सैय्यद शहंशाह हैदर आब्दी/ अरशद आब्दी, झांसी (यूपी), NIT; उत्तर प्रदेश समेत देश के कई प्रदेशों में आरएसएस व बीजेपी की तानाशाही देखने को मिल रही है। इस बात का ताज़ा सबूत ये है कि रायपुर (छत्तीसगढ़) के शिया मुसलमानों ने इमाम हुसैन अस. की याद में आम मुसाफ़िरों के लिए वाटर कूलर लगाकर पानी का इंतेज़ाम किया था, जिस पर संघी पृष्ठभूमि के भाजपा लीडरों को सख़्त आपत्ति हो गयी। इन लोगों ने इस नेक काम को इस्लामिक प्रचार के रूप में प्रचारित किया और रेलवे प्रशासन पर दबाव बना कर नामे हुसैन अलैहिस्सलाम पर सफ़ेद टेप चिपकवा दिया। विवाद बढ़ता देख ख़ुद वहाँ के शिया मुसलमानों ने वाटर कूलर से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का नाम हटाकर उसे दोबारा प्यासे मुसाफ़िरों को समर्पित कर दिया।
- “दरे हुसैन पर मिलते हैं हर ख़्याल के लोग,
- यह इत्तिहाद का मरकज़ है आदमी के लिए।”
इतिहास बताता है कि हज़रत इमाम हुसैन को क्रूर , अत्याचारी यज़ीद की सेना ने चारों ओर से घेर लिया तो उन्होंने ख़ून ख़राबा टालने के लिए हिन्दुस्तान आने की इच्छा जताई, जिसे यज़ीद की सेना ने ठुकरा दिया। लेकिन करबला में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत के बाद हिन्दुस्तान में इमाम हुसैन का ग़म और अज़ादारी बहुत ही श्रृध्दा से मनाया जाता है। हर मज़हब के लोग इसे मनाते हैं। रानी झांसी का ताज़िया, सिंधिया परिवार का ताज़िया और ऐसे अनेक ताज़िये आज भी हिन्दुस्तान में रखे जाते हैं। हुसैनी ब्राह्मणों, ईसाइयों और हिन्दुओं का अपना इतिहास है।
इमाम हुसैन के नाम पर पानी और शर्बत की सबील लगाई जाती है। प्यासों को पानी पिलाया जाता है।
अगर सन् 61 हिजरी में ऐसी संकीर्ण मानसिकता के लोग और ऐसी डरपोक सरकार हिन्दुस्तान में होती तो मुझे यक़ीन है कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम कभी हिन्दुस्तान आने की तमन्ना न करते।
मानव कल्याण के नाम पर समाज सेवा के इस काम में अड़ंगेबाज़ी की जितनी निन्दा की जाय कम है।
फिर सोचिये, क्या देश का तालिबानीकरण नहीं हो रहा? कौन रोकेगा इसे?
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