अशफाक कायमखानी, जयपुर (राजस्थान), NIT:
भारतीय ब्यूरोक्रेसी की सबसे ऊपरी सेवा में गिने जानी वाली भारतीय प्रशासनिक सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारियों के चुनाव लड़ने के उदाहरण तो भारतीय राजनीति में काफी मिलते रहे हैं लेकिन पांच-आठ साल की सेवा करने के बाद स्वेच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर चुनाव लड़ने के उदाहरण भारतीय राजनीति में बीरले ही पाये जाते हैं।
हालांकि इसी हफ्ते 2012 की भारतीय सिविल सेवा के टाॅपर व जम्मू काश्मीर केडर के आईएएस डाॅ. फैसल ने सरकारी सेवा से स्वेच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर लोकसभा चुनाव लड़ने का साफ साफ इशारा कर दिया है। वहीं दूसरी तरफ यूपी केडर की चर्चित आएएस अधिकारी बी. चंद्रकला के भी जल्द सरकारी सेवा छोड़कर लोकसभा चुनाव लड़ने की चर्चा आम बताई जा रही है।
हालांकि परीवारवाद व जातिवाद के छाये घने कोहरे के चलते भारतीय राजनीति मे योग्यता का आधार गोण होते इस अंधकारमय समय मे उक्त तरह के काबिल व बडी शैक्षणिक योग्यता रखने वाले अधिकारियों के सरकारी सेवा को छोड़कर राजनैता का रुप धारण कर कुछ अच्छा करने की नीयत व परिपाटी की शूरुआत होने को शुभ संकेत मानना होगा। वरना भारत मे बिलकुल अनपढ नेता का मंत्री बनना, या मामूली पढे लिखे का प्रदेश मे वित्त मंत्री बनने के अलावा खूद के गलीचा उधोग को चलाने मे बूरी तरह फैल होने के बावजूद प्रदेश मे उधोगमंत्री बनने व खेत की बाड़ तक को कभी नही छुने वाले के क्रषि मंत्री बनने के बडे स्तर के उदाहरण हमारे सामने मोजुद है।
कुल मिलाकर यह है कि भारतीय राजनीति की मोजुदा स्थिति मे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों के स्वेच्छिक सेवानिवृत्ति लेकल राजनीति मे आने के सिलसिले को सकारात्मक दिशा की तरफ इशारा मानना होगा। दूसरी तरफ विभिन्न आंदोलनों व संघर्षों से तपकर आने वाले नेताओं के साथ इस तरह के अधिकारियों के आने से दोनो का ठीक ठीक तालमेल अगर बैठ जता है तो यह स्थिति भारतीय राजनीति को नई दिशा प्रदान कर सकती है।
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