अशफाक कायमखानी, सीकर/जयपुर (राजस्थान), NIT:
भारत भर मे छाई बंदी की मार के कारण आगामी 12-अगस्त को मनाई जाने वाली ईद-उल-अजहा जैसे पवित्र त्योहार पर होने वाली चर्म ऐ कुर्बानी जमा करने वाली इस्लामीया स्कूल संस्थान गणित को समझते हुये इस दफा चर्म (खाल) जमा करने से अपने हाथ खींच लिये है। पर इस्लामीया स्कूल संस्थान ने इसके बदले में सभी से जुड़े रहने के लिये कुर्बानी करने वालों से सौ-दो सौ रुपये प्रति कुर्बानी के हिसाब से जमा करने की कोशिश जरुर करेंगी।
चर्म ऐ कुर्बानी के एक व्यापारी ने बताया कि आज से पांच साल पहले ईद उल अजहा के अवसर पर जमा होने वाली खाल जो तीन सौ से लेकर साढ़े तीन सौ रुपयों में बिक जाती थी वह अब मात्र 50 से 75 रुपये में बिकने की सम्भावना जताई जा रही है। उस स्थिति में खाल जमा करके उनमें नमक लगाकर बेचने तक सूरक्षित रखने में खर्चा आमद से अधिक होने के कारण इनको जमा करने से संस्थाएं दूर भागने लगी हैं। हालांकि सीकर शहर की चर्म ऐ कुर्बानी पहले सौ प्रतिशत व पिछले कुछ सालों से कुछ मदरसों द्वारा जमा करने के कारण करीब नब्बे प्रतिशत खाल इस्लामीया स्कूल संस्थान के जमा होती आ रही है। लेकिन अब उक्त संस्था के जमा करने से दूर हटने के कारण उन मदरसों को ही पूरी की पूरी चर्म ऐ कुर्बानी जमा करनी होगी चाहे उन्हें इसमे फायदा होता है या नही। कुछ संस्थाऐ इस बात पर भी अमल करने पर विचार कर रही है कि उक्त जमा चर्म ऐ कुरबानी को बेचने की बजाय सामुहिक रुप से अलग अलग जगह दफन कर दिया जाये। ताकि ईद उल जुहा के मोके पर बहुत कम दर पर खरीद करके बडे मुनाफे मे बेच कर बडा लाभ कमाने वालो के मंसूबों पर पानी फेरा जा सके।
इसके अतिरिक्त चमड़े के व्यापारी बताते है कि दूनीया भर मे आई मंदी के कारण राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बाजार मे चमड़े की दरो मे भारी गिरावट आने के चलते खालो की वाजीब किमत मिलना मुश्किल हो गया है। लेकिन इस डर से चर्म ऐ कुर्बानी जमा ना करने से खालो के नमक लगाने से लेकर उन्हें खरीदकर बडे व्यापारियों तक पहुंचाने से आगे बढते हुये उसका अंतिम छोर तक काम मे लगे मजदूर व व्यापारियों को तब बडा नुकसान होगा जब लोग खालो को दफन करने का निर्णय लेगे। एक्पर्ट व्यापारीयो का मानना है कि मुस्लिम संस्थाओ को चर्म ऐ कुर्बानी के जमा कर उन्हे बेचने के काम को जारी रखना चाहिए। व्यापार (तिजारत)मे मंदी व तेजी आना आम बात है। अगर कोई संस्था इस काम से हटे तो उसे हटने दे ओर उस संस्था की जगह दूसरी संस्थाओं को आगे आना चाहिए।
कुल मिलाकर यह है कि सालो साल से सीकर शहर की चर्म ऐ कुर्बानी लगातार तीन दिन होने वाली कुर्बानियों को जमा करके उसको बेचने वाली इस्लामीया स्कूल संस्थान के दूर हटने के बाद अब स्थानीय मदरसो पर खाल जमा करने की जिम्मेदारी आहत होती है। जो किस हद तक निभाने को तैयार है। यह सब कुछ समय आने पर पता चलेगा। वही खाल जमा करके उसके नमक लगवा कर उसको बेचने तक सूरक्षित रखने मे आमद से अधिक खर्च आने से संस्थाऐ जमा करने से कतरा रही है। जिसके कारण अवाम मे अलग अलग भाव उठते नजर आ रहे है।
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