रूबेला का टीका लगने से बिगड़ी छात्रा की हालत | New India Times

फराज़ अंसारी, ब्यूरो चीफ बहराइच (यूपी), NIT:

रूबेला का टीका लगने से बिगड़ी छात्रा की हालत | New India Times

मिजेल्स-रुबेला रूबैला टीकाकरण अभियान के तहत जनपद के स्कूलों में बच्चों को रूबेला का टीका लगाया जा रहा है जिससे किसी भी तरह के इंफेक्शन से बचा जा सके, पर यह टीका कुछ मासूमों पर भारी पड़ रहा है। टीका लगाने के बाद अब तक कई मासूम बीमार पड़ चुके हैं। आखिर ऐसा क्या है इस टीके में जो मासूमों पर भारी पड़ रहा है? इसे जानने की कोई कोशिश अब तक क्यों नहीं की गई? टीकारण के बाद से बिगड़ती मासूमों की हालत का असल कारण है क्या, इसकी खोज करना या कमियों को पकड़ उसे दूर करने की जहमत जिम्मेदार उठाना गंवारा नहीं समझ रहे हैं। ऐसा लगता है कि जैसे अनदेखी कर किसी बड़ी घटना का इन्तेजार किया जा रहा है। बहराइच और श्रावस्ती जिले में दर्जनों छात्र छात्राएं टीका लगने के बाद बीमार पड़ गये हैं जिनका सरकारी अस्पताल में इलाज कराया गया पर अब तक किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि आखिर बच्चों के बीमार पड़ने की वजह क्या है? ताज़ा मामला बहराइच शहर के सेवेंथ-डे-एडवेंटिस्ट इण्टर कॉलेज का है जहां रूबेला टीकाकरण अभियान के अन्तर्गत बच्चों को टीका लगाया जा रहा था। कॉलेज में टीका लगाने के दौरान कालेज की पहली कक्षा में पढ़ने वाली इंशा हुसैन पुत्री ताहिर हुसैन को भी टीका लगाया गया लेकिन टीका लगने के बाद से ही मासूम इंशा की हालत बिगड़ने लगी। मासूम को पेट दर्द के साथ साथ शरीर पर लाल रंग के चकत्ते पड़ने लगे जिसके बाद मासूम की हालत बिगड़ती देख उसका उपचार कराया गया। इसके बाद से शुरू हुआ मामले पर लीपापोती की कवायद। ज़िम्मेदार अब इस पर चुप्पी साध चुके हैं। उन्हें मासूमों के दर्द या उनकी ज़िन्दगियों से शायद कोई वास्ता नहीं है, उन्हें तो बस अभियान को परवान चढ़ाना है। अपने हाथों को दिखाती यह मासूम इतना डरी हुई है कि अब स्कूल जाने का नाम नही ले रही है। इसके हाथ में यह लाल रंग के चकत्ते इस बात की गवाही दे रहे हैं कि रूबेला के टीके में कुछ तो गड़बड़ी है, वरना इंफेक्शन को रोकने वाले इस टीके ने इस छात्रा को नुकसान कैसे पंहुचा दिया यह एक बड़ा सवाल है। जिसका जवाब सरकार को देना है कि आखिर इस टिके में ऐसा क्या है जो छात्र-छात्राओं को नुकसान कर रहा है। सवाल यह उठ रहा है कि आखिर टीका लगने के बाद से बिगड़ी हालत के सबब को जानने के लिए ज़िम्मेदार कोई प्रभावी कदम क्यों उठाना उचित नहीं समझ रहे हैं। कहीं इस अभियान की हांडी में गोलमाल की खिचड़ी तो नहीं पकाई जा रही है यह सबसे बड़ा सवाल लगातार टीकाकरण से मासूमों की हालत बिगड़ने वाली खबरों के बाद से बना हुआ है।


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