मिलाना वनविभाग के लिए एक कड़ी चुनौती थी।डीएफओ बी.टी.भगत ने शावक को अपनी मां से मिलाने की ज़िम्मेदार वनविभाग की रेस्क्यू टीम को सौंपी। तत्पश्चात उसी स्थान पर ले जाया गया जहां वह अपनी मां से बिछड़ा था। कई रात रेस्क्यू टीम के सदस्य आँखों में तेल दाल कर रात-रात भर जागते रहे, शावक भी अपनी मां को पुकारता रहा किन्तु मां दोबारा लौट कर उस स्थान पर नहीं आई। इस शावक की कम उम्र के कारण उसे अकेला जंगल में छोड़ा भी नही जा सकता था। डीएफओ भगत ने ये पूरी जानकारी अपने वरिष्ठ अधिकारी को देते हुए शावक को नागपुर के गोरेवाडा ज़ू में छोड़े जाने की अनुमति मांगी।
तत्पश्चात गोरेवाडा ज़ू से भी पत्रव्यवहार किया गया और ज़ू प्रशासन ने शावक को स्वीकार करने की हामी भर दी। तत्पश्चात 19 मई को खामगांव के आरएफओ टी.एन.सालुके, वनपाल एच.एन. गीते, वनरक्षक संतोष गिरनारे तथा चालक देशमुख अपने वाहन में भालू के शावक को पिंजरे में लेकर नागपुर के गोरेवाडा ज़ू में पहुंचे और शावक को ज़ू प्रशासन के सुपुर्द कर दिया। करीब एक माह तक यह शावक वनविभाग की निगरानी में रहा, जहां उसके खान-पान की पूरी व्यवस्था की जा रही थी। अपनी मां से बिछड़े इस शावक को उसकी मां से मिलाने का पूरा प्रयास वनविभाग ने किया किन्तु शावक के नसीब में “जंगल” की नही बल्कि “पिंजरे” की ज़िंदगी लिखी हुई है।
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