राजस्थान क्रिकेट ऐसोसिएशन चुनाव का खींवसर व मंडावा उपचुनाव पर पड़ सकता असर | New India Times

अशफाक कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:राजस्थान क्रिकेट ऐसोसिएशन चुनाव का खींवसर व मंडावा उपचुनाव पर पड़ सकता असर | New India Times

पिछले कुछ महीनों से राजस्थान क्रिकेट ऐसोसिएशन के चुनाव को लेकर कांग्रेस पार्टी के पूर्व विरोधी दल नेता रामेश्वर डूडी व वैभव गहलोत धड़े में घमासान मचा हुआ था। गहलोत को सीपी जौशी का पूरा समर्थन प्राप्त था और कहते हैं कि रामेश्वर डूडी को अंदर खाने ललित मोदी का समर्थन मिला हुआ था। क्रिकेट ऐसोसिएशन के चुनाव को लेकर लगातार चले घटनाक्रमों के बाद दो चुनाव अधिकारियों के बदले जाने के बाद तीसरे बने चुनाव अधिकारी ने डूडी के अध्यक्षता वाले नागौर जिला क्रिकेट संघ सहित अलवर व श्रीगंगानगर जिला क्रिकेट संघ को निलम्बित करने के बाद एक मात्र वैभव गहलोत का नामांकन आने के बाद उन्हें निर्विरोध अध्यक्ष चुने जाना घोषित करने के बाद गहलोत खेमे में खुशी व जाट समुदाय के खासतौर पर युवाओं मे काफी गुस्सा देखा जा रहा है।
कुछ खेल जगत के जानकार बताते हैं कि आरसीए चुनाव को लेकर शुरु से गहलोत-डूडी धड़ों में तकरार चल रही थी जिसके तहत दो चुनाव अधिकारियों के बदले जाने के बाद तीसरे चुनाव अधिकारी बनने पर चुनाव होना आखिरकार तय हुआ। चुनाव अधिकारी आर आर रश्मि ने ऐन वक्त पर गहलोत-जौशी धड़े की शिकायत पर नागौर, अलवर व श्रीगंगानगर संघ को निलम्बित करने का आदेश देने पर नागौर क्रिकेट संघ के अध्यक्ष रामेश्वर डुडी के चुनाव लड़ने की योग्यता खो जाने पर वैभव गहलोत का निर्विरोध अध्यक्ष बनने का रास्ता साफ होने पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पूत्र वैभव गहलोत राजस्थान क्रिकेट ऐसोसिएशन के चैयरमेन चुन लिये गये। राजस्थान में वैभव गहलोत की राजनीति में धमाके के साथ इंट्री होने की काफी दिनो से कोशिशें हो रही थीं लेकिन जोधपुर से लोकसभा का वैभव के चुनाव हारने के बाद उनके सामने दिक्कतें आने के उपरांत क्रिकेट ऐसोसिएशन का निर्विरोध अध्यक्ष बनने के बाद वैभव गहलोत की राजनीति में चाहे धमाकेदार ना सही पर इंट्री जरुर हो गई है। अगर डूडी के अध्यक्षता वाले जिला क्रिकेट संघ का निलंबन ना होता तो चुनाव मे मुकाबला दिलचस्प हो सकता था।
तत्तकालीन समय के दिग्गज जाट नेता परश राम मदेरणा को दरकिनार करके 1998 मे वैभव गहलोत के पिता अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री बनने के बाद जाट समुदाय व गहलोत के मध्य छत्तीस का जो आंकड़ा बना था वो आंकड़ा आज भी कायम है। 2003 में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से जाट समुदाय की नाराजगी के चलते कांग्रेस के 156-से मात्र 56 विधायक जीत कर आये। फिर 2013 में भी जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में विधानसभा चुनाव हुये तो फिर जाट मतों की नाराजगी के चलते कांग्रेस की 200 मे से मात्र 21 सीट आई थी। 1998 से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से जाट समुदाय का बना 36 का आंकड़ा अब रामेश्वर डुडी को किसी तरह राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष का चुनाव लड़ने से रोकने की अपनाई गई रणनीति से जाट समुदाय के युवाओं मे नाराजगी का ग्राफ बढा है जिसका असर 21-अक्टूबर को राजस्थान के खीवसर व मंडावा विधानसभा उप चुनाव में भी देखने को मिल सकता है।
कुल मिलाकर यह है कि 1998 में जाट नेता परश राम मदेरणा के बजाय हाईकमान सेटिंग्स के सहारे अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री बनने के बाद से उनके व जाटों के मध्य बने छत्तीस के आंकड़े में लगातार इजाफा होता रहा है। जाट मतों की नाराजगी के चलते राजस्थान में कांग्रेस 2003 में 156 से 56 सीट पर व 2013 मे 96 से 21 सिटो पर सीमट गई पर हाईकमान की मेहरबानी से पहले 1996 में, 2008 में व अब 2018 मे अशोक गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री जरुर बनने मे कामयाब रहे हैं। लेकिन मूलरूप से कांग्रेस विचारधारा वाले जाट समुदाय का उस समय उस नाराजगी के चलते भाजपा की तरफ झूकाव होना शुरू हुआ था जो लगातार बढता जा रहा है। सियासी समीक्षक तो यह भी कहते हैं कि अगर अशोक गहलोत के मुख्यमंत्री रहते 2024 के आम विधानसभा चुनाव हुये तो कांग्रेस मात्र चार-पांच सीटों पर सिमटकर रह सकती है।


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