संदीप शुक्ला, ब्यूरो चीफ, ग्वालियर (मप्र), NIT:
मन चंगा तो कठौती में गंगा के शब्द को सार्थक रूप देने वाले महान संत शिरोमणि रविदास जी के जन्म दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में गोपाल किरन समाज सेवी संस्था के श्रीप्रकाश सिंह निमराजे ने कहा कि रेवास जी महाराज के 642 वीं आयोजित कार्यक्रम में सभी को कोटि कोटि नमन, बधाइयां एवं शुभकामनाएं।
संत कुलभूषण कवि संत शिरोमणि रविदास उन महान सन्तों में अग्रणी थे जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान किया। इनकी रचनाओं की विशेषता लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग है जिससे जनमानस पर इनका अमित प्रभाव पड़ता है। मधुर और सहज संत शिरोमणि रैदास की वाणीयनानाश्रयी होते हुए भी ज्ञानाश्रयी और प्रेमाश्रयी शाखाओं के मध्य सेतु की तरह।प्राचीनकाल से ही भारत में विभिन्न धर्मों और मतों के अनुयायी निवास करते हैं। इन सबमें मेल-जोल और भाईचारा बढ़ाने के लिए सन्तों ने समय-समय पर महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऐसे सन्तों में शिरोमणि रैदास का नाम अग्रगण्य है। इनकी याद में माघ पूर्ण को रावदास जयंती मनाई जाती हैं ।अर बाईस जी और कबीर जी के बीच मे कहा जाते हैं कि ज्ञान गोष्ठी हुई थी तब रावदास जी ने कबीर जी से दीक्षा ली थी।
मन ही पूजा मन ही धूप, मन ही से योनि सहज सरूप।
रैदास जी महाराज द्वारा बतायी गई यदि चार बातों पर भी हम विचार करते हैं तो पाते हैं कि वे भी अन्य महापुरुषों की तरह ही बहुजन समाज के सच्चे महापुरुष थे।
वृत्ति बुद्ध की भांति उन्होंने भी मन की शुद्धता को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना था, इस बारे में उनका कहना था कि यदि आपका मन शुद्ध हो तो कहीं पर भी जाने की जरूरत नहीं होगी, उन्होंने कहा एक उदाहरण भी दिया था कि “मन चंगा तो कठौती में गंगा“।
दूसरा महत्वपूर्ण उन्होंने कर्म को माना था और कहा था कि
रैदास जन्म के कारणे
होत न काऊ नीच,
नर को नीच करि डारि है,
ओछे करम की नीच।
तीसरा उन्होंने राज अर्थात सरकार को बहुत ही महत्वपूर्ण माना था और कहा था कि
ऐसा चाहत राज में,
जहां सबन को मिले अन्न,
छोटे बड़े का भेद मिटे,
तब रैदास प्रसन्न हो।
चौथा उन्होंने जातियों को खत्म करके समानता स्थापित करने को माना था और इसके लिए कहा था कि
जाति जाति में जाति है,
जो प्रतिबंध के पाट,
रैदास मानुष ना जुड़ सके,जब तक जाति न जात।
100 बात की एक बात है कि संत शिरोमणि रैदास जी महाराज शुद्ध मन के, शुद्ध करम के साथ जातियों को मिटाकर समता स्थापित करना चाहते थे और यही तो सकारात्मक व्यवहार बुद्ध और बाबा साहेब अंबेडकर भी करना चाहते थे, लेकिन इतिहास गवाह है कि समता स्थापित करने के लिए। लोगों को हमेशा से ही रास्ता रोकने का काम किया है, जहाँआरा ने कहा की, भारत के कई संतों ने समाज में भाईचारा बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। ऐसे संतों में संत रविदास का नाम रमपरि है जिन्होंने समाज में फैली छुआ- छूत, ऊंचाई- नीच दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ यह उनकी पंक्तियां मनुष्य को बहुत कुछ सीखने का अवसर प्रदान करती है। ऐसे महान संत की गणना केवल भारत में ही नहीं अपितु विश्व के महान संतों में की जाती है।
डा. सुरेश सोनी, डॉ. प्रवीण गौतम, जी. एल. आर्य, हाकिम सिह किरण रामबाबू, विजयसिंह, फ़ुलसिह, भावना आदि ने विचार व्यक्त किया।
इस अवसर समता का भोजन किया गया। प्रोग्राम सुनीता गौतम के मार्गदर्शन में शील नगर आनंद नगर ग्वालियर में गोपाल किरण समाजसेवी संस्था, जयभीम एस.सी./एस. टी.समिति के द्वारा हुआ।
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